अंतरिक्ष मलबे से जूझता विज्ञान
सुनील कुमार महला
बढ़ती प्रौद्योगिकी, उन्नत संचार व्यवस्था, विज्ञान और विकास के इस युग में अंतरिक्ष में उपग्रहों के लगातार स्थापित होने से अंतरिक्ष में मलबे में लगातार वृद्धि हो रही है। हाल ही में भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू ने इस पर अपनी गहन चिंता व्यक्त की है, जैसा कि अंतरिक्ष में घूम रहा यह मलबा न केवल उपग्रहों की कक्षा में बल्कि हमारे वातावरण के लिये भी बहुत खतरनाक हो सकते हैं। यदि कोई बड़ा टुकड़ा पूरी तरह से नष्ट हुए बिना हमारे वायुमंडल में प्रवेश कर जाए तो यह पृथ्वी को(यहां पर उपस्थित जीवों, प्राणियों, वनस्पतियों तक को) भारी क्षति पहुँचा सकता है। एक जानकारी के अनुसार अंतरिक्ष मलबा 17,500 मील प्रति घंटे की गति से यात्रा करता है और 1 सेमी से बड़े मलबे की वस्तुओं की आबादी लगभग 1 मिलियन है। हालांकि, यह भी एक तथ्य है कि पृथ्वी के घने वायुमंडल से पुनः प्रवेश के दौरान होने वाली भीषण गर्मी के कारण मलबे की एक बड़ी मात्रा जल जाती है, लेकिन जो अवशेष बच जाते हैं, वे महासागरों और दुनिया के अन्य कम आबादी वाले क्षेत्रों में गिर जाते हैं, लेकिन अंतरिक्ष मलबे का खतरा तब भी कहीं न कहीं बरबकार रहता है।
दरअसल, हाल ही में भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू भारत के चंद्रयान-3 के चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरने की पहली वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित प्रथम राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस समारोह को संबोधित करते हुए अंतरिक्ष मलबे पर चिंता जताई है। दरअसल, आज विभिन्न देशों द्वारा अनेकानेक अंतरिक्ष अभियान लांच किए जा रहे हैं, जैसा कि विकसित और विकासशील देशों में अंतरिक्ष के रहस्यों को जानने समझने की एक बड़ी होड़ लगी है। आज अंतरिक्ष में मलबे के अनेक टुकड़े घूम रहे हैं और कहना ग़लत नहीं होगा कि अंतरिक्ष में अत्यधिक तीव्र गति से घूमने वाले ये टुकड़े अन्य अंतरिक्ष संपत्तियों और कार्यात्मक उपग्रहों के लिये खतरा माने जाते हैं। ऐसा अनुमान है कि पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थित पिंड 17,500 से 18,000 मील प्रति घंटे (7 से 8 किमी/सेकेंड) की गति से यात्रा करते हैं।लगभग 10 सेमी या उससे अधिक व्यास वाली वस्तुओं से होने वाला प्रभाव टीएनटी के विस्फोट के बराबर हो सकता है। बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि पृथ्वी की निचली कक्षा में अंतरिक्ष मलबे के 100 ट्रिलियन से ज़्यादा टुकड़े हैं, जिनका पता नहीं लगाया जा सका है।साइंस जर्नल में प्रकाशित ‘ पृथ्वी की कक्षा की रक्षा करें: उच्च समुद्र की गलतियों से बचें’ शीर्षक वाले अध्ययन से यह चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है। हालांकि, वर्ष 2030 तक भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों को मलबा मुक्त बनाने का लक्ष्य तय करने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की सराहना भी की है, लेकिन अंतरिक्ष में बढ़ रहा मलबा कहीं न कहीं धरती के सभी जीवों, मनुष्यों के लिए एक खतरा बनकर उभर रहा है। आज अमेरिका, चीन, रूस और भारत समेत अनेक देशों का अंतरिक्ष मलबा अंतरिक्ष में तैर रहा है। यदि हम यहां केवल भारत की ही बात करें तो एक आंकड़े के अनुसार भारत के पास 103 सक्रिय या निष्क्रिय अंतरिक्ष यान एवं 114 अंतरिक्ष मलबे की वस्तुएं हैं। इस प्रकार, भारत के कुल 217 अंतरिक्ष पिंड पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं। अब