प्रो० शेर सिंह जी (बाघपुर बेरी)
लेखक :- डॉ० रणजीत सिंह जी
पुस्तक :- पंजाब का हिन्दी सत्याग्रह
प्रस्तुति :- अमित सिवाहा
सन् १९५७ के आम चुनाव में प्रचार समय ‘ सच्चर फार्मूले ‘ के कारण बलात् रूप से अम्बाला डिवीजन के स्कूली छात्रों पर लादी गई पंजाबी को हटाने का संकल्प बार – बार दोहराया गया था । इसके लिए चुनाव के उपरान्त हिन्दी आन्दोलन चलाने की भी घोषणाएं होती रहीं । यह आन्दोलन चुनाव से पूर्व ही कुछ गति पकड़ चुका था । अत : चुनावों के कारण शिथिल होनेवाले हिन्दी आंदोलन ‘ को सक्रिय करने की आवश्यकता प्रतीत हुई । चुनाव में प्रो० शेरसिंह की जीत के उपरान्त आचार्य भगवान्देव तथा जगदेवसिंह सिद्धान्ती ने प्रोफेसर साहेब से कहा कि वचन के अनुसार अब हमें हिन्दी आन्दोलन ‘ चलाने पर विचार करना चाहिए । यदि ऐसा नहीं किया गया , तो लोगों का हम पर से विश्वास उठ जाएगा ।
इनकी बात को सुनकर प्रोफेसर साहेब बोले कि चुनाव से पूर्व एवं इनके मन्त्री रहते कैरों ने यह वायदा किया था कि वे हरयाणा से पंजाबी भाषा के बलात् को हटा देंगे । अत : आन्दोलन आरम्भ करने से पूर्व एक बार कैरों से मिल लिया जाए । प्रोफेसर साहेब कैरों से मिलने दिल्ली चले गए । प्रोफेसर साहेब ने कैरों से कहा कि आपने पंजाबी की बलात् पढ़ाई को हटाने का वचन दिया था । आप मुख्यमंत्री बन चुके हैं । अत : वायदा पूरा होना ही चाहिए । परन्तु कैरों ने पंजाबी की बलात् पढ़ाई को समाप्त करने से अस्वीकार कर दिया । कैरों के वचनाघात से प्रोफेसर साहेब को बड़ा भारी धक्का लगा । क्योंकि प्रोफेसर साहेब के कहने से ही आन्दोलन को शिथिल किया गया था ।
अन्त में कोई चारा न देखकर १९५७ ई० के अप्रैल महीने में ‘ हिन्दी आन्दोलन ‘ के सत्याग्रह की घोषणा कर दी गई और मई मास में इस सत्याग्रह में बड़ी तेजी आगई । ‘ हिन्दी आन्दोलन ‘ को असफल बनाने के लिए सरकारी तन्त्र जुट गया । हिन्दी आन्दोलन ‘ को असफल बनाने के लिए प्रोफेसर साहेब को तरह – तरह के प्रलोभन दिए जाने लगे ।
इस समय पंजाब के राज्यपाल सी.पी.एन. सिंह थे । उनके साथ प्रोफेसर साहेब के अच्छे सम्बन्ध थे । हिन्दी आन्दोलन ‘ के दिनों में राज्यपाल महोदय ने प्रोफेसर साहेब को बुलाया और कहा कि वे चाहते हैं कि आप कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति ( उस समय इस पद का नाम उप – कुलपति था ) का कार्यभार सम्भाल लें । प्रोफेसर साहेब ने इस प्रस्ताव का धन्यवाद करते हुए अपनी सौम्य शैली में कहा कि ये तो हिन्दी आन्दोलन ‘ में सक्रिय भाग ले रहे हैं , ऐसी स्थिति में किसी भी प्रकार के पद को स्वीकार करना इनके लिए उचित नहीं होगा । इनके लिए हिन्दी का कार्य करना कुलपति के पद के ग्रहण करने से कहीं अधिक जनोपयोगी होगा । लालच में पड़कर , ये अपनी राजनैतिक और सामाजिक आत्महत्या का दोष नहीं लेना चाहते ।
कैरों ने देखा के यह वार खाली गया , तो उसने महात्मा खुशहालचन्द खुर्सन्द के पुत्र यश के प्रभाव को अपना तीर बनाया । प्रोफेसर साहेब के श्वसुर बुद्धदेव विद्यालंकार तथा खुशहालचन्द के घनिष्ठ सम्बन्ध थे , यहां तक कि प्रोफेसर साहेब के विवाह में यश ( मिलाप समाचार पत्र ) सपरिवार आए थे । गुरमुखसिंह मुसाफिर के माध्यम से कैरों यश द्वारा प्रोफेसर साहेब को पंजाब कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष पद को देने का प्रस्ताव पहुंचाया । प्रोफेसर साहेब ने यश को कहा कि आर्यसमाजी होने के नाते चाहिए तो यह कि आप आन्दोलन चलाने में हमारी सहायता करें , परन्तु इसके विपरीत आप तो पथभ्रष्ट करने आए हो ।
हिन्दी आन्दोलन में तेजी आती गई । हिन्दी आन्दोलन को कुचलने और उन कांग्रेसी विधायकों को धमकाने के लिए , जो कि हिन्दी आन्दोलन में सक्रिय भाग ले रहे थे , कैरों ने मुरार जी भाई को बुलाया । मुरार जी भाई ने पंजाब के कांग्रेसी विधायकों की बैठक बुलाई और कहा आप लोगों को कैरों के हाथ मजबूत करने चाहिएं । इस भाषा के झगड़े में जो विधायक भाग ले रहे हैं , वे ठीक नहीं कर रहे हैं , उनके लिए कांग्रेस में कोई स्थान नहीं है । स्पष्टत : यह बात प्रोफेसर साहेब को लक्ष्य करके कही गई थी । प्रोफेसर साहेब ने उठकर कहा कि ये कुछ जानना चाहते हैं । क्या आप बताने की कृपा करेंगे कि कांग्रेस पार्टी के संविधान में द्विभाषी राज्यों की क्या भाषा नीति बनी है ? प्रोफेसर साहेब ने आगे कहा कि ये पंजाबी भाषा के विरोधी नहीं हैं , परन्तु इस भाषा को बलात् हरयाणा पर थोपने के विरोधी हैं । इसके साथ ही प्रोफेसर साहेब ने कहा कि बम्बई तथा पंजाब ही दो ऐसे प्रान्त हैं , जो कि द्विभाषी हैं । इन दोनों प्रान्तों की भाषा नीति के सम्बन्ध में समानता होनी चाहिए । यहां बलात् पंजाबी थोपी जा रही है , जबकि बम्बई में गुजराती और मराठी के सम्बन्ध में बलात् नहीं है । आप बम्बई के मुख्यमन्त्री हैं , यदि वहां पर गुजराती क्षेत्र पर बलात् मराठी पढ़ाने का प्रावधान कर देते हैं , तो हमें हरयाणा में पंजाबी पढ़ने पर कोई आपत्ति नहीं ।
