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भारतीय संस्कृति

*वैदिक संध्या से ईश्वर उपासना*

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– विकास आर्य

परमपिता परमात्मा ने संसार का सबसे श्रेष्ठ प्राणी मनुष्य को बनाया है। मनुष्य अर्थात जो मनन कर सकें जीवन में होने वाली उचित और अनुचित बातों को उत्तम व्यवहार को और सेवा भाव को जो जीवन में लेकर के आता है वास्तव में वही मनुष्य है जो सदैव दूसरे प्राणियों के हित की भावना रखता है। और जब परमपिता परमात्मा ने मनुष्य को इतना बुद्धिमान बनाया है और उसको इस भौतिक जगत में अनेक प्रकार के संसाधन दिए हैं तो मनुष्य का कर्तव्य बनता है कि वह परमपिता परमात्मा के द्वारा दिए गए उपकारों को याद करते हुए उसको स्मरण करें प्रात और सायं वैदिक संध्या करें।

साध्यायन्ति सन्ध्यायते वा परब्रह्म यस्यां सा सन्ध्या

संध्या शब्द का अर्थ यह है कि भली-भांति परमात्मा का ध्यान करें व ध्यान किया जाए परमेश्वर का ध्यान करना उसके गुणों का वर्णन करना एवं उसे धन्यवाद करना संध्या कहलाती है रात और दिन के संयोग के समय दोनों संध्याओं में सब मनुष्य को परमेश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करनी चाहिए।

संध्या से पहले जल आदि से ब्रह्य शरीर की तथा राग द्वेष, क्रोध, वासना आदि के त्याग से अंतःकरण की शुद्धि करनी चाहिए क्योंकि मनु महाराज ने लिखा है मनुस्मृति में

अद्भिर्गात्राणि शुद्धयन्ति मनः सत्येन शुद्धयति।
विद्यातपोभ्याँ भूतात्मा बुद्धिज्र्ञानेन शुद्धयति।।
[मनुस्मृति, अ० ५, श्लोक १०९]

जब जल द्वारा शरीर की सभी इंद्रियां पवित्र हो जाती हैं सत्य से मन पवित्र हो जाता है ब्रह्माविद्या से जीव आत्मा पवित्र हो जाती है तथा ज्ञान द्वारा बुद्धि शुद्ध हो जाती है।

शरीर की शुद्धि के साथ-साथ मन की शुद्धि भी अनिवार्य है क्योंकि मन ही ईश्वर प्राप्ति का एक मात्र सर्वोत्तम साधन है। शरीर व मन की शुद्धि के बाद उपासक संध्या में बैठने पर कम से कम तीन बार प्राणायाम अवश्य करें अर्थात् भीतर की वायु को बलपूर्वक तीव्र गति से बाहर निकाल कर यथाशक्ति बाहर ही रोके, फिर धीरे-धीरे भीतर खींचे और कुछ क्षण रोक कर बाहर निकाल दें इससे मन और आत्मा दोनों शान्त रहते हैं इसके अनंतर गायत्री मंत्र से शिखा बांध के रक्षा करें इसका प्रयोजन यह है कि इधर-उधर केश न गिरे, यदि केशादि पतन न हो तो न करें और रक्षा करने का प्रयोजन यह है कि परमेश्वर प्रार्थित होकर सब भले कामों में उत्तम कार्यों में सदा सब जगह हमारी रक्षा करें

इस प्रकार से जो व्यक्ति प्रात: और सायं वैदिक संध्या करता है उस परमपिता परमात्मा के ध्यान में अपना समय व्यतीत करता है उस व्यक्ति का जीवन हमेशा आनन्द में रहता है शान्ति में रहता है और परमपिता परमात्मा की विशेष कृपा उसके ऊपर बनी रहती है उसके जीवन से अर्कमण्यता का विनाश हो जाता है और व्यक्ति श्रेष्ठ पथ पर आगे बढ़ जाता है एवं संध्या करने वाले व्यक्ति के जीवन में हमेशा सकारात्मक विचारों का आदान प्रदान होता रहता है।

यदि प्रारम्भ में किसी व्यक्ति को संध्या याद नहीं है तो वह परमपिता परमात्मा का मुख्य नाम ओ३म् का जाप कर सकता है या फिर गायत्री मन्त्र का जाप कर सकता है जिससे कि उस व्यक्ति की बुद्धि भी प्रबल होती है इस प्रकार जीवन के वास्तविक उद्देश्य की प्राप्ति होती है इसलिए प्रत्येक नर नारी को प्रातः और सायं वैदिक संध्या अवश्य करनी चाहिए।

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