दैवी-सम्पदा चित्त में, ईश्वर को सौगात॥
‘ विशेष ‘ कहाँ छिपे हैं, दैवी -सम्पदा के अक्षय भण्डार ?
वाह्य-सम्पदा के लिए,
श्रम करता दिन-रात ।
दैवी-सम्पदा चित्त में,
ईश्वर को सौगात॥2725॥
भावार्थ:- है मनुष्य! तू सांसारिक सम्पत्ति अर्जित करने के लिए दिन-रात पसीना बहाता है, भागीरथ तप करता है। अन्ततोगत्त्वा एक दिन इसे छोड़ कर चला जाता है। इसके अतिरिक्त तझे यह भय भी प्रतिफल लगा रहता है कि इसे
कोई छीन न ले, इसे कोई चुरा न ले, इसका क्षरण न हो जाय इत्यादि चिन्ताए तेरे मानस में समुद्र की लहर की तरह उठती रहती हैं, जो तुझे बेचैन करती हैं। किन्तु क्या कभी सोचा है, उस परमपिता परमात्मा ने तुझे दैवी सम्पदा से कितना अलंकृत करके तुझे धरती पर भेजा है ?
जिसके लिए तुझे रात-दिन पसीना नहीं बहाना पड़ता है, जिसे कोई छीन नहीं सकता ,मैं कोई चुरा सकता , वह ऐसी सम्पदा है, जिसे जितना खर्च करोगे उतनी ही वह बढ़ेगी।
इतना ही नहीं मन को शान्ति और प्रसन्नता देती है। ईश्वर की कृपा का तुझे पात्र बनाती है। जैसे सूर्य के अभिमुख होने पर करोड़ों वर्ष का अन्धकार एक क्षण में दूर हो जाता है, ठीक इसी प्रकार तेरी आत्मा का तेज मुखरित होने पर अज्ञान अभाव और अन्याय का अन्धेरा दूर होता है। करुणा, अहिंसा, सत्य शुचिता, प्रेम क्षमा, त्याग साहस, ऋजुता (सरलता) आर्जवता (हृदय की कोमलता) सहिष्णुता मुदिता मार्दवता धृति और क्षमा इत्यादि ऐसी
दैवी – सम्पदाए तेरे चित्त में निहित हैं । आवश्यकता है, तो इन्हें मुखरित कीजिए। नर से नारायण तक का सफर तय कीजिए। इस प्रभु-प्रदत्त खज़ान आप के चित्त में छिपा पड़ा है , इसके द्वार खोलकर तो देखिए। इसकी रसानुभूति अलौकिक है, अनुपम है,अवर्चनीय है, वन्दनीय है, अभिनन्दनीय है। काश! यह हम सबका जीवनादर्श हो ।
विशेष -परम पिता परमात्मा को महिमा के संदर्भ में ‘शेर’ –
तेरे ज़माल से अच्छा,
कोई ज़माल नहीं।
तु बेमिसाल है,
तेरी कोई मिसाल नहीं।
जब कोई किसी के शालीन स्वभाव और सौन्दर्य का दीवाना हो, तो इसके संदर्भ में ‘शेर’ –
हम तेरे चेहरे पर ही, नहीं मरते
हमें तेरे कदमों से भी मोहब्बत है।
जो खरगोश की खाल में भेड़िये हैं, उनके संदर्भ में ‘शेर’ –
दुश्मन के सितम का डर नहीं,
खौफ़ अपनों की वफ़ा से है।
जो संकल्प-शक्ति के धनी होते हैं, उनके संदर्भ में ‘शेर’ –
डूबते हुए शख्श को देखकर, समन्दर भी हैरान था।
अज़ीब शख्श है,
किसी को पुकारता ही नहीं ”
क्रमशः