प्रोफेसर साहेब की बात का उत्तर मुरार जी भाई के पास नहीं था और वे ऐसे प्रश्न की आशा भी नहीं करते थे । इतने में मंच से उतरकर कैरों प्रोफेसर साहेब के पास आए और कहा कि छोड़ो इस बात को । बैठक के बाद मुरार जी भाई ने प्रोफेसर साहेब को बुलाकर कहा कि प्रात : काल राजभवन में मिलो । प्रोफेसर साहेब अगले दिन प्रात : काल राजभवन पहुंच गये । मुरार जी भाई ने प्रोफेसर साहेब को कहा कि तुम्हें इस अवसर पर बहस नहीं करनी चाहिए थी । प्रोफेसर साहेब के कथनानुसार मुरार जी भाई के बोलने के ढंग से यह स्पष्ट झलक रहा था , मानो वे कल की घटना को अपना अपमान समझ रहे थे । मुरार जी भाई के कथन का प्रोफेसर साहेब पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और ये हिन्दी सम्बन्धी गतिविधियों में उसी प्रकार लगे रहे ।
इसी अवधि में फिरोजपुर जेल में हिन्दी सत्याग्रहियों पर लाठीचार्ज होगया । इस घटना में जहां अनेक सत्याग्रही घायल हुए , वहां सुमेरसिंह ( नयाबांस , जिला रोहतक ) नामक सत्याग्रही भी मारा गया । फिरोजपुर जेल की घटना ने भारतवर्ष के हिन्दीप्रेमियों को हिला दिया । इस घटना का जिला रोहतक पर साक्षात् प्रभाव होना था । कहीं स्थिति भड़क न जाए , यह सोचकर कैरों ने प्रोफेसर साहेब के वारण्ट गिरफ्तारी जारी कर दिए । इस समय प्रोफेसर साहेब दिल्ली में थे ।
फिरोजपुर की घटना की जानकारी के लिए घनश्याम गुप्त ने फिरोजपुर जाने का कार्यक्रम बनाया । गुप्त जी के साथ अलगूराय शास्त्री भी इस विचार से जाने के लिए तैयार होगये ( शास्त्री जी कांग्रेस के उच्चकोटि के नेता थे और मन्त्री भी रह चुके थे ) कि सारी स्थिति आंखों से देखकर पं ० नेहरु को अवगत कराएंगे । इसी समय प्रोफेसर साहेब ने उत्तर दिया कि वे तो नहीं जा सकते , क्योंकि उनके तो वारण्ट हैं । इस बात को सुनकर गुप्त जी ने कहा कि रोहतक तक तो हमारे साथ चलना चाहिए । वारण्ट की बात सुनकर शास्त्री जी बोले कि देखो यह कैरों कैसा मूर्ख है कि प्रोफेसर के वारण्ट जारी कर दिए । यदि आन्दोलन के विषय में कोई समझौता होगा , तो किससे होगा , फिर भी इसे जेल से प्रोफेसर को छोड़कर बातचीत करनी पड़ेगा । अलगूराय शास्त्री ने प्रोफेसर शेरसिंह के वारण्ट के विषय में पुरुषोत्तमदास टण्डन को सूचित कर दिया ।
प्रोफेसर साहेब ने इनके साथ चलने से पूर्व पुलिस अधीक्षक रोहतक को टेलीफोन करवा दिया कि वे रात की गाड़ी से साढ़े ग्यारह बजे रोहतक पहुंच रहे हैं और गिरफ्तारी के लिए पुलिस भेजदें । प्रोफेसर साहेब रात के साढ़े ग्यारह बजे रोहतक रेलवे स्टेशन पर उतरे और लगभग २० मिनट इस प्रतीक्षा में खड़े रहे कि शायद पुलिस आजाए और गिरफ्तार करले । धीरे – धीरे रेलवे स्टेशन का प्लेटफार्म लोगों से खाली होगया और पुलिस कहीं दिखाई नहीं दी । अन्त में प्रोफेसर साहेब झज्जर रोड पर लिए गए अपने किराये के मकान पर चले गए । मकान पर पहुंचकर प्रोफेसर साहेब ने पुलिस अधीक्षक को टेलीफोन किया कि वे आगये हैं और इससे पूर्व भी दिल्ली से आपको सूचना पहुंचाई थी । प्रोफेसर साहेब की बात सुनकर पुलिस अधीक्षक ने कहा कि आपका वारण्ट गिरफ्तारी निरस्त होगया है । अत : अब आपको पकड़ने का कोई प्रश्न नहीं उठता ।
प्रोफेसर साहेब प्रात : काल उठकर दयानन्दमठ चले गये । रोहतक में यह स्थान हिन्दी आन्दोलन के सत्याग्रह का प्रमुख केन्द्र था और यहीं से सब कार्य होता था । यहां आने पर प्रोफेसर साहेब को बताया गया कि रोहतक की पुलिस सत्याग्रहियों को जब अदालत में प्रस्तुत करती है , अंगूठे के निशान कागज पर लगवा लेती है और मजिस्ट्रेट के सामने ले जाकर उस समय जबरदस्ती उनके कहती है कि इन्होंने माफीनामा लिख दिया है । अत : इन्हें छोड़ दिया जाए । ऐसे दो व्यक्ति प्रोफेसर साहेब के सामने आये और कहा कि हमारे साथ धोखा हुआ है । हमने माफी नहीं मांगी है । गांव में जाएंगे , तो लोग थू – थू करेंगे । हम तो कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रहे । प्रोफेसर साहेब ने उन्हें समझाते हुए कहा कि इसमें लज्जित होने की क्या बात है ? यदि तुमने माफी नहीं मांगी है , तो पुन : जाकर सत्याग्रह करो और अपने आपको सच्चा सत्याग्रही सिद्ध करो । उन दोनों के मन में प्रोफेसर साहेब की बात बैठ गई और पहले से भी अधिक उत्साह में भरकर सत्याग्रह करने के लिए चल पड़े । सत्याग्रहियों के मनोबल को गिरानेवाली पुलिस की कार्यवाही से प्रोफेसर साहेब को बड़ा भारी दुःख हुआ और इन्होंने पुलिस अधीक्षक से मिलकर तीव्र और क्रोधभरी प्रतिक्रिया व्यक्त की । प्रोफेसर साहेब के रोहतक आने पर जिलाधिकारी बड़े चिन्तित रहने लगे । वे न तो प्रोफेसर साहेब को गिरफ्तार कर सकते थे और न ही सामान्य लोगों की भांति डरा धमका सकते थे । जिला अधिकारियों ने कैरो को सूचित किया कि प्रोफेसर साहेब के वारण्ट निरस्त हो जाने से सत्याग्रह में बड़ी तेजी आगई है और इनका सहारा पाकर जिला रोहतक के लोगों में दुगुना उत्साह होगया है । अत : स्थिति पर पुन : विचार करलें ।
हिन्दी सत्याग्रह के अखिल भारतीय स्वरूप को देखते हुए , हिन्दी प्रेमी कांग्रेसी इसके समाधान के प्रयास करने में लग गए । इसमें पुरुषोत्तमदास टण्डन का हाथ प्रमुख रहा और उन्होंने हाईकमाण्ड से कहा कि हिन्दी सत्याग्रह के सम्बन्ध में बातचीत करने के लिए कैरों मन्त्रिमण्डल में ऐसा कोई मन्त्री नहीं है , जिस पर हिन्दी प्रेमी जनता तथा नेता विश्वास कर सकें और कैरों में स्वयं इसको सुलझाने की क्षमता नहीं है । अत : गोपीचन्द भार्गव को कैरों मन्त्रिमण्डल में लेकर हिन्दी सत्याग्रहियों से बातचीत करनी चाहिए ।
जब गोपीचन्द को मन्त्रिमण्डल में लिये जाने की योजना का पता कैरों को लगा , तो ये बहुत घबराए । उनके मन में यह आशंका उत्पन्न हुई कि वे अब तो हिन्दी सत्याग्रह के बहाने भार्गव को मन्त्री बनाने की बात है , परन्तु आगे चलकर ऐसा भी हो सकता है कि भार्गव इनकी गद्दी के लिए खतरा भी बन जाए । अत : भार्गव के खतरे से बचने के लिए कैरों ने सुझाव दिया कि इस विषय में प्रोफेसर शेरसिंह सबसे उपयुक्त व्यक्ति है । अत : हिन्दी सत्याग्रह को समाप्त करने के लिए कैरों साहेब ने कुम्भाराम ( राजस्थान ) के माध्यम से प्रोफेसर साहेब को मनाने की सोची । कुम्भाराम के पास जाकर कैरों साहेब ने कहा कि आप प्रोफेसर साहेब को मनालो , मैं इन्हें मन्त्री बनने के लिए तैयार हूं । कुम्भाराम ने प्रोफेसर साहेब को बुलाया और कहा कि ये प्रतापसिंह कैरों के प्रस्ताव को मानलें ।
प्रोफेसर साहेब ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि आपका कहना ठीक है । यदि कैरों हरयाणा से पंजाबी के बलात् को हटाने की घोषणा करदे , तो ये प्रस्ताव पर अपने साथियों से परामर्श करके सूचित कर देंगे । चौधरी कुम्भाराम ने कहा कि कैरों आपसे मिलना चाहता है , एक बार मिलने में क्या हानि है । प्रोफेसर साहेब कैरों से मिलने से पूर्व इस सम्बन्ध में घनश्यामसिंह गुप्त से मिलने गए । गुप्त जी ने सारी बातें सुनकर कहा कि आप अपने पुराने वचन को पूरा कर दीजिए । इस पर कैरों ने कहा कि पंजाबी पूरी तरह से तो हटाई नहीं जा सकती , हां इतना अवश्य करने के लिए तैयार हूं कि दसवीं की परीक्षा में पंजाबी में अनुत्तीर्ण होनेवाले छात्रों को अनुत्तीर्ण नहीं माना जाएगा और इस विषय में उत्तीर्ण होनेवाले छात्रों के अंक कुल योग में जुड़ जाएंगे । प्रोफेसर साहेब ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि ऐसा करने से हरयाणा के विद्यार्थियों को हानि होगी । क्योंकि इस विषय में उत्तीर्ण होनेवाले विद्यार्थी जालन्धर डिवीजन के ही अधिक होंगे और कुल योग में अंक जुड़ने से नौकरियों में तथा प्रौद्योगिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए उन्हें ही लाभ होगा । अत : आप ऐसा कीजिए कि पंजाबी में उत्तीर्ण छात्रों के अंकों को कुल योग में न जोड़िए । जो छात्र स्वेच्छा से इसे पढ़ना चाहें , वे पढ़ें । प्रोफेसर साहेब के इस सुझाव को कैरों मानने के लिए तैयार नहीं हुए और बातचीत गई । बात टूटने की सूचना प्रोफेसर साहेब ने कुम्भाराम को पहुंचवा दी ।
प्रोफेसर साहेब जानते थे कि इनके गिरफ्तारी वारण्ट पुरुषोत्तमदास टण्डन के प्रभाव के कारण कैरों को निरस्त करने पड़ गए हों , परन्तु वह देर तक इन्हें जेल से बाहर रखना पसन्द नहीं करेगा । हुआ भी ऐसा ही और दोबारा प्रोफेसर साहेब के वारन्ट गिरफ्तारी कर दिए गए । वारन्ट गिरफ्तारी की सूचना मिलते ही प्रोफेसर साहेब रोहतक को छोड़कर दिल्ली चले गये । दिल्ली में ये सीधे डॉ० सरूपसिंह सांघी ( जिला रोहतक तथा भूतपूर्व कुलपति दिल्ली विश्वविद्यालय ) के घर गए और वहां से विश्वविद्यालय परिसर में अपने पुराने सहपाठी प्रिंसिपल मंगतराम ( हिन्दू कालेज ) के घर चले गये । प्रिंसिपल मंगतराम को सारी स्थिति से अवगत कराकर , उनसे कहा कि आपके यहां बहुत देर तक ठहरना उचित नहीं है अत : आप अपना कोई कोट , पैन्ट और कमीज मुझे दे दीजिये । ऐसा ही हुआ और प्रोफेसर साहेब ने अपनी चिर – परिचित टोपी , कुर्ता और धोती उतार दी और उनके स्थान पर पैन्ट , कोट और कमीज पहन लिया । जिस टोपी को इन्होंने स्कूल में पढ़ते समय अंग्रेज अधिकारी के कहने पर भी नहीं उतारा था , उसे हिन्दी प्रेम के कारण स्वेच्छा से थोड़े समय के लिए उतार दिया । अब प्रोफेसर साहेब विश्वविद्यालय में पढ़ानेवाले प्राध्यापक लग रहे थे । इन्हें अपने कालेज जीवन की सुमधुर स्मृतियां इस वेला में अवश्य याद आई होंगी और एक बार मुस्कराकर रह गए होंगे । यहां देर लगाना उचित नहीं था , ये प्रात : काल साढ़े तीन बजे पैदल ही निकल पड़े । अभी दिन होने में समय था , अत : इधर – उधर घूमते रहे और साढ़े पांच बजे डॉ० गणपतराम वर्मा ( चौटाला ) के पास दरियागंज ( दिल्ली ) पहुंच गए । डाक्टर वर्मा पुराने कांग्रेसी थे । डाक्टर वर्मा से प्रोफेसर साहेब का परिचय देवीलाल के कारण हो चुका था । इसके अतिरिक्त डॉ० गणपतराम दरियागंज दिल्ली आर्यसमाज के प्रधान भी थे ।
यहां रहते हुए प्रोफेसर साहेब ने सोचा कि आंख मिचौनी का खेल छोड़कर सत्याग्रह करने की घोषणा करके गिरफ्तार हो जाना चाहिए । अत : इन्होंने दिवान हाल दिल्ली आर्यसमाज से सम्पर्क स्थापित किया । १५ नवम्बर , १९५७ ई० को सत्याग्रह करके गिरफ्तार होने की घोषणा करदी । प्रोफेसर साहेब के सत्याग्रह करने सम्बन्धी इश्तीहार लोगों में वितरित कर दिये गए । डॉ० गणपतराम के यहां से प्रोफेसर साहेब बंगाली मार्केट के सेठी उप – नामक व्यक्ति के पास चले गए । इनका वहां रहना सुरक्षित न समझकर , इन्हें कृष्णनगर में एक आर्यसमाजी के घर ठहराया गया ।
सत्याग्रह वाले दिन अचकन और धोती पहनकर टोपी जेब में रखी और मफलर बांधकर अपने आपको एक व्यापारी का रूप दे दिया । इसके बाद ये अपने साथियों के साथ अन्य सवारियों से खचाखच भरे तांगे में बैठकर , पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के लिए चल पड़े । वहां से तांगे से उतरकर फव्वारा चौक होते हुए भागीरथ प्लेस का मार्ग पकड़कर , पूर्व सुनिश्चित योजना के अनुसार दिवान हाल दिल्ली के पीछे वाली गली में एक मकान में बैठ गए । ठीक समय ( गिरफ्तारी का समय ५ बजे निश्चित था ) गिरफ्तारी देने के लिए ४-५ आदमियों के बीच में होकर , दिवान हाल पहुंच गए तथा मंच पर जाकर मफलर उतार दिया और चिर – परिचित टोपी पहर ली । इतने में घोषणा हुई कि आप लोगों के सामने प्रोफेसर शेरसिंह भाषण देंगे ।
इस घोषणा के होते ही लोगों खचाखच भरे दिवानहाल में हिन्दी तथा आर्यसमाज के नारे लगने लगे । इधर पुलिस भी जो कि लगभग १०० की संख्या में थी और प्रोफेसर साहेब को दिवानहाल में आने से पूर्व पकड़ना चाहती थी , हक्की – बक्की रह गई । सोचने लगी कि प्रोफेसर साहेब दिवान हाल में कैसे पहुंच गए । पुलिस की इच्छा हुई कि प्रोफेसर साहेब को इसी समय गिरफ्तार कर लिया जाए । किन्तु मंच से घोषणा की गई कि पुलिस इस परिस्थिति में प्रोफेसर साहेब को न पकड़े , क्योंकि ये सत्याग्रह करके स्वयं ही अपने आपको पुलिस के हवाले हुए करने की इच्छा से ही दिवान हाल आए हैं । प्रोफेसर साहेब ने भाषण देते लोगों के समक्ष हिन्दी सत्याग्रह करने की पूर्व पीठिका से लेकर , लोगों को हिन्दी के प्रति अब क्या करना आदि बातें रखीं । इसके बाद गिरफ्तारी के लिए प्रस्तुत होगए । दिवान हाल आर्यसमाज के अधिकारियों ने इससे पूर्व ५० सत्याग्रहियों को प्रोफेसर साहेब के साथ सत्याग्रह करने के लिए तैयार कर लिया था । इस प्रकार ५० सत्याग्रहियों के साथ प्रोफेसर साहेब को पकड़कर दिल्ली कोतवाली में ले जाया गया ।
यहां से प्रोफेसर साहेब को रात के समय एक लारी में बैठाकर पुलिस सुरक्षा में नाभा जेल ले जाया गया । यहां पर इन्हें थोड़े समय के लिए ही रखा गया । यहां पर इनकी मुलाकात चौधरी उदयसिंह मान एम.एल.सी. से भी हुई , जो कि हिन्दी सत्याग्रह के कारण रोहतक पुलिस द्वारा पहले ही पकड़ लिए थे । यहां से प्रोफेसर साहेब को पटियाला जेल भेज दिया गया । इसी जेल में वीरेन्द्र ( सम्पादक प्रताप ) , पं० श्रीराम शर्मा , लाला जगतनारायण , चौ० बदलूराम , स्वामी रामेश्वरानन्द , स्वामी भीष्म और प्रोफेसर साहेब के अन्यतम साथी महाशय भरतसिंह आदि सत्याग्रही कैद थे । जेल के अन्दर सभी प्रकार का हास्य विनोद होता रहता था । एक दिन पण्डित श्रीराम शर्मा ने प्रोफेसर साहेब से कहा कि देखो वे कैसे पागल निकले कि आर्यसमाजी न होते हुए भी आर्यसमाजियों के बहकावे में आकर गिरफ्तार होगए । भई आर्यसमाजियों का भूत ही ऐसा होता है । परन्तु इन्हें तो रोहतक याद आरहा है । प्रोफेसर साहेब ने कहा कि आर्यसमाजी बन जाओ , सब भूल जाओगे ।
सितम्बर के अन्तिम सप्ताह में हिन्दी आन्दोलन की समाप्ति होगई और सभी सत्याग्रहियों को छोड़ देने का निर्णय होगया । परन्तु सरकार ने यह निर्णय भी ले लिया कि इस सत्याग्रह के सम्बन्ध में जिन लोगों पर हिंसा से सम्बन्धित मुकदमे बनाए गए हैं , उन्हें बाद में छोड़ा जाएगा । इस निर्णय को सुनकर प्रोफेसर साहेब ने कहा कि हम अपने साथियों को छोड़कर छूटना चाहते । यदि छूटेंगे तो सभी साथ छूटेंगे , अन्यथा सभी जेल में ही रहेंगे । प्रोफेसर साहेब ने जेल से ही मजिस्ट्रेट को अपने निश्चय की सूचना दे दी । मजिस्ट्रेट ने प्रोफेसर साहेब से कहा कि जेल में उन कैदियों की जमानत कौन लेगा , जिन पर हिंसा से सम्बन्धित मुकदमे बने हुए हैं । प्रोफेसर साहेब ने उत्तर दिया कि ये उन कैदियों की जमानत देने को तैयार हैं । इस बात को सुनकर मजिस्ट्रेट ने कहा कि आप तो स्वयं कैदी हैं , जमानत कैसे दे सकते हैं ? इसके उत्तर में प्रोफेसर साहेब ने उत्तेजना के स्वरों में कहा कि कल तक तो वे मन्त्री थे तथा अच्छे नागरिकों में गिने जाते थे , आज क्या होगया कि उन पर विश्वास नहीं किया जारहा ? वे कोई असामाजिक और अनैतिक अपराधों में दण्डित कैदी तो नहीं हैं , फिर जमानत क्यों नहीं ली जाती ? अन्त में मजिस्ट्रेट ने प्रोफेसर साहेब की जमानत पर उन कैदियों को भी छोड़ देने की स्वीकृति प्रदान करदी , जिन पर हिंसा से सम्बन्धित मुकदमे थे ।हरयाणे के त्यागमूर्ती आर्य नेता का
हिन्दी सत्याग्रह में महान योग
प्रो० शेर सिंह जी (बाघपुर बेरी)
लेखक :- डॉ० रणजीत सिंह जी
पुस्तक :- पंजाब का हिन्दी सत्याग्रह
प्रस्तुति :- अमित सिवाहा
सन् १९५७ के आम चुनाव में प्रचार समय ‘ सच्चर फार्मूले ‘ के कारण बलात् रूप से अम्बाला डिवीजन के स्कूली छात्रों पर लादी गई पंजाबी को हटाने का संकल्प बार – बार दोहराया गया था । इसके लिए चुनाव के उपरान्त हिन्दी आन्दोलन चलाने की भी घोषणाएं होती रहीं । यह आन्दोलन चुनाव से पूर्व ही कुछ गति पकड़ चुका था । अत : चुनावों के कारण शिथिल होनेवाले हिन्दी आंदोलन ‘ को सक्रिय करने की आवश्यकता प्रतीत हुई । चुनाव में प्रो० शेरसिंह की जीत के उपरान्त आचार्य भगवान्देव तथा जगदेवसिंह सिद्धान्ती ने प्रोफेसर साहेब से कहा कि वचन के अनुसार अब हमें हिन्दी आन्दोलन ‘ चलाने पर विचार करना चाहिए । यदि ऐसा नहीं किया गया , तो लोगों का हम पर से विश्वास उठ जाएगा ।
इनकी बात को सुनकर प्रोफेसर साहेब बोले कि चुनाव से पूर्व एवं इनके मन्त्री रहते कैरों ने यह वायदा किया था कि वे हरयाणा से पंजाबी भाषा के बलात् को हटा देंगे । अत : आन्दोलन आरम्भ करने से पूर्व एक बार कैरों से मिल लिया जाए । प्रोफेसर साहेब कैरों से मिलने दिल्ली चले गए । प्रोफेसर साहेब ने कैरों से कहा कि आपने पंजाबी की बलात् पढ़ाई को हटाने का वचन दिया था । आप मुख्यमंत्री बन चुके हैं । अत : वायदा पूरा होना ही चाहिए । परन्तु कैरों ने पंजाबी की बलात् पढ़ाई को समाप्त करने से अस्वीकार कर दिया । कैरों के वचनाघात से प्रोफेसर साहेब को बड़ा भारी धक्का लगा । क्योंकि प्रोफेसर साहेब के कहने से ही आन्दोलन को शिथिल किया गया था ।
अन्त में कोई चारा न देखकर १९५७ ई० के अप्रैल महीने में ‘ हिन्दी आन्दोलन ‘ के सत्याग्रह की घोषणा कर दी गई और मई मास में इस सत्याग्रह में बड़ी तेजी आगई । ‘ हिन्दी आन्दोलन ‘ को असफल बनाने के लिए सरकारी तन्त्र जुट गया । हिन्दी आन्दोलन ‘ को असफल बनाने के लिए प्रोफेसर साहेब को तरह – तरह के प्रलोभन दिए जाने लगे ।
इस समय पंजाब के राज्यपाल सी.पी.एन. सिंह थे । उनके साथ प्रोफेसर साहेब के अच्छे सम्बन्ध थे । हिन्दी आन्दोलन ‘ के दिनों में राज्यपाल महोदय ने प्रोफेसर साहेब को बुलाया और कहा कि वे चाहते हैं कि आप कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति ( उस समय इस पद का नाम उप – कुलपति था ) का कार्यभार सम्भाल लें । प्रोफेसर साहेब ने इस प्रस्ताव का धन्यवाद करते हुए अपनी सौम्य शैली में कहा कि ये तो हिन्दी आन्दोलन ‘ में सक्रिय भाग ले रहे हैं , ऐसी स्थिति में किसी भी प्रकार के पद को स्वीकार करना इनके लिए उचित नहीं होगा । इनके लिए हिन्दी का कार्य करना कुलपति के पद के ग्रहण करने से कहीं अधिक जनोपयोगी होगा । लालच में पड़कर , ये अपनी राजनैतिक और सामाजिक आत्महत्या का दोष नहीं लेना चाहते ।
कैरों ने देखा के यह वार खाली गया , तो उसने महात्मा खुशहालचन्द खुर्सन्द के पुत्र यश के प्रभाव को अपना तीर बनाया । प्रोफेसर साहेब के श्वसुर बुद्धदेव विद्यालंकार तथा खुशहालचन्द के घनिष्ठ सम्बन्ध थे , यहां तक कि प्रोफेसर साहेब के विवाह में यश ( मिलाप समाचार पत्र ) सपरिवार आए थे । गुरमुखसिंह मुसाफिर के माध्यम से कैरों यश द्वारा प्रोफेसर साहेब को पंजाब कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष पद को देने का प्रस्ताव पहुंचाया । प्रोफेसर साहेब ने यश को कहा कि आर्यसमाजी होने के नाते चाहिए तो यह कि आप आन्दोलन चलाने में हमारी सहायता करें , परन्तु इसके विपरीत आप तो पथभ्रष्ट करने आए हो ।
हिन्दी आन्दोलन में तेजी आती गई । हिन्दी आन्दोलन को कुचलने और उन कांग्रेसी विधायकों को धमकाने के लिए , जो कि हिन्दी आन्दोलन में सक्रिय भाग ले रहे थे , कैरों ने मुरार जी भाई को बुलाया । मुरार जी भाई ने पंजाब के कांग्रेसी विधायकों की बैठक बुलाई और कहा आप लोगों को कैरों के हाथ मजबूत करने चाहिएं । इस भाषा के झगड़े में जो विधायक भाग ले रहे हैं , वे ठीक नहीं कर रहे हैं , उनके लिए कांग्रेस में कोई स्थान नहीं है । स्पष्टत : यह बात प्रोफेसर साहेब को लक्ष्य करके कही गई थी । प्रोफेसर साहेब ने उठकर कहा कि ये कुछ जानना चाहते हैं । क्या आप बताने की कृपा करेंगे कि कांग्रेस पार्टी के संविधान में द्विभाषी राज्यों की क्या भाषा नीति बनी है ? प्रोफेसर साहेब ने आगे कहा कि ये पंजाबी भाषा के विरोधी नहीं हैं , परन्तु इस भाषा को बलात् हरयाणा पर थोपने के विरोधी हैं । इसके साथ ही प्रोफेसर साहेब ने कहा कि बम्बई तथा पंजाब ही दो ऐसे प्रान्त हैं , जो कि द्विभाषी हैं । इन दोनों प्रान्तों की भाषा नीति के सम्बन्ध में समानता होनी चाहिए । यहां बलात् पंजाबी थोपी जा रही है , जबकि बम्बई में गुजराती और मराठी के सम्बन्ध में बलात् नहीं है । आप बम्बई के मुख्यमन्त्री हैं , यदि वहां पर गुजराती क्षेत्र पर बलात् मराठी पढ़ाने का प्रावधान कर देते हैं , तो हमें हरयाणा में पंजाबी पढ़ने पर कोई आपत्ति नहीं ।
प्रोफेसर साहेब की बात का उत्तर मुरार जी भाई के पास नहीं था और वे ऐसे प्रश्न की आशा भी नहीं करते थे । इतने में मंच से उतरकर कैरों प्रोफेसर साहेब के पास आए और कहा कि छोड़ो इस बात को । बैठक के बाद मुरार जी भाई ने प्रोफेसर साहेब को बुलाकर कहा कि प्रात : काल राजभवन में मिलो । प्रोफेसर साहेब अगले दिन प्रात : काल राजभवन पहुंच गये । मुरार जी भाई ने प्रोफेसर साहेब को कहा कि तुम्हें इस अवसर पर बहस नहीं करनी चाहिए थी । प्रोफेसर साहेब के कथनानुसार मुरार जी भाई के बोलने के ढंग से यह स्पष्ट झलक रहा था , मानो वे कल की घटना को अपना अपमान समझ रहे थे । मुरार जी भाई के कथन का प्रोफेसर साहेब पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और ये हिन्दी सम्बन्धी गतिविधियों में उसी प्रकार लगे रहे ।
इसी अवधि में फिरोजपुर जेल में हिन्दी सत्याग्रहियों पर लाठीचार्ज होगया । इस घटना में जहां अनेक सत्याग्रही घायल हुए , वहां सुमेरसिंह ( नयाबांस , जिला रोहतक ) नामक सत्याग्रही भी मारा गया । फिरोजपुर जेल की घटना ने भारतवर्ष के हिन्दीप्रेमियों को हिला दिया । इस घटना का जिला रोहतक पर साक्षात् प्रभाव होना था । कहीं स्थिति भड़क न जाए , यह सोचकर कैरों ने प्रोफेसर साहेब के वारण्ट गिरफ्तारी जारी कर दिए । इस समय प्रोफेसर साहेब दिल्ली में थे ।
फिरोजपुर की घटना की जानकारी के लिए घनश्याम गुप्त ने फिरोजपुर जाने का कार्यक्रम बनाया । गुप्त जी के साथ अलगूराय शास्त्री भी इस विचार से जाने के लिए तैयार होगये ( शास्त्री जी कांग्रेस के उच्चकोटि के नेता थे और मन्त्री भी रह चुके थे ) कि सारी स्थिति आंखों से देखकर पं ० नेहरु को अवगत कराएंगे । इसी समय प्रोफेसर साहेब ने उत्तर दिया कि वे तो नहीं जा सकते , क्योंकि उनके तो वारण्ट हैं । इस बात को सुनकर गुप्त जी ने कहा कि रोहतक तक तो हमारे साथ चलना चाहिए । वारण्ट की बात सुनकर शास्त्री जी बोले कि देखो यह कैरों कैसा मूर्ख है कि प्रोफेसर के वारण्ट जारी कर दिए । यदि आन्दोलन के विषय में कोई समझौता होगा , तो किससे होगा , फिर भी इसे जेल से प्रोफेसर को छोड़कर बातचीत करनी पड़ेगा । अलगूराय शास्त्री ने प्रोफेसर शेरसिंह के वारण्ट के विषय में पुरुषोत्तमदास टण्डन को सूचित कर दिया ।
प्रोफेसर साहेब ने इनके साथ चलने से पूर्व पुलिस अधीक्षक रोहतक को टेलीफोन करवा दिया कि वे रात की गाड़ी से साढ़े ग्यारह बजे रोहतक पहुंच रहे हैं और गिरफ्तारी के लिए पुलिस भेजदें । प्रोफेसर साहेब रात के साढ़े ग्यारह बजे रोहतक रेलवे स्टेशन पर उतरे और लगभग २० मिनट इस प्रतीक्षा में खड़े रहे कि शायद पुलिस आजाए और गिरफ्तार करले । धीरे – धीरे रेलवे स्टेशन का प्लेटफार्म लोगों से खाली होगया और पुलिस कहीं दिखाई नहीं दी । अन्त में प्रोफेसर साहेब झज्जर रोड पर लिए गए अपने किराये के मकान पर चले गए । मकान पर पहुंचकर प्रोफेसर साहेब ने पुलिस अधीक्षक को टेलीफोन किया कि वे आगये हैं और इससे पूर्व भी दिल्ली से आपको सूचना पहुंचाई थी । प्रोफेसर साहेब की बात सुनकर पुलिस अधीक्षक ने कहा कि आपका वारण्ट गिरफ्तारी निरस्त होगया है । अत : अब आपको पकड़ने का कोई प्रश्न नहीं उठता ।
प्रोफेसर साहेब प्रात : काल उठकर दयानन्दमठ चले गये । रोहतक में यह स्थान हिन्दी आन्दोलन के सत्याग्रह का प्रमुख केन्द्र था और यहीं से सब कार्य होता था । यहां आने पर प्रोफेसर साहेब को बताया गया कि रोहतक की पुलिस सत्याग्रहियों को जब अदालत में प्रस्तुत करती है , अंगूठे के निशान कागज पर लगवा लेती है और मजिस्ट्रेट के सामने ले जाकर उस समय जबरदस्ती उनके कहती है कि इन्होंने माफीनामा लिख दिया है । अत : इन्हें छोड़ दिया जाए । ऐसे दो व्यक्ति प्रोफेसर साहेब के सामने आये और कहा कि हमारे साथ धोखा हुआ है । हमने माफी नहीं मांगी है । गांव में जाएंगे , तो लोग थू – थू करेंगे । हम तो कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रहे । प्रोफेसर साहेब ने उन्हें समझाते हुए कहा कि इसमें लज्जित होने की क्या बात है ? यदि तुमने माफी नहीं मांगी है , तो पुन : जाकर सत्याग्रह करो और अपने आपको सच्चा सत्याग्रही सिद्ध करो । उन दोनों के मन में प्रोफेसर साहेब की बात बैठ गई और पहले से भी अधिक उत्साह में भरकर सत्याग्रह करने के लिए चल पड़े । सत्याग्रहियों के मनोबल को गिरानेवाली पुलिस की कार्यवाही से प्रोफेसर साहेब को बड़ा भारी दुःख हुआ और इन्होंने पुलिस अधीक्षक से मिलकर तीव्र और क्रोधभरी प्रतिक्रिया व्यक्त की । प्रोफेसर साहेब के रोहतक आने पर जिलाधिकारी बड़े चिन्तित रहने लगे । वे न तो प्रोफेसर साहेब को गिरफ्तार कर सकते थे और न ही सामान्य लोगों की भांति डरा धमका सकते थे । जिला अधिकारियों ने कैरो को सूचित किया कि प्रोफेसर साहेब के वारण्ट निरस्त हो जाने से सत्याग्रह में बड़ी तेजी आगई है और इनका सहारा पाकर जिला रोहतक के लोगों में दुगुना उत्साह होगया है । अत : स्थिति पर पुन : विचार करलें ।
हिन्दी सत्याग्रह के अखिल भारतीय स्वरूप को देखते हुए , हिन्दी प्रेमी कांग्रेसी इसके समाधान के प्रयास करने में लग गए । इसमें पुरुषोत्तमदास टण्डन का हाथ प्रमुख रहा और उन्होंने हाईकमाण्ड से कहा कि हिन्दी सत्याग्रह के सम्बन्ध में बातचीत करने के लिए कैरों मन्त्रिमण्डल में ऐसा कोई मन्त्री नहीं है , जिस पर हिन्दी प्रेमी जनता तथा नेता विश्वास कर सकें और कैरों में स्वयं इसको सुलझाने की क्षमता नहीं है । अत : गोपीचन्द भार्गव को कैरों मन्त्रिमण्डल में लेकर हिन्दी सत्याग्रहियों से बातचीत करनी चाहिए ।
जब गोपीचन्द को मन्त्रिमण्डल में लिये जाने की योजना का पता कैरों को लगा , तो ये बहुत घबराए । उनके मन में यह आशंका उत्पन्न हुई कि वे अब तो हिन्दी सत्याग्रह के बहाने भार्गव को मन्त्री बनाने की बात है , परन्तु आगे चलकर ऐसा भी हो सकता है कि भार्गव इनकी गद्दी के लिए खतरा भी बन जाए । अत : भार्गव के खतरे से बचने के लिए कैरों ने सुझाव दिया कि इस विषय में प्रोफेसर शेरसिंह सबसे उपयुक्त व्यक्ति है । अत : हिन्दी सत्याग्रह को समाप्त करने के लिए कैरों साहेब ने कुम्भाराम ( राजस्थान ) के माध्यम से प्रोफेसर साहेब को मनाने की सोची । कुम्भाराम के पास जाकर कैरों साहेब ने कहा कि आप प्रोफेसर साहेब को मनालो , मैं इन्हें मन्त्री बनने के लिए तैयार हूं । कुम्भाराम ने प्रोफेसर साहेब को बुलाया और कहा कि ये प्रतापसिंह कैरों के प्रस्ताव को मानलें ।
प्रोफेसर साहेब ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि आपका कहना ठीक है । यदि कैरों हरयाणा से पंजाबी के बलात् को हटाने की घोषणा करदे , तो ये प्रस्ताव पर अपने साथियों से परामर्श करके सूचित कर देंगे । चौधरी कुम्भाराम ने कहा कि कैरों आपसे मिलना चाहता है , एक बार मिलने में क्या हानि है । प्रोफेसर साहेब कैरों से मिलने से पूर्व इस सम्बन्ध में घनश्यामसिंह गुप्त से मिलने गए । गुप्त जी ने सारी बातें सुनकर कहा कि आप अपने पुराने वचन को पूरा कर दीजिए । इस पर कैरों ने कहा कि पंजाबी पूरी तरह से तो हटाई नहीं जा सकती , हां इतना अवश्य करने के लिए तैयार हूं कि दसवीं की परीक्षा में पंजाबी में अनुत्तीर्ण होनेवाले छात्रों को अनुत्तीर्ण नहीं माना जाएगा और इस विषय में उत्तीर्ण होनेवाले छात्रों के अंक कुल योग में जुड़ जाएंगे । प्रोफेसर साहेब ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि ऐसा करने से हरयाणा के विद्यार्थियों को हानि होगी । क्योंकि इस विषय में उत्तीर्ण होनेवाले विद्यार्थी जालन्धर डिवीजन के ही अधिक होंगे और कुल योग में अंक जुड़ने से नौकरियों में तथा प्रौद्योगिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए उन्हें ही लाभ होगा । अत : आप ऐसा कीजिए कि पंजाबी में उत्तीर्ण छात्रों के अंकों को कुल योग में न जोड़िए । जो छात्र स्वेच्छा से इसे पढ़ना चाहें , वे पढ़ें । प्रोफेसर साहेब के इस सुझाव को कैरों मानने के लिए तैयार नहीं हुए और बातचीत गई । बात टूटने की सूचना प्रोफेसर साहेब ने कुम्भाराम को पहुंचवा दी ।
प्रोफेसर साहेब जानते थे कि इनके गिरफ्तारी वारण्ट पुरुषोत्तमदास टण्डन के प्रभाव के कारण कैरों को निरस्त करने पड़ गए हों , परन्तु वह देर तक इन्हें जेल से बाहर रखना पसन्द नहीं करेगा । हुआ भी ऐसा ही और दोबारा प्रोफेसर साहेब के वारन्ट गिरफ्तारी कर दिए गए । वारन्ट गिरफ्तारी की सूचना मिलते ही प्रोफेसर साहेब रोहतक को छोड़कर दिल्ली चले गये । दिल्ली में ये सीधे डॉ० सरूपसिंह सांघी ( जिला रोहतक तथा भूतपूर्व कुलपति दिल्ली विश्वविद्यालय ) के घर गए और वहां से विश्वविद्यालय परिसर में अपने पुराने सहपाठी प्रिंसिपल मंगतराम ( हिन्दू कालेज ) के घर चले गये । प्रिंसिपल मंगतराम को सारी स्थिति से अवगत कराकर , उनसे कहा कि आपके यहां बहुत देर तक ठहरना उचित नहीं है अत : आप अपना कोई कोट , पैन्ट और कमीज मुझे दे दीजिये । ऐसा ही हुआ और प्रोफेसर साहेब ने अपनी चिर – परिचित टोपी , कुर्ता और धोती उतार दी और उनके स्थान पर पैन्ट , कोट और कमीज पहन लिया । जिस टोपी को इन्होंने स्कूल में पढ़ते समय अंग्रेज अधिकारी के कहने पर भी नहीं उतारा था , उसे हिन्दी प्रेम के कारण स्वेच्छा से थोड़े समय के लिए उतार दिया । अब प्रोफेसर साहेब विश्वविद्यालय में पढ़ानेवाले प्राध्यापक लग रहे थे । इन्हें अपने कालेज जीवन की सुमधुर स्मृतियां इस वेला में अवश्य याद आई होंगी और एक बार मुस्कराकर रह गए होंगे । यहां देर लगाना उचित नहीं था , ये प्रात : काल साढ़े तीन बजे पैदल ही निकल पड़े । अभी दिन होने में समय था , अत : इधर – उधर घूमते रहे और साढ़े पांच बजे डॉ० गणपतराम वर्मा ( चौटाला ) के पास दरियागंज ( दिल्ली ) पहुंच गए । डाक्टर वर्मा पुराने कांग्रेसी थे । डाक्टर वर्मा से प्रोफेसर साहेब का परिचय देवीलाल के कारण हो चुका था । इसके अतिरिक्त डॉ० गणपतराम दरियागंज दिल्ली आर्यसमाज के प्रधान भी थे ।
