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*ऋतु परिवर्तन की सूचक प्राकृतिक घड़ियां*!

लेखक आर्य सागर खारी

नौवीं कक्षा में सीजियम एटम आधारित परमाण्विक घड़ी के विषय में पढ़ा था जो सेकंड की परिभाषा को तय करती है…. आज उससे भी उत्तम परमाणु घड़ी बना ली गई है जो इतनी सटीक है कि 40 अरब वर्षों में महज 1 सेकंड त्रुटि की गुंजाइश उसमें रहती है…. स्पेस रिसर्च सुपर कंप्यूटर में इसका इस्तेमाल होता है समय को बहुत सटीकता से इंसान ने नाप लिया है लेकिन आज भी ऋतुओं के परिवर्तन का कोई प्रयोगशाला में निर्मित सूचक नहीं है प्रकृति में विविध औषधि लता, जीव जंतुओं में होने वाले परिवर्तन आज भी ऋतु परिवर्तन के आदर्श सूचक बने हुए हैं अलग-अलग भू-भागों के अनुसार उदाहरण के लिए आज सुबह मैंने देखा मॉर्निंग वॉक के दौरान कास की घास में अब फूल आने लगे हैं जब फूल आने लगते हैं तो वर्षा ऋतु की विदाई तय हो जाती है, शरद ऋतु के आगमन की भूमिका बन रही है प्रकृति में ऐसी बहुत सी व्यवस्था है जो पूरी सटीकता से ऋतु परिवर्तन का बोध कराती हैं। लोक कवि तुलसीदास जी ने रामायण की चौपाई में भी इस ऋतु परिवर्तन के साथ कास के फूल के संबंध को कुछ यु कहा है

फूले कास सकल मही छाई, जनु बरसा कृत प्रकट बुढ़ाई’

अर्थात कास में फूल आ गए हैं समझो वर्षा ऋतु अब बुढी हो गई है।

गांव के जंगल गोचर जब कांस के फूल से भर जाते थे जब पूरी तरह तो बरसात समाप्त हो जाती थी प्रायः देखा जाता है जन्माष्टमी तक कास में फूल आने लगते हैं इस दिन से ही हमारे पूर्वज शीत ऋतु की तैयारी करना शुरू कर देते थे। सीधी साधी प्रकृति के वह लोग प्राकृतिक जीवन जीते थे । कृत्रिमता का उनके जीवन में कोई स्थान नहीं था प्राकृतिक सहज सुखायु वृद्धावस्था भोगकर वह लोग मरते थे। चरक व सुश्रुत संहिता में उल्लेख मिलता है वैद्य लोग वर्षा ऋतु की विदाई व शरद के आगमन के दौरान पूरे वर्ष भर के लिए विभिन्न औषधियों का चयन करते थे इस दौरान औषधि पूरे रस से युक्त प्रभावशाली रहती है सोमतत्व प्रधान रहता है अन्य व गर्मी की ऋतु में औषधि चयन नहीं किया जाता था क्योंकि सूर्य के तेज से औषधियों का रस सूख जाता था ।

लेखक आर्य सागर खारी

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