यहां प्रश्न यह है कि आखिर अंतरिक्ष मलबा है क्या ? तो इस संबंध में बताना चाहूंगा कि अंतरिक्ष मलबा, पृथ्वी की परिक्रमा करने वाली उन कृत्रिम सामग्रियों को कहते है, जो वर्तमान में कार्यात्मक स्थिति(फंक्शनल स्टेटस ) में नहीं हैं। इसे अंतरिक्ष कबाड़ या कक्षीय मलबा या स्पेस जंक भी कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि अधिकांश अंतरिक्ष मलबें निम्न पृथ्वी कक्षा में पाए जाते हैं। मानव द्वारा पृथ्वी की कक्षा में भेजे गए उपग्रह निष्क्रिय स्थिति में छोटे-छोटे टुकड़ों में परिवर्तित होकर पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगाते रहते हैं। नासा के अनुसार, निम्न पृथ्वी कक्षा में 15,700 मील प्रति घंटे की गति से 27,000 से अधिक मलबे के टुकड़े चक्कर लगा रहे हैं। यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि मुक्त अवस्था में अंतरिक्ष मलबा परिचालन एवं संचार उपग्रहों के लिये खतरा उत्पन्न कर सकता है। यहां तक कि इसके टकराने से उपग्रह निष्क्रिय हो सकते हैं। पाठकों को यह जानकारी हासिल करके आश्चर्य होगा कि छोटे से छोटे मलबे के टुकड़े (मिलीमीटर आकार के मलबे) से होने वाली टक्कर भी उपग्रहों को नष्ट कर सकती है। इसे ‘केसलर सिंड्रोम’ के रूप में जाना जाता है। अच्छी बात यह है कि अंतरिक्ष पर्यावरणीय खतरों से भारतीय अंतरिक्ष संपत्तियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये ‘इसरो सिस्टम फॉर सेफ एंड सस्टेनेबल स्पेस ऑपरेशंस मैनेजमेंट’ को लॉन्च किया गया है। इसरो द्वारा इस संबंध में अनेक अनुसंधान गतिविधियां शुरू की गई हैं, जो हमारे लिए एक सुखद संकेत है। हमारे यहां बेंगलुरु में एक समर्पित अंतरिक्ष स्थिति जागरूकता नियंत्रण केंद्र भी स्थापित किया गया है। इसरो अंतरिक्ष मलबे को कम करने के लिये सेल्फ-ईटिंग रॉकेट( इसमें रॉकेट प्रभावी रूप से ‘स्वयं को नष्ट कर देंगे’ ताकि समुद्र में कोई कचरा न गिरे और न ही अंतरिक्ष में कोई मलबा बचे) और सेल्फ-वैनिंशिंग सैटेलाइट(उपग्रह को उसके जीवनकाल के पश्चात् एक ‘किल-बटन’ के माध्यम से उसकी कक्षा में जलाकर नष्ट कर देना) जैसी भविष्य की तकनीकों पर भी कार्य कर रहा है। यहां पाठकों को यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि इसरो नेटवर्क फोर स्पेस आब्जेक्ट्स ट्रैकिंग एंड एनालिसिस यानी कि ‘नेत्र प्रोजेक्ट’ के तहत भारत में विभिन्न स्थानों पर रडार, टेलीस्कोप, नियंत्रण केंद्र एवं डाटा प्रोसेसिंग इकाइयों को स्थापित कर छोट-से-छोटे मलबे की ट्रैकिंग कर रहा है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि अंतरिक्ष में भीड़भाड़ के कारण पृथ्वी की कक्षा में वस्तुओं के बढ़ते घनत्व के कारण अंतरिक्ष मलबे की मात्रा में वृद्धि हो रही है, जिससे टकराव की एक श्रृंखला प्रतिक्रिया हो सकती है। अंत में यही कहूंगा कि अंतरिक्ष मलबे के निर्माण को रोकने के लिए हमारे अंतरिक्ष वैज्ञानिकों यह सुनिश्चित करना होगा कि उपग्रहों को उनके पूरे जीवन चक्र में, उनके प्रक्षेपण चरण से लेकर, जीवन के अंत तक जब वे सेवामुक्त हो जाते हैं, उन सभी का सावधानीपूर्वक प्रबंधन किया जाए। यह अच्छी बात है कि आजकल प्रक्षेपण प्रक्रिया को पहले की तुलना में अधिक स्थायी रूप से प्रबंधित किया जा रहा है और इस दिशा में अनुसंधान,नये प्रयोग भी लगातार जारी हैं। भारत समेत विश्व के विकसित व विकासशील देश अंतरिक्ष कचरे के प्रबंधन की दिशा में लगातार कार्य कर रहे हैं और आने वाले समय में इस दिशा में हम और भी बेहतर कर पायेंगे।
सुनील कुमार महला