भूमि हमारे लिए क्या करती है?
हमारा भूमि से क्या सम्बन्ध है?
भूमि माता और बहन की रक्षा कैसे करें?
सनात्सनीळा अवनीरवाता व्रता रक्षन्ते अमृृताः सहोभिः।
पुरू सहस्त्रा जनयो न पत्नीर्दुवस्यन्ति स्वसारो अह्रयाणम्् ।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.62.10 (कुल मन्त्र 720)
(सनात्) प्राचीन समय से अर्थात् सनातन (सनीळा) परमात्मा में रहने वाला, परमात्मा के निकट (अवनीः) भूमि, अंगुलियाँ (अवाता) विश्वसनीय, अहिंसक (व्रता) व्रत, संकल्प (रक्षन्ते) रक्षा करते हैं (अमृृताः) न मरने वाला (सहोभिः) अपनी शक्तियों के साथ (पुरू) बहुत (सहस्त्रा) हजारों में (जनयः) जन्म देने वाली (न) जैसे कि (पत्नीः) पत्नियाँ (दुवस्यन्ति) सेवा करती हैं (स्वसारः) पहले (अह्रयाणम््) सक्रिय और ऊर्जावान्।
व्याख्या:-
भूमि हमारे लिए क्या करती है?
हमारा भूमि से क्या सम्बन्ध है?
अनन्तकाल से भूमि परमात्मा में वास करते हुए और परमात्मा के निकट वास करते हुए सभी जीवों के लिए वफादार और अहिंसक है। वह हमारे संकल्पों की रक्षा करती है। वह अमृत है, अपनी सभी शक्तियों के साथ सदैव सक्रिय है। पत्नियों की तरह धरती माता अनेकों हजारों को जन्म देती है और बहनों की तरह सक्रिय और ऊर्जावान भाईयों की सेवा करती है। ‘अवनीः’ का अर्थ है अंगुलियाँ भी होता है। यह भी सभी जीवों के लिए वफादार और अहिंसक होती हैं। वे हमारे संकल्पों की रक्षा में सहायक होती हैं। वे अपनी सभी शक्तियों के साथ सदैव सक्रिय रहती हैं। इनमें सभी पांचों तत्त्वों की शक्तियाँ होती हैं। इसीलिए योगी लोग अलग-अलग प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिए अंगुलियों के प्रयोग से ही भिन्न-भिन्न मुद्राओं का प्रयोग करते हैं।
जीवन में सार्थकता: –
भूमि माता और बहन की रक्षा कैसे करें?
भूमि माता के प्रति श्रद्धा और उसके रक्षण की भावना हमारे अन्दर उच्च स्तरीय दिव्यता की तरह होनी चाहिए। परमात्मा ने सभी जीवों को उत्पन्न करने और उनका पोषण करने का सर्वोच्च कार्य केवल धरती माता को ही दिया है। इसीलिए परमात्मा हमें प्रेरित करते हैं कि हम धरती को जन्म देने वाली माता और सेवा करने वाली बहन के रूप में समझें। अतः सभी मानवों का यह आवश्यक कर्त्तव्य है कि वे अपनी माँ और बहन की प्रदूषण से रक्षा करें। आधुनिक युग में असीमित मात्रा में खेती के माध्यम से इस भूमि माँ और बहन के अन्दर जहरीले रसायन मिलाये जा रहे हैं। अन्ततः यह सब कलियुग के लोगों के लिए ही विनाशकारी सिद्ध होगा। हमें इस महान् और दिव्य माता तथा बहन की पूजा करनी चाहिए।
सूक्ति:-
(सनात् सनीळा अवनीः अवाता) अनन्तकाल से भूमि परमात्मा में वास करते हुए और परमात्मा के निकट वास करते हुए सभी जीवों के लिए वफादार और अहिंसक है।
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