देश में चल रहे एक भयानक षड्यंत्र की पोल खोलती पोस्ट

हम भारत के मूलवासियों के लिए कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की दशमी ,ब्राम्हणवादियो की दशमी से कई गुना महत्वपूर्ण v सचमुच ऐतिहासिक है ।
मनुवादियों ने फर्जी रामायण की कथा के काल्पनिक नायक राम की काल्पनिक दश सिर वाले कथित राक्षस रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटने पर खुशी के रूप में मनाया जाता है ,और कालांतर में इसको त्योहार के रूप में मनाने की सामाजिक मान्यता मिलने से बहुजानों ने भी मनाना शुरू कर दिया ।
लेकिन आजादी के पहले पेरियार साहब,ज्योतिबा फुले ,गाडगे और ललई यादव द्वारा रामायण और उसके पात्रों को काल्पनिक ठहराने के विवाद में न्यायालय द्वारा उन्हे सही ठहराने और आजादी के बाद बाबा साहब अम्बेडकर द्वारा भी रामायण के राम को काल्पनिक बताए जाने के बाद ,v हमारे अन्य बुद्धिजीवियों ने दशमी तिथि के महत्वपूर्ण होने के असली ऐतिहासिक कारणों को खोज निकाला ।

पहला कारण है कि अश्विन (कार्तिक महीना) महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी को ही महात्मा बुद्ध ने बनारस के सारनाथ में अपने पांच शिष्यों को अपने धम्म की शिक्षा दी थी ।इसलिए इसी तिथि को धम्म परिवर्तन चक्र,की शुरआत तिथि कहा गया ।
दूसरा कारण यह है कि महान सम्राट अशोक जब अपने पिता बिंदुसार की 273 ई पू मृत्यु के बाद मगध का शासक बना तो उसके 8 साल बाद उसने कलिंग राज्य (आज के उड़ीसा)पर आक्रमण कर दिया जिसमें 1लाख लोग मारे गए डेढ़ लाख बंदी बनाए गए जिसे देखकर उसका हृदय करुणा से भर गया ।उसे पश्चाताप हुआ ।उसने तय किया कि अब वह कभी भी युद्ध द्वारा साम्राज्य विस्तार नही करेगा ।इसलिए उसने मानवता से प्रेम करने और अहिंसा का पालन करने का उपदेश करने वाले बुद्ध के धम्म को इसी कार्तिक शुक्ल की दशमी के दिन बौद्ध धम्म को मगध में एक महोत्सव आयोजित कर स्वीकार कर लिया ।
तब से इसे अशोक विजयदशमी कहकर उसके अनुयायी प्रतिवर्ष खुशी के त्योहार के रूप में मनाने लगे ।

तीसरी महान घटना भी 1956 में इसी दशमी के दिन नागपुर में तब घटित हुई जब सदी के बहुजनों के महान नायक भारतीय संविधान के निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने मनुवादियों के घोषित इंसानों में जातीय ऊंच नीच के भेदभाव वाले हिंदू धर्म को त्याग कर अपने 5 लाख समर्थकों की भीड़ के साथ बौद्ध धम्म की दीक्षा ले ली ।

पाठकों को अब स्पष्ट हो जाना चाहिए कि कार्तिक की शुक्ल पक्ष की दशमी का उनके जीवन में कितना महत्व पूर्ण स्थान है।
इसलिए मेरा अनुरोध है कि जो भी बहुजन साथी ,उनके संबंधी, मित्रगण,उनके दलित पिछड़े समाज के लोग ,मनुवादी भेदभाव वाले काल्पनिक नायक राम की रावण पर जीत के जश्न का त्योहार मनाते हों,उन्हें बातचीत कर तथ्यों को बताएं ,या दूर हों तो इसे भेजें।
यह पोस्ट विजयदशमी को उपरोक्त ऐतिहासिक संदर्भ के आईने में पढ़कर समझ कर हृदयंगम कर मनाएं।

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