धर्म का मूल स्वरूप और उसका सिद्धांत
|| आज धर्म के मूल सिद्धांत को देखते है ||
धर्म की व्यापकता के आधार पर इसके मूल सिद्धांतों का जानना बहुत जरूरी है, वरना हमारे मानव जीवन का उद्देश्य ही विफल हो जायेगा, हम धरती पर मात्र बोझ बनकर ही रह जायेंगे | मानव जीवन को सफल बनाने के लिए एक मात्र रास्ता है धर्माचरण, अगर हम धर्म के सिद्धांतों को नहीं जानते है तो हम आचरण किसपर करेंगे भला ? इसलिए हम आज धर्म के सिद्धांतों को सामने रखेंगे | धर्म मूलत:आत्मा की चेतना, आत्मा के मूल विकास की विधि है| धर्म मनुष्यों को ईश्वरीय शक्ति को जानकर उसे पूर्णरूप से अपने जीवन में धारण करने की प्रक्रिया को ही धर्म कहा जाता है|
धर्म उत्कृष्ट व उन्नत जीवन-यापन की एक कला है, जिससे मनुष्य को आनन्द की अनुभूति होती है |
धर्म सार्वभौम, जो मानव मात्र का एक ही होता है, धर्म किसी व्यक्ति विशेष अथवा किसी व्यक्ति के निर्मित, अथवा किसी सम्प्रदाय के लिए या उनके निर्मित, किसी देश और काल के लिए नहीं जो समाज में भेद उत्पन्न करे या मानव समाज में विघटन पैदा करे |
धर्म समस्त मानव जाती के कल्याण के लिए कामना करता है| धर्म जीवन को शाश्वत मूल्यों की स्थापना करता है जिसमे मानवीय गरिमा उत्कृष्टता को प्राप्त होती है |
धर्म ईश्वर प्राप्ति का साधन है, धर्म संसार को तिरस्कृत करने का उपदेश नहीं देता, धर्म मानव को आचरण करने उसपर अमल करने का ही उपदेश देता है | यह धरती या सृष्टि मात्र धर्म पर ही टिकी हुई है, धर्म से ही सृष्टि नियम का संचालन हो रहा है |
प्रकृति के स्वभाव अथवा नियम के अनुसार ही मनुष्य जीवन मिला है तथा उसी के अनुसार ही उसका संचालन हो रहा है | अतः इन नियमों के अनुसार जीवन चलाकर उसे विकासोन्मुख बनाने का नाम ही धर्म है |
सृष्टि परमात्मा की एक अनोखी कला है इसका हर कण-कण सत्य है सत्य को झुठलाना मानव का काम ही नहीं है | यही तो परमात्मा का उपदेश है की मुझे मत देखो मेरी कृति को देखो मेरी कला को देखो, मेरी रचना को देखो |
इस सृष्टि में जिधर भी देखो मेरी कलाकारी ही तुम्हें नज़र आएगी | कण-कण में मेरी कृति है इसे जानने वाले ही तुम मनुष्य कहलाने वाले ही हो इसीलिए धर्म भी तुम्हारे लिए बना है इस धर्म को जानने वाला भी मैंने तुम मानवों को बनाया हूँ |
इन्ही मानवता को विकसित करने का ही नाम धर्म है जो केवल और केवल मनुष्यों को ही प्राप्त हुवा है अन्य प्राणियों को नहीं | धर्म का सम्बन्ध इसी जीवन से ही नहीं बल्कि जीवात्मा के जीवन से है जिसकी प्रक्रिया अनेक जीवन तक चलती है |
धर्म मानव जीवन के भौतिक उन्नति का ही साधन मात्र नहीं हैं, बल्कि जीवात्मा की मानसिक एवं अध्यात्मिक उन्नति का मुख्य साधन है | यह संसार और परलोक, जीवन और मोक्ष दोनों को एक साथ साधने की विधि है | धर्म संसार को एक पाठशाला की भांति मानता है जिसमे रहकर श्रेष्ठ संस्कारों का निर्माण किया जाता है तथा जीवन में प्राप्त अनुभवों के आधार पर अगले जीवन को श्रेष्ठ बनाया जा सकता है | धर्म की साधना भौतिक जीवन से ही संभव है | इसलिए धर्म वर्तमान जीवन को सर्वाधिक महत्त्व देता है, इसकी उपेक्षा नही करता | इस आधार पर धर्म के तीन पक्ष हो जाते है- सिद्धांत, आचरण एवं साधना इसपर विचार करें |
सिद्धांत, आचरण व साधना धर्म का सिद्धांत पक्ष है | धर्म शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के “धृ” धातु से बनी है जिसका अर्थ है धारण करना | वह वस्तु जो समस्त विश्व को धारण कर रही है वही धर्म है, इस प्रकार धर्म से ही समस्त सृष्टि का मूल आधार है |
इस समस्त सृष्टि को धारण करने वाला एक मात्र ईश्वर है जिसके विशिष्ट नियमों के आधार पर इसका संचालन हो रहा है | इसलिए स्रष्ठा एवं सृष्टि के नियमों को जानना ही धर्म का सिद्धांत पक्ष है जिसने अध्यात्म विज्ञान को जन्म दिया है |
सृष्टि का संचालन दो प्रकार के नियमों से हो रहा है | जड़ प्रकृति के अलग नियम है जिसे “विज्ञान” नाम दिया तथा चेतना- शक्ति के अलग नियम है जिसे “अध्यात्म” कहा जाता है |
इन दोनों प्रकार के नियमो को जानकर ही मनीषियों ने धर्म की स्थापना की | इस आधार पर धर्म के दो भाग हो जाते है – पहला उसका प्राण तथा दूसरा उसका कलेवर| धर्म का जो सिद्धांत पक्ष है, जो अध्यात्म पक्ष है वही उसका प्राण होता है जिसमे कोई परिवर्तन नही होता | ये सृष्टि के शाश्वत नियम है |
सृष्टि क्या है, यह किस प्रकार बनी, इसका संचालन किन नियमों से हो रहा है, जीवन क्या है, मृत्यु क्या है, जीवात्मा का विकास किस प्रकार होता है, कर्मफल, पुनर्जन्म का आधार क्या है वक्यों होते है, स्वर्ग, नरक व परलोक का क्या अस्त्तित्व, शरीर रचना के मुख्य घटक मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आदि की क्रियाएं किस प्रकार होती है, जड़ और चेतन में क्या अंतर है, जीवात्मा एवं परमात्मा में क्या भेद है, चेतना का विकास किस प्रकार होता है आदि की जानकारी होना इसका सैद्धान्तिक पक्ष है जिसके आधार पर ही धर्म का सारा भवन खड़ा किया गया है| इसी सिद्धांत पक्ष को अध्यात्म कहा जाता है | यही इसकी नींव है सृष्टि रचना एवं संचालन के ये नियम शाश्वत है, जिनपर देश काल व परिस्थिति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता | यही नियम धर्म के प्राण है जिसपर धर्म का अस्तित्व टिका हुआ है |
महेन्द्र पाल आर्य = 3 =9 = 24
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