संकेत किया श्री राम ने , विभीषण जी की ओर।
वीर हित नहीं शोभता, ऐसा बिरथा शोक।।
महिलाओं को दूर कर , करो दाह संस्कार।
धर्म आपका है यही , याद करे संसार।।
विभीषण बोले – “राम जी ! क्या कहते हो आप ?”
उसका ना सम्मान हो , किया हो जिसने पाप।।
( विभीषण जी बहुत ही विद्वान पुरुष थे । वह भी चाहते थे कि उनके भाई का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हो, पर वह इसमें किसी प्रकार की शीघ्रता दिखाना उचित नहीं मानते थे। क्योंकि इससे उनकी राम के प्रति निष्ठा संदिग्ध होने का डर था। इसलिए उन्होंने भीतर की भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए रावण के अंतिम संस्कार करने से एक बार इनकार किया। वे जानते थे कि श्री राम मर्यादा को टूटने नहीं देंगे और वह रावण का राजकीय सम्मान के साथ ही अंतिम संस्कार कराएंगे , परन्तु अपनी ओर से मुझे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना होगा। )
रामचंद्र जी कहने लगे: –
चला गया संसार से , मिट गया उससे बैर।
पापी की भी मांगिए , मिलकर सारे खैर।।
रावण सच्चा वीर था , जाने सब संसार।
राजा था वह आपका, करो सही सत्कार।।
वैदिक विधि विधान से , पूर्ण किए सब काज।
सभ्य गण बने साक्षी , जितना खड़ा समाज।।
लक्ष्मण जी को मिल गया, भ्राता का आदेश।
विभीषण जी का कीजिए , लंका में अभिषेक।।
विभीषण जी को लंका का राजा बनाकर रामचंद्र जी ने अपने दिए हुए वचन को पूरा कर दिया। अब उनके समक्ष ऐसा कोई कार्य नहीं था जो लंका में रहते हुए उन्हें करना अपेक्षित था। यही कारण था कि अब उन्हें शीघ्र अपनी अयोध्या नगरी के लिए लौटना था। वैसे भी उनके 14 वर्ष का वनवास पूरा होने में अब मात्र 6 दिन का समय ही रह गया था। उन्हें यथा समय अयोध्या लौटना था। अन्यथा उन्हें डर था कि यदि वह नहीं लौटे तो भरत आत्मदाह कर लेंगे।
लक्ष्मण जी ने कर दिया, विभीषण का अभिषेक।
करणीय कर्म अब राम का , बचा नहीं कोई शेष।।
हनुमान को मिल गया , राम का यह निर्देश।
विभीषण के आदेश से , दो सीता को संदेश।।
जीत गए श्री राम जी , मिटा दिया लंकेश।
शीघ्र आपको ले चलें , अवधपुरी निज देश।।
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )