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ब्नबतूता नाम का एक विदेशी यात्री हमारे देश में आया। वह चौदहवीं शताब्दी में सुल्तान मोहम्मद तुगलक के दरबार में आया था । इब्नबतूता ईरान के बादशाह का दूत था । इब्नबतूता ने भारत के योगियों के बारे में बहुत ही गौरव पूर्ण ढंग से लिखा है। उसने वर्णन किया है कि सुल्तान ने एक दिन उसको ऐसे योगी दिखलाए जो आकाश में उड़ सकते थे। इब्नबतूता कहता है कि दो योगियों में आपस में ठन गई और एक योगी की खड़ाऊँ स्वत: ऊपर उठकर दूसरे योगी के सिर पर प्रहार करने लगी ।
वह लिखता है कि मोहम्मद तुगलक के पास डेढ़ लाख गुलाम थे । उसने इब्नबतूता से पूछा कि तुम्हारे बादशाह के पास कितने गुलाम हैं ? मेरे द्वारा सुल्तान को बादशाह के गुलामों की एक लाख की संख्या बताए जाने पर उसने गर्व से अपने गुलामों की संख्या मुझे डेढ़ लाख बताई । सुल्तान ने कहा कि तुम्हारे बादशाह के गुलाम उसके प्रति कितने वफादार हैं ? इस पर मैंने सुल्तान से अपने गुलामों की वफादारी की बहुत प्रशंसा की । तुगलक सुल्तान ने मेरे द्वारा हमारे बादशाह के गुलामों की प्रशंसा सुनने के पश्चात हाथ की ताली बजाई । उसके ऐसा करते ही वहां पर तुरंत एक गुलाम आ उपस्थित हुआ । तब सुल्तान ने उसको कुछ संकेत किया । जिसे इब्नबतूता भी नहीं देख सका । गुलाम ने तुरंत वहां रखा खंजर उठाया और अपने पेट में भोंक लिया । उसका तत्काल देहांत हो गया । इसके पश्चात सुल्तान ने पुनः ताली बजाई। तब दूसरा गुलाम उपस्थित हो गया । उसने मरे हुए गुलाम के शव को महल से नीचे फेंक दिया । सुल्तान मोहम्मद तुगलक ने इब्नबतूता से कहा – क्या ऐसे वफादार गुलाम भी तुम्हारे बादशाह के पास हैं ?
हमने इस उद्धरण को यहां पर केवल इसलिए दिया है कि हमारे यहां पर प्राणों की कोई चिंता नहीं होती । प्राण निकल गए तो माना जाता है कि शरीर का नाश हुआ है , आत्मा का नाश नहीं हुआ । आत्मा तो अजर – अमर है । जिसके विषय में हम पूर्व में ही प्रकाश डाल चुके हैं । यह स्थिति सात्विक वीरता की पराकाष्ठा है। जिसके विषय में निसंदेह और पूर्ण गर्व के साथ कहा जा सकता है कि संसार भर में ऐसी भावना केवल और केवल भारत के वीरों में ही मिलती आई है । इसी वीरता का संचार गुलामी के या पराभव के उस काल में हमारे भीतर होता रहा , जिसके कारण हम अत्यंत भयावह परिस्थितियों में भी शत्रु का सामना करते रहे । इसी भावना को बंदा वीर बैरागी जैसे लोग समय-समय पर आकर बलवती करते रहे।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत