मेरे मानस के राम , अध्याय – 55 : सीता जी की अग्नि परीक्षा
सीता जी ने उस समय अपने आंसुओं को पोंछते हुए लक्ष्मण जी की ओर देखा और अत्यंत उदास होकर एकाग्र मन से कुछ सोचते हुए उनसे कहा कि इस मिथ्यापवाद से पीड़ित हो मैं जीना नहीं चाहती । अतः तुम मेरे लिए चिता तैयार करो। क्योंकि ऐसे रोग की एकमात्र औषधि यही है। लक्ष्मण जी ने उस समय अपने भाई रामचंद्र जी की ओर इस आशा से देखा कि संभवत: वह चिता तैयार करने के लिए ना कहें। परन्तु रामचंद्र जी की मुखाकृति से लक्ष्मण ने जान लिया कि वह भी चिता तैयार करा देना चाहते हैं । तब उन्होंने चिता तैयार करवा दी।
सीता जी कहने लगीं, सुनो लक्ष्मण जी तात।
करो चिता तैयार तुम , मन को लगा आघात।।
दु:खी – मना लक्ष्मण उठे , करी चिता तैयार।
क्रोध में मन भर लिया , देख राम व्यवहार।।
सीता जी अब अधिक देर जीवित रहना नहीं चाहती थीं। इसलिए उन्होंने चिता की ओर बढ़ना आरंभ कर दिया। रामचंद्र जी का उद्देश्य भी उन्हें चिता में झोंकना नहीं था। वह भी उनके पतिव्रत धर्म से भली प्रकार परिचित थे। इसके साथ ही साथ अपने कर्तव्य से भी प्रेरित थे। अतः उन्होंने चिता की ओर बढ़ती सीता को तुरंत रोक लिया। रामचंद्र जी सीता जी के चरित्र की प्रशंसा करने लगे। इस पर वहां उपस्थित सभी लोगों में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई।
सीता जी चलने लगीं , जब चिता की ओर।
राम ने झट रोक लीं , सभी थे भाव विभोर।।
बोले तब श्री राम जी , सीता चरित् पवित्र।
मुझमें है अनुराग उसका , मेरी सच्ची मित्र।।
अग्नि परीक्षा हो गई, सीता जी हुईं पास।
लोगों को राहत मिली , आई सांस में सांस।।
राम गुणों की हो रही , चर्चा सकल संसार।
रामचरित को जानिए , गुणों का है भंडार।।
लंका पुरी को छोड़कर , हुए चलने को तैयार।
राम लखन तैयार थे , साथ में सीता नार।।
विभीषण जी करने लगे, प्रार्थना एक विशेष।
अवसर दो आतिथ्य का, रुको हमारे देश।।
राम ने उत्तर दिया , विभीषण जी सुनो बात।
शिष्ट आपका आचरण, और मधुर व्यवहार।।
आपका सत्कार मुझको , हृदय से स्वीकार।
विमान हमको दीजिए , मानूंगा उपकार।।
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )