गणपति पंडालों पर देश में हो रहे पथराव का सच

गणपति पंडालों पर पथराव की देशभर में डेढ़ दर्जन से अधिक घटनाएं विधर्मियों द्वारा की जा चुकी हैं। यह जानते हुए भी कि गणपति भगवान हिन्दू समाज में प्रथम पूजनीय माने जाते हैं। प्रत्येक शुभ कार्य से पूर्व उनकी आराधना, उनका आह्वान विघ्नहर्ता- शुभकर्ता देव के रूप में किया जाता है। विश्वभर में स्वयं को “शांतिदूत ” बताते घूमते इस्लामी युवाओं की फौज, देश में स्वयं को कथित गंगा- जमुनी तहज़ीब का झंडाबरदार बताने वाले उन मुस्लिम युवाओं ने बिना किसी झिझक -संकोच के पूरी रणनीति बना कर गणेश पंडालों पर हमले किए हैं। खास बात यह है कि ये हमले ईद-ए-मिलाद के इस्लामी उत्सव से कुछ दिन पूर्व ही हुए हैं। क्या होता यदि ऐसा ही कुछ जैसे-को-तैसा जवाब हिन्दू समाज की ओर से दिया जाता? कल्पना कीजिए देश किस प्रकार की आग में जल उठा होता? शहर-शहर दंगे भड़क उठते और हिंसा का जो नंगा नाच सड़कों पर होता वह मानवता को शर्मसार कर देता।

ऐसे में यह विचार करना होगा कि क्या ये हमले किसी बड़ी साज़िश की ओर इशारा तो नहीं कर रहे? वास्तव में यदि इससे पूर्व की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं को देखा जाये तो यह स्पष्ट होता है कि भारत को अस्थिर करने की साज़िश तो लंबे समय से की जा रही है। किंतु राष्ट्रीय राजनीतिक स्थिरता और केंद्र में स्पष्ट बहुमत वाली सरकार की स्पष्ट राजनीतिक मज़बूती और दृष्टिकोण से केंद्रीय एजेंसियों को बिना राजनीतिक हस्ताक्षेप के स्वतंत्र कार्यशक्ति का जो बल मिला है, उस कारण राष्ट्र विरोधी योजनाए लगातार असफल हो रही हैं।

किंतु जब से पड़ौसी देश बांग्ला देश में छात्र आंदोलन के नाम पर लोकतांत्रिक सरकार को जिस प्रकार उखाड़ डाला गया है, तब से विदेशी ताकतों और उसके हाथ की कठपुतली वाले विपक्ष को ऐसा लगता है, कि यही सब अब भारत में भी किया जा सकता है। इस बात की पुष्टि उस बयान से भी होती है जिसमें कथित किसान आंदोलन नेता यह अफसोस करते दिखते है, कि वर्ष 2021 में गणतंत्र दिवस वाले दिन किसानों के ट्रैक्टर मार्च को लाल किले के बजाय संसद की ओर ले जाते तो उसी दिन भारत में बांग्लादेश जैसा हो जाता। स्पष्ट रूप से उनका इशारा हाल ही में बांग्लादेश में छात्रों के विरोध-प्रदर्शन, हिंसा और उपद्रव के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफा देकर देश से भागने की तरफ था। उन्होंने माना कि पहले चूक रह गई, लेकिन अब तैयारी पूरी है। इसके अतिरिक्त सोशल मीडिया पर भी बांग्ला देश जैसी स्थिति भारत में दोहराने की बातें खूब प्रसारित हुई।

ध्यान रखना चाहिए जब से लोक सभा चुनाव परिणाम आए हैं इस प्रकार की हिंसक, पत्थरबाजी, हिन्दू समाज के खिलाफ जिहादी गतिविधियों की संख्या में इजाफा हुआ है। कहीं लव जिहाद के मामले बढ़े हैं, कहीं हिन्दू लड़कियों से छेड़छाड़ के मामले बढ़े हैं। गणपति पंडाल हो या दुर्गा पंडाल, कांवड़ यात्रा हो या कोई अन्य धार्मिक जुलूस, शायद ही कोई ऐसा धार्मिक आयोजन होगा जहां इस्लामिस्टों द्वारा किसी प्रकार का कोई व्यवधान न डाला गया हो। पत्थरबाज़ी न की गई हो, हिंसा न की गई हो। इन सब घटनाओं से एक बात स्पष्ट होती है और वह यह कि मुस्लिम मानसिकता “सबका साथ, सबका विकास” वाली मोदी जी की नीति पर कितना विश्वास करती है? उसे विश्वास है, तो सिर्फ अपने इस्लामी उम्मा और भारत को इस्लामी राज्य बनाने की इस्लामी नीति पर। जिसे वह जब मौका मिलेगा तब समज में फैलाने का प्रयास करेगा। उसे इस बार मौका दिया जा रहा है, भारत को तोड़ने वाली विदेशी शक्तियों और उसके देसी एजेंटों के माध्यम से। लेकिन भारत में मोदी सरकार और धार्मिक हिन्दुओं की अद्वितीय सहनशीलता ने उनकी इस खुमारी को भंग कर रखा है।

लेकिन, समय रहते यदि इन गतिविधियों और इस विचारधारा पर नियंत्रण नहीं किया गया तो यह भारत में ख़तरनाक स्थिति पैदा कर सकती है। एक ऐसा देश जहां “विविधता और विरोधता” हर राज्य में है। कुछ विरोध के स्वर आजादी के बाद से सुनाई दे रहे हैं और कुछ खासकर मज़हबी विरोध और मज़हबी अलगाव आज़ादी के पहले से अभी तक बने हुए हैं। जबकि इन मज़हबी अलगाववादी स्वरों को खत्म करने के लिए देश को बंटवारे का दंश झेलना भी पड़ा। इसके बावजूद ये स्वर बढ़ते जा रहे हैं।
ध्यान रहे, जहां स्वार्थपूर्ण राजनीति बड़े स्तर पर होती हो वहाँ लोकतांत्रिक विरोध की आड़ में जनता को भड़काना बहुत मुश्किल काम नहीं है। हमें यह भी ध्यान रखना होगा, कि विदेशी शक्तियों का दखल लोकतंत्र के चारों स्तंभों को कहीं -न-कहीं प्रभावित कर रहा है। जो ऐसे “आंदोलन जीवीयों” को “संजीवनी” देने का काम करता है। ऐसे में ऐसे “जीवन दायकों” को चिन्हित कर उचित कार्यवाहियों की व्यवस्था की जानी चाहिए।

युवराज पल्लव
धामपुर, बिजनौर
8791166480

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