श्राद्ध कर्मकांड पर विभिन्न समाज सुधारकों के विचार
संत कबीर के श्राद्ध पर विचार
जब संत कबीर बालक थे तथा गुरू रामानंद के आश्रम मे शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, तब की एक घटना है :-
ब्राहमण धर्म के अनुसार श्राद्ध मे कौओ को खाना खिलाने से मृत व्यक्ति की भूख शान्त हो जाती है ! अपने पिता के श्राद्ध के लिये गुरू रामानद ने सभी शिष्यो को अलग अलग सामग्री लाने की जिम्मेदारी दी ! बालक कबीर को खीर बनाने के लिये दूध लाने की जिम्मेदारी दी ! बालक कबीर आश्रम से दूर गाँव की ओर गये तो रास्ते में एक मरी हुई गाय दिखी ! कबीर वहीं रुक गये । इधर उधर से घास लाये। गाय को खिलाने के उद्देश्य से घास गाय के मुंह के आगे डाल दिया । बर्तन हाथ मे लेकर उसके पास बैठ गये ! दोपहर होने तक भी कबीर के नही आने पर रामानंद अपने अन्य शिष्यो के साथ कबीर की तलाश मे निकले ! गाँव की तरफ चल दिये । रास्ते में गाय के पास बैठे कबीर दिखाई दिये तो गुरू ने कहा- कबीर क्या कर रहे हो ? यहां क्यों बैठे हो ? कबीर ने कहा गुरूजी गाय के खड़ी होने का इन्तजार कर रहा हूँ , गाय खड़ी हो तो घास खाये, फिर दूध निकालू !
अन्य सारे शिष्य हँसने लगे, तब गुरू ने समझाया —
बेटे कबीर ! मरी हुई गाय खड़ी नही हो सकती है और ना ही यह घास खायेगी । और ना ही ये दूध दे सकती है ! बालक कबीर ने कहा गुरुजी जब मरा हुआ इंसान खाना खा सकता है तो मरी हुई गाय घास क्यों नहीं खा सकती है,,, दूध क्यों नही दे सकती ?
गुरू रामानंद कबीर को गले लगाकर बोले तुम तो मेरे शिष्य नही गुरू हो ! आज आपने मुझे सच्ची और बहुत बड़ी शिक्षा दी है!
गुरु नानक के श्राद्ध पर विचार –
एक बार गुरू नानक देव जी भ्रमण करते हुए शिष्यों सहित तीर्थराज हरिद्वार गए | वहां उन्होनें देखा कि हजारों भावुक अन्ध विश्वासी श्रद्धालु लोग गंगा में खड़े होकर मरे हुए माता पिता आदि को पीनी द्वारा तर्पण व पिण्ड दान कर रहे हैं | नानक देव जी ने सोचा कि इन भोले लोगों कैसे समझाया जाय, अतः वे भी गंगा की धारा में खड़े होकर पंजाब की तरह मुहँ करके दोनों हाथों से गंगा का पानी फैंकने लगे |
स्वयं से विपरीत दिशा में जल फैकते देख लोगों को आश्चर्य हुआ तो उन्होनें नानक देव जी से पूछा महाराज ! आप ये क्या कर रहे हैं ? सरल स्वभाव नानक बोले… “भाईयो, मैं अपने खेत को पानी दे रहा हूँ |”
यह सुनकर सब लोग हंसे और नानक जी से कहने लगे… “महाराज इस प्रकार आपके खेतों में पानी पहुचना सम्भव है क्या ???”
तब महात्मा नानक देव जी बोले… “ओ भोले लोगों मेरा पानी मेरे पंजाब प्रान्त के खेतों में नहीं पहुँचेगा तो तुम्हारे मरे हुए माता पिता जो किस योनि में किस देश में और अपने कर्मानुसार क्या फल भुगत रहे हैं, उन्हें तुम्हारा ये तर्पन पिण्ड दान कैसे पहुँचेगा ???”
“अतः इस पर विचार करो और अपने जीवित माता पिता और गुरूजनों को श्रद्धा व भक्ति भाव से तृप्त करो तो तुम्हारा कल्याण होगा अन्यथा आप दुःख सागर में गोते ही खाते रहोगे |”
श्राद्ध विषय पर स्वामी दयानंद जी के विचार
पितृयज्ञ’ अर्थात् जिस में जो देव विद्वान्, ऋषि जो पढ़ने-पढ़ाने हारे, पितर माता पिता आदि वृद्ध ज्ञानी और परमयोगियों की सेवा करनी। पितृयज्ञ के दो भेद हैं एक श्राद्ध और दूसरा तर्पण। श्राद्ध अर्थात् ‘श्रत्’ सत्य का नाम है ‘श्रत्सत्यं दधाति यया क्रियया सा श्रद्धा श्रद्धया यत्क्रियते तच्छ्राद्धम्’ जिस क्रिया से सत्य का ग्रहण किया जाय उस को श्रद्धा और जो श्रद्धा से कर्म किया जाय उसका नाम श्राद्ध है। और ‘तृप्यन्ति तर्पयन्ति येन पितृन् तत्तर्पणम्’ जिस-जिस कर्म से तृप्त अर्थात् विद्यमान माता पितादि पितर प्रसन्न हों और प्रसन्न किये जायें उस का नाम तर्पण है। परन्तु यह जीवितों के लिये है मृतकों के लिये नहीं।
- सत्यार्थ प्रकाश चतुर्थ समुल्लास
अंधविश्वास भगाओ देश बचाओ़………