वेदो में रात्रि का वर्णन: मेरे द्वारा काव्य मय प्रस्तुति
वेदो में रात्रि का वर्णन:
मेरे द्वारा काव्य मय प्रस्तुति
हे पुरुत्रा रात्रि !
तुम्हारा पालन,पूरण व त्राण रुप
निसंदेह स्तुत्य है
नक्षत्ररुप नेत्रो से देखती हमें
जैसे एक माता
अपने बच्चों का ध्यान रखती है
हमारे थके हुऐ शरीर को
सुबह सोकर उठने पर
तरोताजा अनुभव जो कराती है।
हे अमर्त्या रात्रि !
तुम्हारा न नष्ट होने वाला रुप
हमें भाता है
वस्तुतः तुम हमें फिर से
शक्ति संपन्न कर
हमें मरने से जो बचाती हो
तुम जाती तो हो
लेकिन दिन की समाप्ति पर
फिर हमें संभालने आ जाती हो
पृथ्वी के क्या निम्न स्थानों
क्या उत्कृष्ट स्थानों
सभी स्थानों को
तुम पूरण जो कर लेती हो।
हे रमयित्रे रात्रि !
वस्तुतः तुम हमारे लिये रमयित्री हो
तुम ही हो जो
बहिनतुल्य उषा के लिये
अपना स्थान खाली करती हो
वस्तुतः जीवन में
किसी भ्रांति के कारण
उत्साह का अभाव हो जाता है
वह तुम्हारे विश्रामकाल में
फिर से प्राप्त हो जाता है।
तुम्हारे आते ही
क्या हम लोग
क्या पशुपक्षी
सभी अपने अपने
घरों व घौंसलो में
विश्राम करने चले जाते है
कभी कभी हम
इस सोच में पड जाते है
कि तुम नहीं होती तो
हम सांसारिक लोग तो
काम करते करते
थक कर ही समाप्त हो जाते
निस्संदेह वह प्रभु महान है
जिसने काम करने के लिए
दिन बनाया तो
विश्राम के लिए तुम्हें बनाया।
डा.गोवर्धन लाल गर्ग
जयपुर/गंगापुरसिटी