यहां रहते हुए प्रोफेसर साहेब ने सोचा कि आंख मिचौनी का खेल छोड़कर सत्याग्रह करने की घोषणा करके गिरफ्तार हो जाना चाहिए । अत : इन्होंने दिवान हाल दिल्ली आर्यसमाज से सम्पर्क स्थापित किया । १५ नवम्बर , १९५७ ई० को सत्याग्रह करके गिरफ्तार होने की घोषणा करदी । प्रोफेसर साहेब के सत्याग्रह करने सम्बन्धी इश्तीहार लोगों में वितरित कर दिये गए । डॉ० गणपतराम के यहां से प्रोफेसर साहेब बंगाली मार्केट के सेठी उप – नामक व्यक्ति के पास चले गए । इनका वहां रहना सुरक्षित न समझकर , इन्हें कृष्णनगर में एक आर्यसमाजी के घर ठहराया गया ।
सत्याग्रह वाले दिन अचकन और धोती पहनकर टोपी जेब में रखी और मफलर बांधकर अपने आपको एक व्यापारी का रूप दे दिया । इसके बाद ये अपने साथियों के साथ अन्य सवारियों से खचाखच भरे तांगे में बैठकर , पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के लिए चल पड़े । वहां से तांगे से उतरकर फव्वारा चौक होते हुए भागीरथ प्लेस का मार्ग पकड़कर , पूर्व सुनिश्चित योजना के अनुसार दिवान हाल दिल्ली के पीछे वाली गली में एक मकान में बैठ गए । ठीक समय ( गिरफ्तारी का समय ५ बजे निश्चित था ) गिरफ्तारी देने के लिए ४-५ आदमियों के बीच में होकर , दिवान हाल पहुंच गए तथा मंच पर जाकर मफलर उतार दिया और चिर – परिचित टोपी पहर ली । इतने में घोषणा हुई कि आप लोगों के सामने प्रोफेसर शेरसिंह भाषण देंगे ।
इस घोषणा के होते ही लोगों खचाखच भरे दिवानहाल में हिन्दी तथा आर्यसमाज के नारे लगने लगे । इधर पुलिस भी जो कि लगभग १०० की संख्या में थी और प्रोफेसर साहेब को दिवानहाल में आने से पूर्व पकड़ना चाहती थी , हक्की – बक्की रह गई । सोचने लगी कि प्रोफेसर साहेब दिवान हाल में कैसे पहुंच गए । पुलिस की इच्छा हुई कि प्रोफेसर साहेब को इसी समय गिरफ्तार कर लिया जाए । किन्तु मंच से घोषणा की गई कि पुलिस इस परिस्थिति में प्रोफेसर साहेब को न पकड़े , क्योंकि ये सत्याग्रह करके स्वयं ही अपने आपको पुलिस के हवाले हुए करने की इच्छा से ही दिवान हाल आए हैं । प्रोफेसर साहेब ने भाषण देते लोगों के समक्ष हिन्दी सत्याग्रह करने की पूर्व पीठिका से लेकर , लोगों को हिन्दी के प्रति अब क्या करना आदि बातें रखीं । इसके बाद गिरफ्तारी के लिए प्रस्तुत होगए । दिवान हाल आर्यसमाज के अधिकारियों ने इससे पूर्व ५० सत्याग्रहियों को प्रोफेसर साहेब के साथ सत्याग्रह करने के लिए तैयार कर लिया था । इस प्रकार ५० सत्याग्रहियों के साथ प्रोफेसर साहेब को पकड़कर दिल्ली कोतवाली में ले जाया गया ।
यहां से प्रोफेसर साहेब को रात के समय एक लारी में बैठाकर पुलिस सुरक्षा में नाभा जेल ले जाया गया । यहां पर इन्हें थोड़े समय के लिए ही रखा गया । यहां पर इनकी मुलाकात चौधरी उदयसिंह मान एम.एल.सी. से भी हुई , जो कि हिन्दी सत्याग्रह के कारण रोहतक पुलिस द्वारा पहले ही पकड़ लिए थे । यहां से प्रोफेसर साहेब को पटियाला जेल भेज दिया गया । इसी जेल में वीरेन्द्र ( सम्पादक प्रताप ) , पं० श्रीराम शर्मा , लाला जगतनारायण , चौ० बदलूराम , स्वामी रामेश्वरानन्द , स्वामी भीष्म और प्रोफेसर साहेब के अन्यतम साथी महाशय भरतसिंह आदि सत्याग्रही कैद थे । जेल के अन्दर सभी प्रकार का हास्य विनोद होता रहता था । एक दिन पण्डित श्रीराम शर्मा ने प्रोफेसर साहेब से कहा कि देखो वे कैसे पागल निकले कि आर्यसमाजी न होते हुए भी आर्यसमाजियों के बहकावे में आकर गिरफ्तार होगए । भई आर्यसमाजियों का भूत ही ऐसा होता है । परन्तु इन्हें तो रोहतक याद आरहा है । प्रोफेसर साहेब ने कहा कि आर्यसमाजी बन जाओ , सब भूल जाओगे ।
सितम्बर के अन्तिम सप्ताह में हिन्दी आन्दोलन की समाप्ति होगई और सभी सत्याग्रहियों को छोड़ देने का निर्णय होगया । परन्तु सरकार ने यह निर्णय भी ले लिया कि इस सत्याग्रह के सम्बन्ध में जिन लोगों पर हिंसा से सम्बन्धित मुकदमे बनाए गए हैं , उन्हें बाद में छोड़ा जाएगा । इस निर्णय को सुनकर प्रोफेसर साहेब ने कहा कि हम अपने साथियों को छोड़कर छूटना चाहते । यदि छूटेंगे तो सभी साथ छूटेंगे , अन्यथा सभी जेल में ही रहेंगे । प्रोफेसर साहेब ने जेल से ही मजिस्ट्रेट को अपने निश्चय की सूचना दे दी । मजिस्ट्रेट ने प्रोफेसर साहेब से कहा कि जेल में उन कैदियों की जमानत कौन लेगा , जिन पर हिंसा से सम्बन्धित मुकदमे बने हुए हैं । प्रोफेसर साहेब ने उत्तर दिया कि ये उन कैदियों की जमानत देने को तैयार हैं । इस बात को सुनकर मजिस्ट्रेट ने कहा कि आप तो स्वयं कैदी हैं , जमानत कैसे दे सकते हैं ? इसके उत्तर में प्रोफेसर साहेब ने उत्तेजना के स्वरों में कहा कि कल तक तो वे मन्त्री थे तथा अच्छे नागरिकों में गिने जाते थे , आज क्या होगया कि उन पर विश्वास नहीं किया जारहा ? वे कोई असामाजिक और अनैतिक अपराधों में दण्डित कैदी तो नहीं हैं , फिर जमानत क्यों नहीं ली जाती ? अन्त में मजिस्ट्रेट ने प्रोफेसर साहेब की जमानत पर उन कैदियों को भी छोड़ देने की स्वीकृति प्रदान करदी , जिन पर हिंसा से सम्बन्धित मुकदमे थे ।
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