१• ओ३म् खं ब्रह्म ।। ( यजुर्वेद ४०/१७ )
ओ३म् = सबका रक्षक ब्रह्म परमेश्वर जो आकाश के समान सर्वत्र व्यापक है |
२• प्राणाय नमो यस्य सर्वमिदं वशे ।
यो भूतः सर्वस्य ईश्वरो यस्मिन् सर्वं प्रतिष्ठितम् ।।
( अथर्व ११/४/१ )
ईश्वर = आश्वर्यवान संसार के समस्त पदार्थों का स्वामी
३• तद्विष्णोः परमं पदं सदा पश्यन्ति सूरयः ।
दिवीव चक्षुराततम् । ( ऋग्वेद १/२/७/२० )
विष्णु = सर्वत्र व्यापकशील और सुंदर विशेषणों से युक्त सबको धारण करने वाला परमात्मा
४• अभि प्रियाणि काव्या विश्वा चक्षाणो अर्षति । हरिस्तुञ्जान आयुधा ।। ( ऋग्वेद ९/५७/२ )
हरि = दुखों को हरने वाला परमात्मा
५• भूतानां ब्रह्मा प्रथमोत जज्ञे तेनार्हति ब्रह्मणा स्पर्धितुं कः ।। ( अथर्ववेद १९/२२/२१ )
ब्रह्मा = सबसे बड़ा सर्वजनक परमात्मा
६• ब्रह्मणा तेजसा सह प्रति मुञ्चामि मे शिवम् ।
असपत्ना सपत्नहा सपत्नान मेऽधराँ अकः ।।
( अथर्ववेद १०/६/३० )
शिव = सर्वकल्याणकारी मंगलकारी परमेश्वर
७• नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च ।।
( यजुर्वेद १६/४१ )
शंकर = सदा धर्मयुक्त कर्मों को प्रेरित करने वाला परमेश्वर
८• त्र्यम्बकं जयामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्धनम् ।
ऊर्वारुरमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ।।
( ऋग्वेद ७/५९/१२ )
त्र्यम्बक = भूत,भविष्य व वर्तमान तीनों कालों के ज्ञाता तथा कार्य जगत,कारण जगत व सब जीवात्माओं का स्वामी परमेश्वर
९• गणानां त्वा गणपतिं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे निधीनां त्वा निधिपतिं हवामहे …..।। ( यजुर्वेद २३/१९ )
गणपति = सब प्रकार के समूहों, समुदायों व मंडलों आदि के स्वामी परमेश्वर
१०• सोऽर्यमा स वरुणः स रुद्रः स महादेव ।
रश्मिर्भिर्तभ आभृतं महेन्द्र एत्यावृतः ।।
( अथर्ववेद १३/४/४ )
इस मंत्र में ईश्वर के कई नाम आये हैं –
अर्यमा = श्रेष्ठों का मान करने वाला परम पिता परमात्मा
महादेव =देवों का देव महादानी परमात्मा
वरुण = सर्वश्रेष्ठ
रुद्र = दुष्टों को रुलाने वाला ज्ञानवान
महेन्द्र = सबसे बड़ा और सबसे महान ऐश्वर्यवान
११• इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्यः स सुप्रणो गुरुत्मान् । एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्त्यग्नि यमं मातरिश्वानमाहुः ।। ( अथर्ववेद ९/१०/२८ )
इस मंत्र में भी ईश्वर के कई नाम आये हैं-
इन्द्र = अत्यन्त ऐश्वर्यशाली परमात्मा
मित्र = सबका सहायक,सबको प्रीति करने वाला परमेश्वर
अग्नि = ज्ञानस्वरूप सर्वव्यापी जानने योग्य चेतन परमात्मा
दिव्य = प्रकाशमय,उत्कृष्ट गुणों से युक्त देव परमात्मा
सुपर्ण = सुंदर ढंग से पालन करने वाला सामर्थ्यवान परमात्मा
गुरुत्मान = महान आत्मा वाला
यम = न्यायकारी जगत् नियन्ता परमात्मा
ऐसे कई नाम एक ही निराकार परम पिता परमात्मा के वेदों में आए हैं । इन्हीं नामों के आधार पर बहुत से महापुरुषों के नाम भी संसार में हुए हैं । समय बीत जाने के साथ लोगों ने अज्ञानता वश इन्हीं महापुरुषों के नाम और इनकी महिमा वेदों में समझ ली और ऐसी मान्यता बना ली कि ईश्वर अनेक होते हैं और अवतार लेते हैं जिनका नाम वेदों में लिखा है । जो कि निराधार कल्पना है । ईश्वर एक ही है निराकार है सर्वव्यापक है कण कण में व्यापक होकर सबको धारण और सबका पालन कर रहा है । सबको कर्मों के अनुसार यथायोग्य फल भी देता है । जिसका सर्वश्रेष्ठ नाम ओ३म् है ।
शेष जितने भी असंख्य नाम वेदों में हैं वे सब उसके असंख्य गुणों के अनुसार ही हैं जैसे विष्णु,शिव, रुद्र इन्द्र,लक्ष्मी,सरस्वति,अम्बा आदि ये सब नाम उस निराकार ओ३म् के ही हैं । जिसकी उपासना हमारे पूर्वज ऋषि मुनि आदि सब योगाभ्यास की रीति से करते आ रहे हैं । परमेश्वर के भिन्न भिन्न नामों से भिन्न भिन्न प्रकार की मूर्तियां बना कर पूजना,उनका हार श्रंगार करना,उनको भोग लगाना,उन पर फल फूल जल दूध तेल चढाना,उनमें प्राण डालने का नाटक करना,उनको परमात्मा का प्रतीक मानना….कोरी अज्ञानता है नादानी है मूढता है | मूर्तिपूजा न तो सीढी है ,न ही कोई प्रथम कक्षा की बात है ओर न ही इसका विरोध करने से मुसलमान हो जाने की बात है | यह वास्तव में ऐसी खाई है जिसमें गिर कर व्यक्ति का आत्मिक विकास रुक जाता है और मृत्यु पर्यन्त उसी में पडा रह जाता है |
यज्ञ, योग ,परमात्मा के सर्वोत्तम ओम् नाम का स्मरण और वेदानुकूल आचरण ही उस प्रियतम जगनियन्ता की भक्ति है | बहुमूल्य दुर्लभ मनुष्य जन्म को बेकार की बातों में नष्ट करना उचित नहीं