प्रथम रात्रि प्रभाव*!
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लेखक आर्य सागर 🖋️
सोना एक नियमित क्रिया है…. एक सामान्य इंसान का एक तिहाई जीवन सोने में ही चला जाता है। महर्षि चरक ,वागभट्ट आदि आयुर्वेदकारो ने स्वास्थ्य के तीन स्तंभों में से निद्रा को एक महत्वपूर्ण स्तंभ माना है… वही योग दर्शनकार महर्षि पतंजलि ने निद्रा को वृत्ति माना है अर्थात निद्रा ज्ञान का अभाव नहीं यह अपने आप में एक ज्ञानात्मक अनुभूति है।
मानव मस्तिष्क जो एक सर्वाधिक काम्प्लेक्स अंग है उस पर जितने भी शोध हुए हैं लगभग उतने ही शोध निद्रा पर हुए हैं।
बात ‘फर्स्ट नाइट इफेक्ट ‘अर्थात प्रथम रात्रि प्रभाव की करें तो हम में से किसी न किसी के जीवन में इस प्रभाव को अनुभव किया है या कर सकते हैं। जब हम किसी ऐसी अपरिचित जगह पर सोते हैं जहां जीवन में हम पहले कभी नहीं सोए हैं भले ही वह जगह हमारे मकान का हिस्सा हो तो हम उस स्थान पर आराम से सो नहीं पाते रात्रि भर ।रात्रि करवटें बदलने में ही चली जाती है। आमतौर पर हमें नियमित स्थान पर सोते हैं। हमारा मस्तिष्क उस स्थान को पढ़ लेता है… लेकिन जब हम अपने परिचित नियमित सोने के स्थान से दूर किसी अपरिचित स्थान पर किसी रिश्ते नातेदार के घर, होटल या अस्पताल कोई भी ऐसी जगह जहां हम पहले कभी नहीं सोए हैं तो हमारा मस्तिष्क विशेष मोड पर चला जाता है इस मोड में हमारा आधा मस्तिष्क ही सोता है आधा मस्तिष्क जागृत रहता है। यह ठीक डॉल्फिन मछली की तरह सोना है जो पानी में इस तरह सोती है उसका आधा मस्तिष्क सोता होता है तो आधा जागृत रहता है जिससे वह किसी जलीय जीव के संकट से बच सके ठीक ऐसे ही स्थिति हमारे मस्तिष्क में होती है ।हमारे मस्तिष्क का लेफ्ट हैंपशायर फायर जब हम अजनबी स्थान पर सोते हैं तो हमें हमेशा अलर्ट करता रहता है और शेष राइट हैंपशायर स्लीपिंग मोड में चला जाता है। अपरिचित स्थान पर सोने के दौरान जैसे ही कोई खतरा हमे महसूस होता है हमारा मस्तिष्क हमें जगा देता है।
नींद पर अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक आज तक भी इस प्रथम रात्रि प्रभाव को समझ नहीं पाए हैं यह क्यों होता है? कुछ विकासवादी जीव वैज्ञानिक कहते हैं शुरुआती मानव जंगलों में यायावर घूमता था ऐसे में सोते हुए अन्य प्राणियों से शरीर की रक्षा के लिए उसके मस्तिष्क में यह व्यवस्था अन्य जीवों की तरह विकसित हुई ।अब जब मनुष्य स्थाई निश्चित आवासों में रहने लगा है तो समय के साथ प्रथम रात्रि प्रभाव भी कमजोर होता जा रहा है। नियत आवास या स्थल पर के सोने का मतलब है कि उसके मस्तिष्क के दोनों ही हिस्से निद्रा देवी की शरण में चले जाते हैं लेकिन प्रथम रात्रि प्रभाव प्रत्येक मनुष्य में पाया जाता है कुछ मनुष्य इसका अपवाद हो सकते हैं। वैदिक वांग्मय उपनिषद् आदि में इस संबंध में बहुत ही रोचक चर्चा मिलती है ।वहां ऐसे अनेक प्रश्न मिलते हैं कि जब हम सो जाते हैं तो कौन देव है जो हमारे शरीर में जागता रहता है ?कौन है जो नहीं सोता? कौन है जिसके सोने पर सब देव सो जाते हैं? क्या आत्मा सोती है या मन सोता है । ऐसे विभिन्न आध्यात्मिक दार्शनिक बिंदु पर उपनिषदों में व्यापक चर्चा मिलती है। आयुर्वेद से लेकर दर्शन दर्शन से लेकर उपनिषद सभी में नींद या निद्रा को लेकर व्यापक वैज्ञानिक आध्यात्मिक विवेचन मिलता है।
आप सभी को शुभ रात्रि!
लेखक आर्य सागर तिलपता