वेदांग ज्योतिष ग्रंथ के आधार पर तिथि पत्रक ( Calendar ) तैयार करने की आवश्यकता :

images (21)

क्या रामायण, महाभारत और पुराणों में इतिहास और कालक्रम वेदांग ज्योतिष के अनुसार दिया गया है ? अर्थात उन ग्रंथों में उत्तरायण ( Winter Solstice) के आसपास प्रारंभ होने वाले माघ शुक्लादि से प्रारंभ होने वाले वर्ष अनुसार गणना है। आचार्य शिवराज कौंडिन्न्यान जी ने ऐसा प्रतिपादन तथ्यों के साथ किया है। उनके अनुसार चैत्र मास से प्रारंभ काल गणना बाद में या शक साम्राज्य काल में शुरू हुई, जिसे वैदिक परंपरा को छोड़कर हमने अपना लिया था।

अगर रामायण, महाभारत एवं पुराणों में कालगणनना माघ शुक्लादि वर्ष से है, तो उसे ठीक से समझने के लिए एक ऐसे तिथि पत्रक की आवश्यकता है, जिससे उन ग्रंथों में बताए इतिहास और कालक्रम को समझा जा सके।

वेदांग ज्योतिष की कलगणना में निम्न स्थिर मापक हैं –
1) सूर्योदय से अहोरात्र अर्थात पृथ्वी की अपनी धुरी पर घूमने की गति,
2) द्रिक सिद्ध उत्तरायण – प्रत्यक्ष में जिस दिन दंड की छाया सबसे लंबी हो, वह उत्तरायण का दिवस है।
3) अमावस्या और पौर्णिमा – चंद्रमा की अपनी धुरी पर घूमने और पृथ्वी की प्रदक्षिणा पर लगे समय का परिणाम।
4) सूर्य और चंद्रमा का आकाशीय नक्षत्रों के पृथ्वी सापेक्ष स्थान
5) अधिक मास एवं क्षय तिथि – सौर मास एवं अयन- चलन से चंद्र मासों का समन्वय बनाने रखने के लिए वेदांग ज्योतिष में पांच वर्ष के युग में दो अधिक मास एवं गणना के आधार पर तिथि क्षय ( कभी कभी चतुर्दशी तिथि का लोप होना) की व्यवस्था दी हुई है।

उपरोक्त सभी बातें लगभग अनंत काल से स्थिर ( Constant) हैं या उन में होने वाले परिवर्तन स्थिरवत हैं। पौर्णिमा – अमावस्या, उत्तरायण (WS), अयन – चलन ( Precession ) आदि विज्ञान द्वारा निर्धारित प्रत्यक्ष प्रमाण हैं अर्थात गणित के द्वारा उनको ज्ञात करके उनके अनुसार हजारों वर्षों का तिथि पत्रक बनाया जा सकता है।

वर्तमान मानव युग में भारतीय इतिहास लगभग 12 हजार वर्षों का है, अर्थात अंतिम हिम युग ( Last Ice Age) के अंत से ही भारत का इतिहास उपलब्ध है। उसमें भी सप्तर्षि संवत 6777 ईसा पूर्व से प्रारंभ होने के प्रमाण और तर्क उपलब्ध हैं। इसलिए अगर 6777 ईसा पूर्व से प्रारंभ करके और सप्तर्षि संवत के चतुर्थ चक्र की समाप्ति (2700×4 = 10800 वर्ष) तक अर्थात 4024 ईसवी तक का तिथि पत्रक बनाया जा सकता है। अगर ऐसा तिथि पत्रक बनाया जाता है, तो वह रामायण, महाभारत, पुराणों आदि में उपलब्ध इतिहास और कालक्रम को समझने में बहुत महत्वपूर्ण योगदान देगा।

आदरणीय श्री रविप्रकाश आर्य जी (@⁨Arya Raviprakash Prof IHAR Rohtak⁩ ) ने गत 9000 वर्षों का तिथि पत्रक बनाया है, जिसमें सप्तर्षि संवत, कलि संवत, विक्रम संवत और शालीवाहन शक आदि को एक साथ दिया गया है। अगर उस पर विचार करके सप्तर्षि संवत और वेदांग ज्योतिष का संयुक्त तिथि पत्रक कोई बना दे तो वह भारतीय इतिहास और ज्ञान परंपरा को उनका महान योगदान होगा।

आप सभी से इस विषय पर संवाद रूप में विमर्श प्रस्तुत करने का अनुरोध है।

Comment: