आचार्य डॉ.राधेश्याम द्विवेदी
द्वारका धाम राजधानी बेट द्वारका पुरी रनिवास महल
द्वारिका तीन हैं- गोमती द्वारिका, बेट द्वारिका और समुद्र में डूबी द्वारिका । गोमती द्वारिका धाम है, बेट द्वारिका पुरी है। समुद्र में डूबी द्वारिका भी गोमती द्वारिका के पास ही है। बेट द्वारिका के लिए समुद्र मार्ग से पहले जाना पड़ता था।भारत के गुजरात राज्य के पश्चिमी सिरे पर समुद्र के किनारे स्थित 4 धामों में से 1 धाम और 7 पवित्र पुरियों में से एक पुरी है द्वारिका। यहां पर श्रीकृष्ण का एक प्राचीन मंदिर है और समुद्र में डूबी हुई द्वारिका नगरी। गोमती तट पर स्थित द्वारका वह स्थान है जहां से भगवान श्रीकृष्ण राजकाज किया करते थे और बेट द्वारका वह स्थान है जहां भगवान का निवास स्थान था। इस स्थान का नाम भेंट द्वारिका है जिसे गुजराती में बेट द्वारका कहते हैं ।
श्रीकृष्ण का दरबार द्वारका
श्रीकृष्ण का दरबार (राजधानी) वर्तमान द्वारका के आस पास हुआ करता था जो अब समुद्र में विलीन हो चुका है और सातवीं बार नए कलेवर में गोमती के तट पर लोगों द्वारा पूजा जाता है। गोमती तट स्थित द्वारका सुनियोजित, सुव्यवस्थित, आवासीय और वाणिज्यिक शहर था, जिसमे सोने, चांदी और अन्य कीमती पत्थरों से बने महल, सुंदर उद्यान और झीलें भी थीं। द्वारका को स्वर्ण का शहर कहा जाने लगा और भगवान श्री कृष्ण द्वारकाधीश के नाम से विश्व में पूजे गये। कालांतर में इस द्वीप का अधिकांश भाग समुद्र में समा गया। अभी जो भाग बचा है, उस भाग का क्षेत्रफल लगभग तेरह किलोमीटर है।
बज्रनाभ द्वारा निर्मित द्वारकाधीश मंदिर
श्री कृष्ण के स्व धाम गमन के बाद श्री द्वारकाधीश जी का मंदिर उनके पोते बज्रनाभ नें बनवाया था। द्वारका में गोमती नदी का अरब सागर में मिलन स्थल पर वर्तमान द्वारका है।
श्री कृष्ण का निवास भेंट द्वारका
द्वारका से लगभग 30 किलोमीटर दूर ओखा के निकट बेट द्वारका अविकसित सुविधा विहीन अवव्यस्थित नगर है। यहाँ कभी भगवान श्रीकृष्णजी निवास करते थे। यादव वंशी श्री कृष्ण ने वर्तमान में ओखा के निकट बारह योजन की भूमि पर (बेट द्वारका) पर अपना राज्य स्थापित किया था। बेट द्वारका के कुछ अन्य नाम हैं – रमणद्वीप अर्थात रमणीय द्वीप, कृष्ण विलास नगरी अर्थात कृष्ण की आमोद नगरी, कलारकोट इत्यादि।
बेट द्वारका का नामकरण
भगवान श्रीकृष्ण और उनके बचपन के मित्र सुदामा जी से भेंट होने के कारण भी इसे बेट (भेंट)द्वारका कहा जाता है। कहते है कि समुद्र में पूरी द्वारका नगरी डूब गई थी, पर बेट द्वारका एक टापू के रूप में आज भी बची है। भगवान कृष्ण इस बेट-द्वारका नाम के टापू पर अपने घरवालों के साथ सैर करने आया करते थे। वेट-द्वारका ही वह जगह है, जहां भगवान कृष्ण ने अपने प्यारे भगत नरसी की हुण्डी भरी थी।
उपहार और मुलाकात हुआ था बेट द्वारका में
भेट का मतलब मुलाकात और उपहार दोनो होता है। इस नगरी का नाम इन्हीं दो बातों के कारण भेट पड़ा। दर असल ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण की अपने मित्र सुदामा से भेट हुई थी। गोमती द्वारका से यह स्थान 35 किलोमीटर दूर स्थित है। इस मंदिर में कृष्ण और सुदामा की प्रतिमाओं की पूजा होती है। मान्यता है कि द्वारका यात्रा का पूरा फल तभी मिलता है जब आप भेट द्वारका की यात्रा करते हैं।
द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का महल यहीं पर हुआ करता था। द्वारका के न्यायाधीश भगवान कृष्ण ही थे। माना जाता है कि आज भी द्वारका नगरी इन्हीं के नियंत्रण में है। इसलिए भगवान कृष्ण को यहां भक्तजन द्वारका - धीश के नाम से पुकारते हैं। सुदामा जी जब अपने मित्र से भेंट करने यहां आए थे तो एक छोटी सी पोटली में चावल भी लाए थे। इन्हीं चावलों को खाकर भगवान कृष्ण ने अपने मित्र की दरिद्रता दूर कर दी थी। इसलिए यहां आज भी चावल दान करने की परंपरा है। मंदिर में चावल दान देने से भक्त कई जन्मों तक गरीब नहीं होते।
भेंट द्वारका ही वह स्थान है जहां भगवान कृष्ण ने अपने परम भक्त नरसी की हुंडी भरी थी। पहले के जमाने में यह चलन था कि लोग पैदल यात्रा में अधिक धन अपने साथ नहीं ले जाते थे। इस डर से कि कोई चोर न चुरा ले। धन साथ ले जाने की बजाए वे किसी विश्वस्त और प्रसिद्ध व्यक्ति के पास रुपया जमा करके उससे दूसरे शहर के व्यक्ति के नाम हुंडी (धनादेश) लिखवा लेते थे। नरसिंह मेहता की गरीबी का उपहास करने के लिए कुछ शरारती लोगों ने द्वारका जाने वाले तीर्थ यात्रियों से उनके नाम हुंडी लिखवा ली, पर जब यात्री द्वारका पहुंचे तो भगवान कृष्ण ने नरसिंह की लाज रखने के लिए श्यामल शाह सेठ का रूप धारण किया और नरसिंह की हुंडी को भर दिया। इस हुंडी का धन तीर्थयात्रियों को दे दिया गया और इस तरह नरसिंह का यश बढ़ गया।
द्वारका कई बार डूबी,
बेट द्वारका एक बार भी नहीं
एक बार संपूर्ण द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई थी, लेकिन भेंट द्वारका बची रही। उसके कुछ ही अंश डूबे हैं। द्वारका का यह हिस्सा एक टापू के रूप में आज भी मौजूद है। इसी द्वारका में बाद में राधा रानी जी भी आ गयीं थीं । माँ मीरा बाई भी अपने अंतिम समय में बेट द्वारका में थीं आई थी। जहां वे रहती थीं वो मंदिर आज भी बेट द्वारका में ही मौजूद है।
द्वारिका और बेट द्वारिका में अंतर
भगवान श्री कृष्ण जी नें 10 वर्ष 5 महीने और 6 दिन की आयु में वृंदावन को छोड़ दिया था क्योंकि वे जरासंध से युद्ध नहीं करना चाहते थे. ज्ञात हो वृंदावन उस समय पूरे बृज धाम को कहा जाता था ये आजकल का वृंदावन उस पुराने वृंदावन का केवल एक भाग मात्र है सांदीपनि आश्रम।वृंदावन छोड़ने के बाद वे उज्जैन में सांदीपनि आश्रम में गये और वंहा ऋषि सांदीपनि जी से 16 कलाओं की शिक्षा प्राप्त की और उसके बाद गुजरात के सौराष्ट्र में द्वारकापुरी में चले गये थे। जरासंध से युद्ध को छोड़ देने के कारण वंहा उन्हें रणछोड़ भी कहा जाता है।उस समय द्वारका बहुत विस्तृत शहर था जो अरब सागर के किनारे द्वारका से लेकर पोरबंदर तक फैला हुआ था।
गोमती तट स्थित द्वारकाधीश मंदिर
वर्तमान गोमती तट स्थित द्वारकाधीश मंदिर आठ पटरानियों से सुशोभित है, पर राधा रानी इसमें शामिल नहीं हैं। आज जहां श्री द्वारकाधीश जी का मंदिर है वंहा उनका सिंहासन हुआ करता था , जिस पर वे अपनी प्रजा को समस्याओं को हल किया करते थे और इस कार्य में उनकी रानी श्री रुक्मणी माँ जो की स्वयम महालक्ष्मी जी थीं और बाकी की सात पटरानियाँ मदद करती थीं। इस द्वारका में श्रीमती राधा रानी जी का नाम नहीं लिया जाता क्योंकि वंहा श्री रुक्मणी कृष्ण का नाम लिया जाता है।
बेट द्वारका में होता था
श्रीकृष्ण का रात्रि विश्राम
दिन भर द्वारका का राजकाज देखकर भगवान श्री कृष्ण रात्रि को विश्राम करने अपने शयनकक्ष में जाते थे । आमोद प्रमोद होता था। इसे आज बेट द्वारका कहा जाता है। उस समय ये स्थान भी पूरी द्वारका का ही हिस्सा हुआ करता था परंतु श्री कृष्ण जी नें जब देह त्यागी तब पूरी द्वारका नगरी समुन्द्र में डूब गयी थी । केवल एक टापू जो बिल्कुल समुन्द्र के बीच में है वो बच गया।वह ही स्थान है बेट द्वारका है। स्कंद पुराण और महाभारत में बेट द्वारका का प्रमुखता से उल्लेख किया गया है। इतिहासकारों और विद्वानों ने बेट द्वारका को उस स्थान के रूप में पहचाना है जहाँ यादव वंश के सदस्य नावों से यात्रा करते हैं।
शंखोद्धार नाम का रहस्य
बेट द्वारका को भारतीय महाकाव्य महाभारत और स्कंद पुराण में प्राचीन शहर माना गया है। बेट द्वारका को शंखोद्धार भी कहा जाता है। यहाँ भगवान विष्णु ने राक्षस शंखासुर को संहार किया था। शंखोद्धार नाम के पीछे का दूसरा विचार इस द्वीप पर पाए जाने वाले शंख के बड़े स्रोतों के कारण भी है। हमारे प्राचीन महाकाव्य, ‘महाभारत’ में हम अक्सर बेट द्वारका का उल्लेख ‘अंतरद्वीप’ के नाम से जानते हैं, जहाँ यादव वंश के लोग नाव से यात्रा करते थे। इस द्वीप को शंखोधर के नाम से भी जाना जाता है। इसका कारण यह है कि यह शंखों की एक बड़ी संख्या और विविधता से भरा हुआ है।
बड़ौदा के गायकवाड़ वंश के आधीन भी रहा यह क्षेत्र
574 ई. के सिंहादित्य के शिलालेख में भी द्वारका का उल्लेख है। यह क्षेत्र पहले बड़ौदा राज्य के गायकवाड़ वंश के प्रशासन के अधीन था। 1857 के विद्रोह के दौरान, वाघेरों ने इस क्षेत्र पर हमला किया और इस पर कब्ज़ा कर लिया। 1859 के आसपास विद्रोहियों को उखाड़ फेंका गया और इस क्षेत्र को इसके वास्तविक शासकों ने वापस ले लिया। स्वतंत्रता के बाद, यह क्षेत्र सौराष्ट्र राज्य का हिस्सा बन गया, जो बाद में बॉम्बे राज्य में विलय हो गया। जब गुजरात राज्य को बॉम्बे राज्य से अलग किया गया, तो बेट द्वारका को गुजरात के जामनगर जिले के हिस्से के रूप में शामिल किया गया।
पुरातत्त्व के भरपूर प्रमाण
बेट द्वारका ने हमेशा पुरातत्वविदों की जिज्ञासा को जगाया है, शायद इसलिए क्योंकि पौराणिक दावा है कि यह स्थान वास्तव में पुराने समय में भगवान कृष्ण का मूल घर था। यह भी माना जाता है कि बेट द्वारका की भूमि का एक बड़ा हिस्सा अब लगातार तटीय कटाव के कारण समुद्र में डूब गया है। इसलिए पुरातत्वविदों ने द्वीप पर और द्वीप के आस-पास के समुद्र में कई खोजबीन की है ताकि इन दावों की प्रभावशीलता के बारे में कुछ सुराग मिल सके। राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान के समुद्री पुरातत्व केंद्र ने 1981-1994 के आसपास बेट द्वारका तट और अंतरज्वारीय क्षेत्र में कई खोजबीन की थी। इन खोजबीन के परिणामस्वरूप, मिट्टी के बर्तन आदि जैसी कई कलाकृतियों के अवशेष मिले और ये अवशेष हड़प्पा युग के प्रतीत होते हैं।
1980 के दशक में जांच के दौरान, सिदी बावा पीर दरगाह के पास मिट्टी के बर्तनों और हड़प्पा काल की अन्य कलाकृतियों के अवशेष पाए गए। 1982 में, 1500 ईसा पूर्व की 580 मीटर लंबी सुरक्षा दीवार मिली थी, जिसके बारे में माना जाता है कि यह समुद्री तूफ़ान के कारण क्षतिग्रस्त हो गई थी और जलमग्न हो गई थी। बरामद कलाकृतियों में एक स्वर्गीय हड़प्पा मुहर, एक खुदा हुआ जार और ताम्रकार का सांचा, एक तांबे का मछली का कांटा शामिल है। खुदाई के दौरान मिले जहाजों के टुकड़े और पत्थर के लंगर रोमनों के साथ ऐतिहासिक व्यापार संबंध का सुझाव देते हैं। द्वीप पर वर्तमान मंदिर अठारहवीं शताब्दी के अंत के आसपास बनाए गए हैं।
पहले नाव और
अब सड़क मार्ग से आवागमन
समुद्र के कुछ किलोमीटर अन्दर एक छोटे से द्वीप पर स्थित बेट द्वारका पहुँचने के लिए छोटा जहाज या नाव की सहायता लेनी पड़ती थी। पहले नाव में बैठने के बाद खुले आकाश के नीचे सुहाने सफ़र का आनंद लेते हुए लगभग आधे घंटे में बेट द्वारका पहुँच जाते थे। अब स्थिति बदल गई है। अब सुदर्शन सेतु की सहायता से एक अलग ही अंदाज में बेट द्वारिका की यात्रा सुगमता पूर्वक की जा सकती है। इस सेतु का उदघाटन 25 फरवरी 2024 को हुआ है। ये पुल ओखा शहर को बेट द्वारका से जोड़ता है, इसकी लंबाई 2.3 किलोमीटर है. ये एक केबल स्टेड ब्रिज है जो यहां का बेहतरीन टूरिस्ट स्पॉट बन गया है।
सुदर्शन सेतु की निराली छटा
प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी ने इस ड्रीम प्रोजेक्ट की नींव अक्टूबर, 2017 में रखी थी। इस ब्रिज का निर्माण 962 करोड़ रुपये की लागत से हुआ है। इस ब्रिज पर गीता के श्लोक लिखे गए हैं और ब्रिज के पिलर पर भगवान कृष्ण के माथे पर बने मोर के पंख को उकेरा गया है। जो काफी दूर से दिखाई देता है । द्वारका पहुंचने वाले टूरिस्ट को एक अलग रोमांच का मजा मिलता है। वे न सिर्फ नीले समुद्र के ऊपर से फर्राटा भरते हैं , बल्कि रात के दौरान रंग बिरंगी लाइटों में अदुभुत सौंदर्य को निहार ते भी है। इस ब्रिज पर 12 टूरिस्ट गैलरी भी बनाई गई हैं। जहां पर वे कुछ देर रुककर कच्छ की खाड़ी के समुद्र को देख सकते हैं। इतना ही नहीं टूरिस्ट डूबते हुए सूर्य को भी निहार सकते हैं।
सौर ऊर्जा के पैनल से जुड़ा सेतु
इस ब्रिज पर ऊपर सौर ऊर्जा के पैनल लगाकर बिजली का उत्पादन किया जा रहा है । इसी बिजली से यह ब्रिज रात में रंगीन रोशनी में जगमग होता है। सोलर पैनल से करीब 1 मेगवाॅट बिजली बनती है। शेष बची हुई बिजली ओखा टाउन को दी जा रही है।
बेट द्वारका के प्रमुख आकर्षण
द्वारकाधीश सहित पांच महल
बेट द्वारका पहुचने के बाद एक पतली सड़क से भगवान श्री कृष्ण के मुख्य मंदिर (जो एक समय भगवान कृष्ण और उनके परिवार का निवास था,) की ओर जाना जाता है। आगे बढ़ने पर गोमती-द्वारका की तरह ही एक बहुत बड़ी चहारदीवारी के घेरे के भीतर पांच बड़े-बड़े महल है जो दुमंजिले और तिमंजले है।इन पांचों महलों की सजावट ऐसी है कि आंखें चकाचौंध हो जाती हैं। इन मन्दिरों के किबाड़ों और चौखटों पर चांदी के पतरे चढ़े हैं। भगवान कृष्ण और उनकी मूर्ति चारों रानियों के सिंहासनों पर भी चांदी मढ़ी है। मूर्तियों का सिंगार बड़ा ही कीमती है। हीरे, मोती और सोने के गहने उनको पहनाये गए हैं। सच्ची जरी के कपड़ों से उनको सजाया गया है।
श्री वल्लभाचार्य जी द्वारा स्थापित द्वारिका धीश का मुख्य मंदिर
द्वारका द्वीप पर भगवान कृष्ण के निवास स्थान पर ही है, मंदिर में श्री कृष्ण की मूल मूर्ति उनकी पत्नी देवी रुक्मनि द्वारा स्थापित की गई है। मंदिर की वर्तमान संरचना 500 वर्ष पहले श्री वल्लभाचार्य जी द्वारा स्थापित की गई है। यह भी माना जाता है कि, श्री कृष्ण और उनके मित्र सुदामा इस जगह पर ही मिले थे और उन्होंने श्री कृष्ण को उपहार स्वरूप चावल भेंट किए। अतः अपनी द्वारका धाम यात्रा के दौरान, भक्तों द्वारा ब्राह्मणों को चावल दान करने की महिमा है। यहां द्वारकाधीश मंदिर और केशव जी मंदिर जैसे कई खूबसूरत मंदिर हैं। बेट द्वारकाधीश मंदिर में भक्तों की अपार आस्था है। यहां भगवान विष्णु की मछली, रुक्मिणी, त्रिविक्रम, देवी, राधा, लक्ष्मी, सत्यभामा, जाम्बवती, लक्ष्मी नारायण और अन्य देवताओं के स्वरूप विराजमान हैं। नाथद्वारा मंदिर की तरह बेट द्वारका के इस श्री कृष्ण मंदिर में भी शिखर नहीं है। अन्य घरों की तरह इसकी छत भी सामान्य रूप से सपाट है। यह इसलिए है कि द्वारकाधीश मंदिर परिभाषिक रूप से मंदिर है किन्तु वास्तव में यह कृष्ण का निवास स्थान था जहां वे अपने परिवार संग निवास करते थे।
बेट द्वारका के द्वारकाधीश मंदिर परिसर के भीतर कृष्ण के साथ साथ उनके परिवार के सदस्यों के भी मंदिर हैं। वे इस प्रकार हैं-
प्रमुख श्री कृष्ण जी का महल
प्रथम महल श्री कृष्ण का सबसे बड़ा महल है। इसमें कृष्ण जी की मूर्ति का निर्माण रुक्मिणी जी ने कराया था।उन्होंने यह प्रतिमा श्री कृष्ण द्वारा देह त्यागने के समय अर्थात आज से लगभग 5244 वर्षों पहले स्थापित की थी। हम भगवान कृष्ण को एक तेजस्वी राजा के रूप में देखते हैं जो ब्रह्मांड पर शासन करते हैं।उनकी मूर्ति को देख आपका मन प्रसन्न हो जाएगा। सम्पूर्ण दिवस उन्हें भिन्न भिन्न श्रृंगार में सज्जित किया जाता है। यदि आप यहाँ जन्माष्टमी के दिन आयें तो आप इस श्रृंगार की चरम सीमा के दर्शन कर सकते हैं। कृष्ण मंदिर के रजत द्वार पर आप सूर्य, चन्द्रमा, शंख, चक्र, गदा तथा पद्म देख सकते हैं। द्वार के निचले भाग में श्री कृष्ण ग्वाले के रूप में उत्कीर्णित (तराशे) हैं जो गौमाता के साथ खड़े अपनी बांसुरी बजा रहे हैं।
कृष्ण की रानियों के महल
कृष्ण की 1000 से ज़्यादा पत्नियाँ थीं। वर्तमान मंदिर परिसर में उनकी तीन सबसे महत्वपूर्ण रानियों – रुक्मिणी, जाम्बवती और सत्यभामा के महल/मंदिर हैं ।
सत्यभामा का महल
श्री कृष्ण जी के महल से दक्षिण दिशा में रानी सत्यभामा का महल है।सत्यभामा सत्राजित की कन्या और कृष्ण की चार मुख्य स्त्रियों में से एक और भूदेवी की अवतार हैं। इनसे कृष्ण को दस पुत्र हुए जिनके नाम भानु, सुभानु, स्वरभानु आदि थे। सूर्य ने जो स्यमंतक मणि सत्यभामा के पिता को दी थी उसे शतधन्वन ने सत्राजित की हत्या करके छीन लिया।
जाम्बवती की के महल
इस श्री कृष्ण जी के महल से दक्षिण में जाम्बवती की के महल बने है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने जामवंत को उनके घर जाकर दर्शन दिया था।स्यमंतक मणि की खोज में वे जामवंत के घर गए थे. यहां मणि देने के लिए मना करते हुए जामवंत ने पहले तो उनसे युद्ध किया, फिर जब हारने लगा तो श्रीराम को पुकारा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें राम रूप में दर्शन दिए।इसके बाद स्यमंतक मणि के साथ जामवंत ने अपनी कन्या जामवंती भी श्रीकृष्ण को समर्पित कर उनका ससुर बनने का सौभाग्य प्राप्त किया।
रूक्मिणी का महल
भगवान कृष्ण और देवी रुकमणि की एक गलती और दुर्वासा ऋषि शाप के कारण रुकमणी को गोमती तट स्थित द्वारकाधीश मंदिर में स्थान नहीं दिया गया है। पर भेट द्वारिका में ऐसा नहीं है। यहां श्री कृष्ण के महल के उत्तर दिशा में उन्हे प्रतिष्ठित किया गया है।
राधा रानी (गोलोक माता) का महल
श्री कृष्ण की मुख्य रानियों के अलावा, राधा को समर्पित एक अलग संरचना और मंदिर भी है जो उत्तर दिशा में है। राधा मंदिर को गोलोक माता मंदिर कहा जाता है। हालांकि वह वास्तव में कभी रानी नहीं थीं – उन्हें हमेशा रानी की तरह ही पूजा जाता है। मंदिर मुख्य कृष्ण मंदिर के मंदिरों के घेरे के बाहर है। यह दर्शाता है कि वह भगवान कृष्ण के लिए कितनी महत्वपूर्ण रहीं। वह कभी उनके साथ नहीं रहीं।राधा को द्वारका में गोलोक की महारानी के नाम से जानते हैं। राधा को समर्पित इस मंदिर के लकड़ी के द्वार बने हुए है। इसके नक्काशीदार कोष्ठक इस मंदिर की सुन्दरता में चार चाँद लगा रहे थे। जहां कृष्ण होंगे वहां राधा अवश्य होगी। किन्तु राधाजी कृष्ण की प्रिय सखी होते हुए भी यहाँ उनका मंदिर मुख्य मंदिर परिसर के बाहर स्थित है। परिसर के भीतर केवल श्री कृष्ण, उनके भ्राताओं, उनके पुत्रों तथा उनकी पत्नियों के मंदिर हैं।
इस मंदिर में राधाजी की उत्सव मूर्ति है अर्थात् मूर्ति अचल नहीं है। इसका अर्थ यह है कि उनकी मूर्ति सतत यहाँ स्थापित नहीं रहती बल्कि उन्हें विशेष रूप से यहाँ लाया व ले जाया जाता है। राधाजी की मूर्ति को आप देखना चाहें तो आपको यहाँ श्रावण मास में आना होगा। श्रावण मास में ही उनकी मूर्ति को एक मास के लिए बाहर निकाला जाता है। उनकी मूर्ति को शरद पूर्णिमा के दिन भी बाहर लाया जाता है।
चित्र विचित्र नक्काशिया
इन पांचों महलों की सजावट ऐसी है कि आंखें चकाचौंध हो जाती हैं। इन मन्दिरों के किबाड़ों और चौखटों पर चांदी के पतरे चढ़े हैं। भगवान कृष्ण और उनकी मूर्ति चारों रानियों के सिंहासनों पर भी चांदी मढ़ी है। मूर्तियों का सिंगार बड़ा ही कीमती है। हीरे, मोती और सोने के गहने उनको पहनाये गए हैं। सच्ची जरी के कपड़ों से उनको सजाया गया है।
भीति चित्र और चित्रांकन
भित्तियों पर कृष्णलीला के दृश्यउत्कीर्णित थे। हांडी से माखन चुराते बालकृष्ण, कदम्ब वन में बांसुरी बजाते कृष्ण, गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा में उठाये गोवर्धनधारी, गज को पूंछ से उठाये कृष्ण इत्यादि उनमें से मुख्य हैं। मेरे विचार से अन्य कई प्रमुख दृश्य भी चित्रित किये जा सकते थे। भित्तियों के अन्य रिक्त स्थान ज्यामितीय तथा पुष्पों के आकारों से उत्कीर्णित हैं।
रणछोड़ जी मंदिर
रणछोड़ जी के मन्दिर की ऊपरी मंजिलें देखने योग्य है। यहां भगवान की सेज है। झूलने के लिए झूला है। खेलने के लिए चौपड़ है। दीवारों में बड़े-बड़े शीशे लगे हैं। इन पांचों मन्दिरों के अपने-अलग भण्डारे है।
सुदामा महाराज की गद्दी
मुख्य मंदिर के पीछे सुदामा महाराज की गद्दी स्थित है, जहां ऐसी धारणा है कि अगर कोई पैसे दान करता है और उनके बैठने की जगह से चावल लेता है। कहा जाता है कि गद्दी और इसे अपने घर के चावल भंडार में जोड़ दें तो सुदामा महाराज की तरह उनके घर में कभी भी भोजन की कमी नहीं होगी।
बलराम जी (त्रिविक्रम ) का मंदिर
श्री कृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता बलराम को यहाँ त्रिविक्रम रूप में दर्शाया गया है। चार भुजाधारी त्रिविक्रम की काले पत्थर की मूर्ति प्राचीन प्रतीत हो रही है। उन्हें भी विष्णू कृष्ण के विस्तार के रुप में माना जाता है।
प्रद्युमन जी का मंदिर
प्रद्युमन का अर्थ सबसे शक्ति शाली होता है। भेट द्वारका में प्रद्युमन कल्याण राय के रूप में दर्शाए गए हैं। प्रद्युम्न भी हिन्दू भगवान विष्णु का एक अन्य नाम है, जिसे 24 केशव नामों में से एक बताया गया है।प्रद्युम्न कृष्ण के पुत्र और आदिनारायण के इकसठवें पोते थे। उनकी माँ रुक्मिणी थीं, जिनके अनुरोध पर कृष्ण ने विदर्भ से उनके स्वयंवर के दौरान उनसे विवाह किया था। प्रद्युम्न का जन्म द्वारका में हुआ था और वे कामदेव के पुनर्जन्म थे , जो शिव के क्रोध से भस्म हो गए थे ।
पुरुषोत्तम राय(श्री हरि)का मंदिर
पुरुषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है। इस अधि मास में श्री हरि की पूजा होती है और श्रीमद् भागवत कथा व शिवपुराण सुनने के साथ मथुरा वृंदावन और द्वारिका का विशेष महत्व है।भूरे बलुआ पत्थर में बनी पुरुषोत्तम राय की मूर्ति के बाजू उनकी चारपाई रखी हुई है।
देवकी मंदिर
बेट द्वारका के कृष्ण मंदिर में एक महत्वपूर्ण मंदिर उनकी जन्मदात्री माँ को समर्पित है। यह मुख्य कृष्ण मंदिर के ठीक सामने है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण को सुबह अपनी आँखें खोलकर अपनी माँ को देखना पसंद था।
देवकी को समर्पित मंदिर आपने कहीं नहीं देखा होगा। कृष्ण की मूर्ति जिस आँगन में है वहीं भूरे बलुआ पत्थर में बनी देवकी की भी प्रतिमा स्थापित है। आप यहाँ एक आश्चर्यजनक दृश्य देखेंगे। द्वारका में माता यशोदा का कहीं भी उल्लेख नहीं है। कृष्ण को समर्पित मंदिर के भीतर उनकी माता के रूप में देवकी ही विराजमान रहती हैं।
अम्बा माता मंदिर
अम्बा माता शाही यादवों की कुलदेवी या पारिवारिक देवी थीं। श्री कृष्ण और उनके परिवार द्वारा उनकी पूजा की जाती थी। उनका मंदिर परिसर में एक छोटा सा प्रांगण है और यहीं पर आप चावल दान के लिए कर सकते हैं। मंदिर का यह हिस्सा बेट द्वारका मंदिर का सबसे पुराना मूल हिस्सा है।
कई अन्य मंदिर
इन विशेष मन्दिरों के सिवा और भी बहुत-से मन्दिर इस चहारदीवारी के अन्दर है। बेट द्वारका में कई छोटे मंदिर हैं जो हिंदू देवताओं के कई देवी-देवताओं को समर्पित हैं जैसे कि लक्ष्मी, भगवान विष्णु का मत्स्य रूप । टीकमजी, माधवजी और गरूड़ के मन्दिर है। इनके सिवाय साक्षी- गोपाल, लक्ष्मी नारायण और गोवर्धन नाथजी के मन्दिर है। ये सब मन्दिर भी खूब सजे- सजाये हैं। इनमें भी सोने-चांदी का काम बहुत है। कृष्ण के परिवार को समर्पित कई अन्य मंदिर हैं, जैसे बलराम – उनके सबसे बड़े भाई का है। द्वारका और बेट द्वारका की कहानी में उन्हें एक महत्वपूर्ण तरीके से शामिल किया गया है।
मुख्य प्रांगण की परिक्रमा करने पर अन्य कई मंदिर देखें जा सकते हैं ।
ये मंदिर क्रमवार कुछ इस प्रकार हैं-
महालक्ष्मी मंदिर
कृष्ण मंदिर के भीतर महालक्ष्मी का मंदिर है । यहाँ रुक्मिणी को महालक्ष्मी का अवतार माना जाता है। अतः महा लक्ष्मी को कृष्ण की पटरानी के रूप में स्थापित किया गया है। यहाँ उनका अपना मंदिर है जहां काले पत्थर में उनकी प्रतिमा स्थापित की गयी है।
माधव राय जी का मंदिर
माधव राय कृष्ण के काका थे। प्रयाग में आयोजित होने वाले कुम्भ मेले के वे पीठासीन देव रहे हैं।माधव राय जी का एक और प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर है जो भगवान कृष्ण की रुक्मिणी जी से विवाह की लीला की याद में बनाया गया है। मंदिर में भगवान माधव राय और उनके भाई भगवान त्रिकम राय (बलराम) के सबसे उत्तम विग्रह हैं और यह इस गांव के मध्य में स्थित है। हर साल राम नवमी के दिन से शुरू होने वाले इस लीला का उत्सव माधवपुर घेड में पांच दिनों तक सांस्कृतिक मेले – श्री ठाकोरजी के विवाह उत्सव में विवाह विधि और रथयात्रा के प्रदर्शन के साथ मनाया जाता है। वहां से आगे जाने पर गोवर्धन मंदिर का दर्शन किया जा सकता है।
शेषावतार मंदिर
बेट द्वारिका क्षेत्र में आगे शेषावतार मंदिर में शेषावतार की प्रतिमा थी जिस के ऊपर शेषनाग की छत्री थी।
सत्यनारायण मंदिर
परिसर में कलियुग के देव सत्यनारायण भगवान् का भी मंदिर देखा जा सकता है। मंदिर के भीतर जाकर संगमरमर में बनी उनकी सुन्दर मूर्ति देखी जा सकती है।
साक्षी गोपाल मंदिर
साक्षी गोपाल एक उत्सव मूर्ति है जो बेट द्वारका के द्वारकाधीशजी की अचल मूर्ति की एवज में यात्रा करती है। इन्हें द्वारका धाम की तीर्थ यात्रा का देव माना जाता है। अतः जब भी आप द्वारका धाम की तीर्थ यात्रा पर यहाँ आयें, साक्षी गोपाल आपकी यात्रा के दर्शन करेंगे तथा आपका संरक्षण भी करेंगे।
लक्ष्मी नारायण मंदिर
लक्ष्मी नारायण, अर्थात् शक्ति समेत विष्णु। बेट द्वारका के द्वारकाधीश मंदिर में लक्ष्मीनारायण की जोड़ी की मूर्ति भी प्रतिष्ठापित है जो काले पत्थर से निर्मित है।
अनिरुद्ध का मंदिर
यहाँ कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के मंदिर भी हैं ।अनिरुद्ध का अर्थ ‘अजेय’होता है। हिंदू पौराणिक कथाओं में एक पात्र है, जो प्रद्युम्न और रुक्मवती का पुत्र और कृष्ण और रुक्मिणी का पोता है।
ऋषि दुर्वासा का मंदिर
कृष्ण के कुलगुरु अर्थात् ऋषि दुर्वासा को समर्पित भी यहाँ एक मंदिर स्थापित है।
ऋषी के शाप से द्वारका में कृष्ण मंदिर में
रुक्मणि को स्थान नहीं मिल पाया है।
गरुड़ मंदिर
गरुड़ जी का भी द्वारकाधीश मंदिर के भीतर यथोचित स्थान है। विष्णु अर्थात कृष्ण का वाहन गरुड़, भगवान् कृष्ण को प्रत्येक दिवस प्रातः अपनी पीठ पर बिठाकर उनकी राजधानी गोमती द्वारका ले जाते थे तथा सांझ होते ही उन्हें बेट द्वारका में उनके महल में ले आते थे।
गणेश मंदिर
द्वारकाधीश मंदिर परिसर के भीतर प्रवेश करते से ही जो प्रथम देव के आप दर्शन करेंगे वे हैं गणेशजी। इस गणेश मंदिर में गणेशजी की खड़ी प्रतिमा स्थापित है।
मीरा का समाधि स्थल
मीराबाई मंदिर बेट द्वारका की गलियों के किनारे है। मीराबाई समाधि जोधपुर की राजकुमारी को समर्पित है, जिनके बारे में माना जाता है कि वे भगवान कृष्ण में विलीन हो गई थीं। उनका एकमात्र अवशेष उनकी साड़ी का एक हिस्सा था।
माँ मीरा जी का अंतिम समय का बेट द्वारका में बीता जो अब भी है। मान्यताओं के अनुसार वर्ष 1547 में बेट द्वारका में वो कृष्ण भक्ति करते-करते श्रीकृष्ण की मूर्ति में समां गईं थी। मान्यता है कि मीरा पूर्व-जन्म में वृंदावन की एक गोपी थीं और उन दिनों वह राधा की सहेली थीं। वे मन ही मन भगवान श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं।मीराबाई ने अपने जीवन के अंतिम समय में द्वारका में भगवान कृष्ण के मंदिर में समाधि ली थी। उन्होंने रणछोड़जी (कृष्ण) के मंदिर में रात बिताने की अनुमति मांगी और अगली सुबह उन्हें गायब पाया गया। लोकप्रिय मान्यता के अनुसार, वह चमत्कारिक रूप से रणछोड़जी की छवि में विलीन हो गईं।यह कहा जाता है कि वे भगवान कृष्ण की मूर्ति में समा गईं, अर्थात उनकी मृत्यु आत्मसमर्पण और भक्ति के उच्चतम स्तर पर हुई।
बेट द्वारका के तालाब और सरोवर
बेट द्वारका में रणछोड़ तालाब, रत्न तालाब, कचौरी तालाब और शंख तालाब आदि कई तालाब बने है। जगह जगह नहाने के लिए घाट बने हैं। लोग इन तालाबों में स्नान करते हैं और मन्दिर में फूल आदि चढ़ाते हैं।
तालाबों के आस-पास के मन्दिर
इन तालाबों के आस-पास बहुत-से मन्दिर हैं। इनमें ‘मुरली मनोहर’, ‘नीलकण्ठ महादेव’, ‘रामचन्द्रजी’ और ‘शंख-नारायण’ के मन्दिर प्रमुख हैं।
शंख तालाब और शंख नारायण मंदिर
रणछोड़ के मन्दिर से डेढ़ मील चलकर शंख-तालाब आता है। इस जगह भगवान कृष्ण ने शंख नामक राक्षस को मारा था। इसके किनारे पर शंख नारायण का मन्दिर है। शंख-तालाब में नहाकर शंख नारायण के दर्शन करने से बड़ा पुण्य होता है। शंख सरोवर तदनुसार विशाल प्रतीत होता है। इसके चारों ओर घाट तथा पौड़ियाँ बाँधी हुई हैं। जल वहां उड़ते पक्षियों की प्यास बुझाता रहा है। सरोवर के प्रवेश द्वार के समीप ही नीलकंठ का छोटा सा मंदिर था। इसका एक भाग प्राचीन तथा दूसरा भाग अपेक्षाकृत नवीन व जागृत था।
रणछोड़ तलाव
नकाशीदार प्रवेश पथ युक्त यह सरोवर भी छोटा नहीं था। इसकी निर्मिती, इस क्षेत्र के शासक अर्थात् बरोडा के गायकवाड वंश ने की थी।
सोना नी द्वारका (स्वर्ण द्वारका)
हाल ही में निर्मित सोना नी द्वारका (स्वर्ण द्वारका) बेट द्वारका के गौरवशाली अतीत को दर्शाता है। कहा जाता है कि इस पौराणिक शहर में खूबसूरत महल हैं जो आश्चर्यजनक उद्यानों और चौड़ी खुली सड़कों से अलग हैं जो उन्हें जोड़ती हैं। संग्रहालय उस समय के जीवन को दर्शाने का प्रयास करता है। महाभारत और भगवान कृष्ण के जीवन से दृश्यों का पुनर्निर्माण किया गया है।
हनुमान दंडी मंदिर
बेट द्वारका द्वीप पर पिता और पुत्र के मिलन को दर्शाता एक छोटा सा मंदिर मौजूद है। मंदिर के चारों ओर कई यज्ञ कुंड हैं और मंदिर के अंदर आपको पिता और पुत्र दोनों की मूर्तियाँ मिलेंगी।
बेट द्वारका के हनुमान दंडी मंदिर में भगवान हनुमान और मकरध्वज की मूर्तियाँ स्थापित हैं; मकरध्वज हनुमान के पुत्र हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, हनुमान जी के शरीर से पसीने की एक बूंद एक मछली ने पी ली थी, जिसने बाद में एक पुत्र को जन्म दिया जिसे मकरध्वज नाम दिया गया।सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के लिए दांडी हनुमान मंदिर एक दर्शनीय स्थल है।यह बेट द्वारका के मुख्य श्री कृष्ण मंदिर से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बेट- द्वारका के टापू का पूरब की तरफ ऊंचे टीले को हनुमानजी का टीला कहते है।
परिसर में ही नारियल चढ़ाने और धूप द्वीप जलाने की भी व्यस्था है।इस मंदिर को कोई भी राजकीय संरक्षण प्राप्त नहीं है। बल्कि यह सदैव पूर्ण रूप से जनता का मंदिर रहा है। मंदिर के चारों ओर एक धर्मशाला अवश्य बाँध दी गयी है।
मंदिर का भीतरी भाग अत्यंत छोटा है। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो यह कोई छोटा सा गुफा मंदिर हो। भीतर दो मूर्तियाँ दिखीं। एक मूर्ति हनुमानजी की थी जो धरती में समाती हुई प्रतीत होती है। दूसरी मूर्ति हनुमाजी के पुत्र मकरध्वज की है। अतः इसे पिता पुत्र का मंदिर कहा जाता है। यहाँ के निवासियों की मान्यता है कि यदि आप इस मंदिर में वास करते हनुमानजी को सुपारी अर्पण करें तो वे आपकी सर्व इच्छा पूर्ण करेंगे।
हनुमान दांडी समुद्र तट
हनुमान दंडी मंदिर के पास ही एक सुंदर समुद्र तट है जिसे हनुमान दांडी समुद्र तट कहा जाता है। मंदिर जाते समय आप इसे भी देख सकते हैं।यहां समंदर की लहरों और रेत का लुत्फ उठाया जा सकता है।
चौरासी धुना
भेंट द्वारका टापू में भगवान द्वारकाधीश के मंदिर से 7 कि॰मी॰ की दूरी पर और हनुमानजी महाराज से और आगे समुद्र तट पर चौरासी धुना नामक एक प्राचीन एवं एतिहासिक तीर्थ स्थल है। उदासीन संप्रदाय के सुप्रसिद्ध संत और प्रख्यात इतिहास लेखक, निर्वाण थडा तीर्थ, श्री पंचयाती अखाडा बड़ा उदासीन के पीठाधीश्वर श्री महंत रघुमुनी जी के अनुसार ब्रह्माजी के चारों मानसिक पुत्रो सनक, सनंदन, सनतकुमार और सनातन ने ब्रह्माजी की श्रृष्टि-संरचना की आज्ञा को न मानकर उदासीन संप्रदाय की स्थापना की और मृत्यु-लोक में विविध स्थानों पर भ्रमण करते हुए भेंट द्वारका में भी आये। उनके साथ उनके अनुयायियों के रूप में अस्सी (80)अन्य संत भी साथ थें। इस प्रकार चार सनतकुमार और 80 अनुयायी उदासीन संतो को जोड़कर 84 की संख्या पूर्ण होती है। इन्ही 84 आदि दिव्य उदासीन संतो ने यहाँ पर चौरासी धुने स्थापित कर साधना और तपस्चर्या की और ब्रह्माजी को एक एक धुने की एक लाख महिमा को बताया, तथा चौरासी धुनो के प्रति स्वरुप चौरासी लाख योनिया निर्मित करने का सांकेतिक उपदेश दिया। इस कारण से यह स्थान चौरासी धुना के नाम से जग में ख्यात हुआ।
कालांतर में उदासीन संप्रदाय के अंतिम आचार्य जगतगुरु उदासिनाचार्य श्री चन्द्र भगवान इस स्थान पर आये और पुनः सनकादिक ऋषियों के द्वारा स्थापित चौरासी धुनो को जागृत कर पुनःप्रज्वलित किया और उदासीन संप्रदाय के एक तीर्थ के रूप में इसे महिमामंडित किया। यह स्थान आज भी उदासीन संप्रदाय के अधीन है और वहां पर उदासी संत निवास करते हैं। आने वाले यात्रियों, भक्तों एवं संतों की निवास, भोजन आदि की व्यवस्था भी निःशुल्क रूप से चौरासी धुना उदासीन आश्रम के द्वारा की जाती है।
ऐसी अवधारणा है कि चौरासी धुनो के दर्शन करने से मनुष्य की लाख चौरासी कट जाती है, अर्थात उसे चौरासी लाख योनियों में भटकना नहीं पड़ता और वह मुक्त हो जाता है।
स्वामीनारायण मंदिर
हनुमान डांडी, मीरा बाई चौक
स्वामीनारायण मंदिर बेट द्वारका में आवास प्रदान करता है। इस गेस्ट हाउस में एक बगीचा और निःशुल्क निजी पार्किंग है। निजी बाथरूम की सुविधा के साथ, गेस्ट हाउस की इकाइयों में निःशुल्क वाईफ़ाई भी है, जबकि चयनित कमरों में छत भी है।
केशवराईजी मंदिर
निकट शंख सरोवर
श्री केशवराईजी मंदिर भारत के गुजरात में बेट द्वारका द्वीप पर स्थित है। यह भगवान कृष्ण को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है जिसे पुष्करना ब्राह्मण समुदाय द्वारा बनाया गया था। यह पवित्र झील “शंख सरोवर” के पास स्थित है जो बेट जेट्टी और द्वारकाधीश मंदिर से 1 किमी दूर है।
यह बेट द्वारका में भगवान कृष्ण का मंदिर है। माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना वल्लभाचार्य ने की थी और यह लगभग 500 साल पुराना है। कहा जाता है कि यह मंदिर भगवान कृष्ण के बेट द्वारका स्थित निवास स्थान पर स्थित है और मंदिर की मूल मूर्ति भगवान कृष्ण की पत्नी देवी रुक्मणी द्वारा स्थापित की गई थी। यह मूर्ति द्वारकाधीश मंदिर की मूर्ति से काफी मिलती जुलती है । फर्क सिर्फ इतना है कि इस मंदिर में मूर्ति शंख को तिरछी स्थिति में पकड़े हुए है। इस मंदिर में चढ़ाया जाने वाला मुख्य प्रसाद ‘चावल’ है और यह निश्चित रूप से उस पौराणिक कथा की याद दिलाता है जिसमें बताया गया है कि कैसे सुदामा; भगवान कृष्ण के मित्र ने उन्हें उपहार के रूप में ‘चावल’ लाए थे।
जैन मंदिर
बेट द्वारका में जैन मंदिरों का एक समूह भी है, जहां 24 प्रसिद्ध जैन तीर्थंकरों को श्रद्धांजलि अर्पित की जा सकती है।
गुरुद्वारा भाई मोहाकम सिंहजी
बेट द्वारका गुरुद्वारा की स्थापना भाई मोहकम सिंह ने की थी , जिनका जन्म यहीं हुआ था। संत गुरु गोविंद सिंह के पंच प्यारे में से एक थे और इसलिए, इस गुरुद्वारे को सिखों द्वारा बहुत पवित्र माना जाता है। यह सिख धर्म का पूजा स्थल है जो बेट द्वारका के बुधिया इलाके में स्थित है. इसका निर्माण साल 1999 में कराया गया था. हालांकि यहां सिखों की आबादी काफी कम है, फिर भी इस गुरुद्वारे की अहमियत काफी ज्यादा है।
फेरी राइड (नौका विहार)
जब भी आप बेट द्वारका आएं तो एक बार लोकल फेरी राइड जरूर लें, इसके जरिए आप कच्छ की खाड़ी में घूमने का लुत्फ उठा सकते हैं. अगर चाहें तो प्राइवेट बोट लेकर भी समंदर घूम सकते हैं।
डनी प्वाइंट
बेट के सबसे दक्षिण-पूर्वी छोर को डनी पॉइंट के नाम से जाना जाता है जो तीन तरफ से समुद्र से घिरा हुआ है। डन्नी पॉइंट भूमि की एक संकरी पट्टी है। यह समुद्र तट प्राचीन है और इसकी सतह से ही समुद्री जीवन को देखने के लिए एक आदर्श स्थान है।यह गुजरात में इकोटूरिज्म के लिए विकसित किया गया पहला स्थान है।डनी प्वाइंट बेट द्वारका का एक छिपा हुआ खजाना है, ये सी बीच नेचर लवर्स के लिए एक बेहतरीन जगह है जहां समंदर की लहरों की आवाज आपको बेहद सुकून देगी. बिना यहां आए इस आइलैंड का सफर अधूरा है।
अभय माता जी मंदिर
बेट द्वारका
यह बेट द्वारका द्वीप के सुदूर दक्षिणी कोने पर स्थित एक छोटा सा मंदिर है और यह देवी अभय माता का है।अभय माता मंदिर समुद्र तटों के करीब है ।
दरगाह
बेट द्वारका क्षेत्र में इस्लामी आस्था को दर्शाने वाली दो महत्वपूर्ण दरगाहें भी हैं। सिदी बावा पीर दरगाह और हाजी किरमई दरगाह बेट द्वारका में मुसलमानों के लिए दो पवित्र तीर्थस्थल है।
अन्य आकर्षण स्थलो की सूची
ऊपर वर्णित स्थलों का अवलोकन करने के उपरान्त यादि समय हो तो इन धर्म स्थलों का भी अवलोकन किया जा सकता है-
करोड़पति महादेव मन्दिर
बेट द्वारका
श्री मोमी माताजी मंदिर
वेट द्वारका,
रंडल माताजी मंदिर
द्वारकाधीश रोड, वेट द्वारका
आवड माताजी मंदिर
वेट द्वारका
गत्राद माता जी मंदिर
बेट द्वारका
जय भैरो नाथ मंदिर
भेंट द्वारिकाधीश मंदिर रोड़
वेट द्वारका
श्री गोल्डन द्वारिका होली प्लेस
यह मुख्य द्वारकाधीष मंदिर से थोड़ी दूर पर स्थित है।
ढिंगेश्वर महादेव मन्दिर
करोड़ पति महादेव मन्दिर से ऊपर की ओर,बेट द्वारका
महादेव मंदिर
वेट द्वारका, गुजरात
श्री हनुमान टेकरी
वेट द्वारका
भूत्रय महादेव मंदिर
वेट द्वारका, गुजरात
अभ्याय माता टेंपल
आराम्भादा मीठापुर ,बेट द्वारका
श्री महाप्रभुजी बैठक
वेट द्वारका, गुजरात
क्योरिया राम जानकी मंदिर
रामानुज कोट वेट द्वारका
आशापुरा माता मंदिर
वेट द्वारका, गुजरात
घधेची माताजी मंदिर
ओखा, वेट द्वारका, गुजरात
हनुमान-चट्टी
वेट द्वारका, गुजरात
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।)
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