परमात्मा से सम्बद्धता के साथ कमाई गई सम्पदा का क्या प्रभाव होता है?
परमात्मा की सम्बद्धता के साथ सम्पदा कैसे कमाई जाती है?
सनादेव तव रायो गभस्तौ न क्षीयन्ते नोप दस्यन्ति दस्म।द्युमाँ असि क्रतुमाँ इन्द्र धीरः शिक्षा शचीवस्तव नः शचीभिः।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.62.12 (कुल मन्त्र 722)
(सनात्) प्राचीन समय से (एव) केवल (तव) आपका (रायः) सम्पदा (गभस्तौ) हाथों में, प्रबन्धन में (न) नहीं (क्षीयन्ते) नाश करता है (न) नहीं (उप दस्यन्ति) कमजोर करता है (दस्म) सभी दर्दों और दुर्गुणों का नाशक (द्युमान्) प्रकाशित (असि) हो (क्रतुमान्) कार्य करने में सक्रिय (इन्द्र) सर्वोच्च नियंत्रक (धीरः) बुद्धिमान व्यक्ति (शिक्षा) प्रवचन करता है, शिक्षित करता है (शचीवः) सर्वोच्च शक्ति, परमात्मा (तव) आप (नः) हमें (शचीभिः) आपकी शक्तियों और कार्यों के साथ।
व्याख्या:-
परमात्मा से सम्बद्धता के साथ कमाई गई सम्पदा का क्या प्रभाव होता है?
दुःखों और दुर्गुणों के नाशक! पुरातनकाल से आपके हाथ की सम्पदा अर्थात् आपके प्रबन्धन की सम्पदा अथवा आपके साथ सम्बद्धता वाले व्यक्तियों की सम्पदा न कभी नष्ट होती है और न ही कमजोर होती है। सर्वोच्च नियंत्रक और सर्वोच्च शक्तिमान! आप बुद्धि तथा गतिविधियों में सक्रियता में प्रकाशित हो। कृपया हमें अपनी शक्तियों और कार्यों से शिक्षित करो और उपदेश करो।
जीवन में सार्थकता: –
परमात्मा की सम्बद्धता के साथ सम्पदा कैसे कमाई जाती है?
परमात्मा के साथ सम्बद्धता वाली सम्पदा का अर्थ है श्रेष्ठ मार्गों और श्रेष्ठ साधनों से कमाई गई सम्पत्ति तथा दूसरों के कल्याण में श्रेष्ठ पथ पर ही खर्च की गई। हम अपनी बुद्धि तथा कार्य करने की शक्ति के बल पर सम्पदा अर्जित करते हैं। परमात्मा सर्वोच्च बुद्धि है और सर्वोच्च शक्ति है। हमें परमात्मा से दिव्य मार्ग दर्शन प्राप्त करना चाहिए जिससे हम बुद्धि तथा कार्य करने की शक्ति प्राप्त कर सकें। ऐसे दिव्य मार्ग दर्शन से कमाई गई सम्पदा ही दिव्य और गौरवशाली सम्पदा बन सकती है।
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