ह्वेनसांग ने भारत के बारे में अपने यात्रा संस्मरण में एक अति विचित्र स्थान का वर्णन किया है। शायद यह स्थान भुवनेश्वर उड़ीसा का हाथीगुफा वाला स्थान ही रहा होगा।
इस विदेशी यात्री के माध्यम से हमें वर्णन मिलता है कि एक पर्वत में भिक्षुओं के आवास हेतु असंख्य गुफाएं चट्टानों को काटकर बनाई गई थीं । सबसे नीचे की मंजिल हाथी के आकार की थी। इसमें एक हजार गुफा निर्मित थीं । हाथी की पीठ पर ऊपर की मंजिल सिंहाकृति की थी । यहां 500 गुफाएं थीं । तीसरी मंजिल वृषभ – आकार अर्थात बैल के आकार की थी। इसमें 250 गुफाएं और अंत में शीर्षस्थ कबूतर वाले आकार में 50 गुफाएं निर्मित थीं । एक गुफा में एक भिक्षुक आराम से रहता था। विशेष बात यह थी कि प्रत्येक गुफा के आगे स्वच्छ जल का स्रोत रहता रहता था ।
है या नहीं आश्चर्य की बात ?
सचमुच भारत महान है ।
आजकल हम ऊंचे – ऊंचे टावर देखकर आश्चर्य करते हैं , परंतु किसी के भी सामने जल का स्रोत बहता हुआ दिखाई नहीं देता। इसके विपरीत जल के स्रोतों को अर्थात भूगर्भीय जल को नीचा कर या समाप्त कर यह टावर खड़े किए जा रहे हैं जो निश्चित ही हमारे लिए भविष्य में विनाशकारी सिद्ध होंगे ।
अपने प्राचीन गौरवपूर्ण अतीत के ज्ञान से वंचित क्यों हो गए ? क्योंकि हमने इतिहास को कूड़ेदान की वस्तु मान लिया । इसलिए आज के निर्मम , निर्दयी और हमारे विनाश के प्रतीक टावर या भवनों को देखकर आश्चर्यचकित होते हैं। यदि अपने बारे में हमको सही जानकारी हो तो पता चल जाएगा कि हम क्या थे और ये ‘आज वाले ‘ क्या हैं ?
डॉ. राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत