कौन परमात्मा से प्रार्थना तथा उसकी प्रशंसा करता है?
कौन परमात्मा से प्यार करता है?
क्या परमात्मा के प्रति प्रेम सभी मानवों में एक निश्चित सत्य लक्षण है?
सनायुवो नमसा नव्यो अर्कैर्वसूयवो मतयो दस्म दद्रुः।
पतिं न पत्नीरुशतीरुशन्तं स्पृशन्ति त्वा शवसावन्मनीषाः ।।ऋग्वेद मन्त्र 1.62.11 (कुल मन्त्र 721)
(सनायुवः) प्राचीन और शाश्वत अर्थात् सनातन की इच्छा करने वाला (नमसा) नमन के साथ (नव्यः) नया, उत्तम (प्रशंसा करने, महिमागान में) (अर्कैः) प्रार्थना मन्त्रों के साथ (वसूयवः) सम्पदा और ज्ञान आदि की इच्छा करने वाला (मतयः) बुद्धि (दस्म) नाश करने वाला (दुःखों और दुर्गुणों का) (दद्रुः) आपकी तरफ बढ़ने वाला (पतिम्) पति को (न) जैसे कि (पत्नीः) पत्नी (उशतीः) चाहती हुई (उशन्तम्) चाहते हुए के पास (स्पृशन्ति) स्पर्श करती है (त्वा) आपको (शवसावन्) सभी बलों का स्वामी (मनीषाः) मननशील मनुष्य।
व्याख्या:-
कौन परमात्मा से प्रार्थना तथा उसकी प्रशंसा करता है?कौन परमात्मा से प्यार करता है?
जो बुद्धिमान लोग उस प्राचीन और शाश्वत अर्थात् सनातन की इच्छा करते हैं और जो लोग सम्पदा और ज्ञान आदि की इच्छा करते हैं वे नमन तथा प्रार्थना, आपकी प्रशंसा और स्तुतिगान के नये मंत्रों के साथ आपकी तरफ अग्रसर होेते हैं, जो सभी दुःखों और दुर्गुणों के नाशक हो। जिस प्रकार एक कामना करती हुई पत्नी कामना किये जाने वाले पति को प्रेम और श्रद्धा से स्पर्श करती है, उसी प्रकार मननशील व्यक्ति आपको प्रेम करते हैं जो सभी बलों के स्वामी हो।
जीवन में सार्थकता: –
क्या परमात्मा के प्रति प्रेम सभी मानवों में एक निश्चित सत्य लक्षण है?
परमात्मा की प्रशंसा और प्रार्थना उसके चाहने वालों का एक सदा सत्य रहने वाला लक्षण है। जो उस शाश्वत और प्राचीन शक्ति की चाहत रखते हैं या सम्पदा और ज्ञान की चाहत रखते हैं। लेकिन केवल मननशील व्यक्ति उसे ऐसे प्रेम करते हैं जैसे एक पत्नी अपने पति को प्रेम करती है। व्यक्तिगत स्तर पर भगवान से प्रेम एक दुर्लभ लक्षण है। मीरा ने भगवान कृष्ण को अपना पति मानते हुए प्रेम किया। हमें भी भगवान को व्यक्तिगत स्तर पर प्रेम करना चाहिए।
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