*कर्मफल व पुनर्जन्म*
ये रुपाणि प्रतिमुञ्चमाना असुराः सन्तः स्वधया चरन्ति ।
परापुरो निपुरो ये भरन्त्यग्निष्टाँल्लोकात् प्रणुदात्यस्मात् ।।
-(यजुर्वेद २/३०)
अर्थ:- जो दुष्ट मनुष्य अपने मन, वचन और शरीर से झूठे आचरण करते हुए अन्याय से अन्य प्राणियों को पीड़ा देकर अपने सुख के लिए दूसरों के पदार्थों को ग्रहण कर लेते हैं, ईश्वर उनको दुःखयुक्त करता है और नीच योनियों में जन्म देता है कि वे अपने पापों के फलों को भोगने के लिए फिर मनुष्य-देह के योग्य होते हैं। इससे सब मनुष्यों को योग्य है कि ऐसे दुष्ट मनुष्यों वा पापों से बचकर सदैव धर्म का ही सेवन किया करें।
अयं देवाय जन्मने स्तोमो विप्रेभिरासया ।
अकारि रत्नधातमः ।।-(ऋग्वेद १/२०/१)
अर्थ:- मनुष्य जैसे कर्म करता है वैसे ही उसे जन्म और भोग प्राप्त होते हैं।
अग्रलिखित कथनों से भी पुनर्जन्म की सिद्धि होती है―
जिस समय लक्ष्मण को शक्ति बाण लगता है और वह मूर्च्छित हो जाते हैं, तो श्रीरामचन्द्र जी उसकी इस अचेतन अवस्था को देखकर विलाप करते हुए कहते हैं―
पूर्वं मया नूनमभीप्सितानि, पापानि कर्माण्यसकृत् कृतानि ।
तत्राद्यायमापतितो विपाको, दुःखेन दुःखं यदहं विशामि ।।-(वाल्मि० रा० यु० ६३/४)
अर्थ:- निश्चय ही मैंने पूर्वजन्म में अनेक बार मनचाहे पाप किए हैं।उन्हीं का फल मुझे आज प्राप्त हुआ है जिससे मैं एक दुःख से दूसरे दुःख को प्राप्त हो रहा हूं।
एक अन्य स्थल पर वर्णित है―सीता की खोज करते हुए हनुमान् लंका में अशोकवाटिका में पहुंचे। उस समय सीता हनुमान् से कहती हैं―
भाग्यवैषम्ययोगेन, पुरा दुश्चरितेन च ।
मयैतत् प्राप्यते सर्वं, स्वकृतं ह्युपभुज्यते ।।-(वा० रा० यु० ११३/३६)
अर्थ:- मैंने पिछले जन्म में जो पाप किये हैं, उसी के परिणामस्वरुप मेरे भाग्य में यह विषमता आ गई है। मैं भी अपने पूर्वकृत फल का भोग प्राप्त कर रही हूँ क्योंकि अपने ही किये का फल भोगना पड़ता है।
महाभारत में भी पुनर्जन्म का उल्लेख मिलता है―दुर्योधन के मारे जाने पर धृतराष्ट्र विलाप करते हुए कहते हैं―
नूनं व्यपकृतं किञ्चिन्मया पूर्वेषु जन्मसु ।
येन मां दुःखभागेषु धाता कर्मसु युक्तवान् ।
परिणामश्च वयसः सर्वबन्धुक्षयश्च मे ।।
अर्थ:- हे कृष्ण ! हमने पूर्व जन्म में निश्चित रुप से बहुत पाप किये हैं इसी कारण विधाता की और से हमें यह दारुण दुःख प्राप्त हुआ है। मैं बूढ़ा हो गया हूं और मेरे सभी बन्धु-बान्धव मृत्यु को प्राप्त हो गए हैं।
इसी प्रकार गान्धारी भी शोकाकुल होकर कहती है―
नूनमाचरितं पापं मया पूर्वेषु जन्मसु ।
या पश्यामि हतान् पुत्रान् भ्रातृंश्च माधव ।।
-(महाभा० अनु० ७)
अर्थ:- हे माधव ! मैंने निश्चित रुप से पिछले जन्म में बहुत-से पाप किए हैं, इसी कारण मैं अपने पुत्रों,पौत्रों और सभी भाइयों को मरा हुआ देख रही हूँ।
इन कथनों से यही सिद्ध होता है कि पूर्वजन्म था,और इस जन्म के बाद दूसरा जन्म भी होगा।इसी प्रकार जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जन्म का चक्र चलता रहता है।पुनर्जन्म को ईसाई और मुस्लिम नहीं मानते वे मृतक को कब्र में रखते हैं और उनकी मान्यता है कि एक दिन वे पुन: जीवित होंगे।इसी लिए वे कब्र पर फूल चढ़ते है चादर बिछाते हैं। यही बुराई अज्ञानता वश हिन्दूओं ने भी अपना ली और मृतक का देह संस्कार करने के बाद भी आत्मा को तृप्त करने के नाम पर श्राद्ध करते हैं और पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानते हुए भी कि व्यक्ति कर्मानुसार अलग अलग योनियों को पाता है ,सोचते हैं कि मृतक आत्मा एक दिन खाना खाने आती है।( ८४ लाख योनियों से गुजर कर मनुष्य जन्म मिलता है के सिद्धांत को मानने वाले अगर सोचे कि आत्मा भटकती रहती है और अपने परिवार से जुड़ी रहती है तो दोनों बातें आपस में मेल नहीं खाती )
आत्मा का भोजन ज्ञान है।ज्ञान से मोक्ष आत्मा की अंतिम यात्रा है।
*जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है – जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। उसे जानना ही मोक्ष है..!!
जिसने स्वयं को, उस आत्मा को जान लिया – वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है..!!
*अज्ञान संसार के दुःख का मुख्य कारण हैं..!! अज्ञान के कारण ही मनुष्य शरीर रूपी बंधन में बार-बार पड़ता है !!