महर्षि भारद्वाज और चेन्नई
मित्रो ! आज 22 अगस्त है । इस तिथि को मद्रास का स्थापना दिवस कहकर इतिहास में भ्रांति फैलाई गई है ।
प्राचीन काल में हमारे ऋषि जहां-जहां भी अपना आश्रम बना लिया करते थे , वहीं पर कालांतर में गुरुकुल और गुरुकुल से विश्वविद्यालय के रूप में वह स्थान परिवर्तित हो जाता था ।
मद्रास के साथ भी यही हुआ था। प्राचीन काल में यहां पर ऋषि भारद्वाज ने अपना आश्रम बनाया, जो धीरे-धीरे एक अच्छे बड़े गुरुकुल में परिवर्तित हो गया । स्थानीय भाषा में लोग उसे चेन्नई कहकर पुकारते थे । जब यहां पर मुसलमान लोग आए तो उन्होंने गुरुकुल / विद्यालय / पाठशाला का रूपांतरण अपनी भाषा में मदरसा किया।
अब इसके पश्चात बारी थी – अंग्रेजों की । उन्होंने 22 अगस्त 1639 को यहां पर विकसित हुए एक छोटे से शहर को मद्रास के रूप में स्थापित किया । प्रचलित इतिहास में यह भ्रांति है कि 1639 की इस तिथि को मद्रास नामक शहर की स्थापना की गई थी । वास्तव में स्थापना नहीं की गई थी अपितु प्राचीन काल से चले आ रहे चेन्नई / मदरसा को अपने समय में मद्रास के नाम से अंग्रेजों ने बसाना आरंभ किया ।अंग्रेजों का काम होता था कि वह स्थानीय शहरों ,कस्बों में जमीन लेकर कॉलोनी काटते थे और फिर मोटा मुनाफा कमा कर उसे लूट कर यहां से स्वदेश ले जाते थे।
इसी उद्देश्य से उन्होंने नए मद्रास की स्थापना की थी। इस नगर का इतिहास खोजने के लिए ऋषि भारद्वाज को भूलना मूर्खता होगी । यह तो और भी बड़ी मूर्खता होगी कि इसे 1639 में अंग्रेजो के द्वारा स्थापित किया गया शहर मान लिया जाए ।अभी कुछ समय पहले जब मद्रास को फिर से चेन्नई किया गया था । तब इसका उद्देश्य यही था कि इसको ऋषि भारद्वाज के गुरुकुल आश्रम से फिर से छोड़ दिया जाए । जिससे हमें अपना इतिहास बोध हो और हमें अपने ऐतिहासिक नगरों की सही जानकारी उपलब्ध हो सके। साथ ही अपने पूर्वजों के किए गए महान कार्यों का ज्ञान भी हमको प्राप्त हो सके।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत