वैदिक वांग्मय किसे कहते हैं?
वैदिक वांग्मय क्या है?
वेद, वेदांग, उपांग, शाखाएं, उपनिषद ,स्मृतियां क्या है?
सर्वप्रथम वैदिक वांग्मय को स्पष्ट करने से पूर्व वैदिक इतिहास को समझना आवश्यक है। वैदिक ग्रंथों को समझना आवश्यक है।
वैदिक वांग्मय में अगर कोई आधारभूत रचना है तो वो चार वेद हैं
। चार वेद कौन-कौन से हैं?
1 ऋग्वेद 2 यजुर्वेद 3 सामवेद 4 अथर्ववेद।
चारों वेद ही सभी विद्याओं का मूल है। अर्थात सब सत्य विद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं उन सब का आदि मूल परमेश्वर है और परमेश्वर का ज्ञान वेद में है। क्योंकि वेद अपौरुषेय हैं क्योंकि वेदों का ज्ञान ईश्वर के द्वारा प्रदत्त है।
ईश्वर ने वेदों का ज्ञान कौन-कौन से ऋषियों को दिया?
अग्नि ,वायु ,आदित्य और अंगिरा। चार ऋषियों को सृष्टि के प्रारंभ में ज्ञान दिया।
ईश्वर ने चार ऋषियों को ज्ञान कैसे दिया?
सृष्टि के प्रारंभ में यह चार ऋषि समाधि में बैठकर ईश्वर का ध्यान करते और ईश्वर से ज्ञान की प्रेरणा मंत्रों के स्वरूप में मिलती क्योंकि यह चारों ऋषि पूर्व सर्ग में मोक्ष आत्माएं थी। जिनको सृष्टि के प्रारंभ में उत्पन्न करके ध्यानावस्था में वेदों का ज्ञान दिया। जो ईश्वर प्रत्येक सर्ग के प्रारंभ में करता रहता है। क्योंकि ईश्वर का नियम है कि वह प्रत्येक सृष्टि को सदैव से एक सा बनाता है उसमें कोई परिवर्तन नहीं करता।
उक्त चारों ऋषियों में से कौन से ऋषि ने कौन सा वेद बनाया?
अग्नि ऋषि ने ऋग्वेद, वायु ऋषि ने यजुर्वेद, आदित्य ऋषि ने सामवेद, अंगीरा ऋषि ने अथर्ववेद की रचना की।
उक्त चारों वेदों के उपवेद कौन-कौन से हैं?
ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है। यजुर्वेद का उपवेद धनुर्वेद है। सामवेद का उपवेद गांधर्ववेद है। अथर्ववेद का उपवेद अर्थवेद है।
उक्त चारों वेदों के ब्राह्मण कौन से हैं?
ऋग्वेद का ब्राह्मण ऐतरेय,
यजुर्वेद का ब्राह्मण शतपथ, सामवेद का ब्राह्मण साम, अथर्ववेद का ब्राह्मण गोपथ ब्राह्मण है।
वेदों के अंग क्या है? तथा कितने हैं?
एक शिक्षा, दो व्याकरण, तीसरा निरूक्त, चौथा छंद,पांचवा कल्प,छठा ज्योतिष
अर्थात कुल 6 अंग होते हैं।
वेदों के उपांग कितने हैं?
उपांगों को शास्त्र भी कहते हैं और शास्त्र भी छह है। जिन्हें उपांग अथवा दर्शन के नाम से भी जाना जाता है।
1योग दर्शन 2 सांख्य दर्शन 3
वैशेषिक दर्शन 4 न्याय दर्शन 5 वेदांत दर्शन 6 मीमांसा दर्शन
उपरोक्त 6 दर्शनों के लेखक या व्याख्याकारों के नाम भी बताएं?
वस्तुत: वेदों के अंग और उपांग वेदों की व्याख्यान माला है। जो भिन्न-भिन्न समय पर भिन्न-भिन्न ऋषियों के द्वारा, मुनियों के द्वारा , महर्षियों के द्वारा लिखे गए हैं, जो उन्होंने अपने-अपने विचार से वेदों के मंत्रों की व्याख्या करते हुए लिखे हैं।
योग दर्शन को महर्षि पतंजलि ने, सांख्य दर्शन को कपिल मुनि महाराज ने, वैशेषिक दर्शन को कणाद ऋषि ने, न्याय दर्शन को गौतम मुनि ने ,वेदांत दर्शन को व्यास ऋषि ने तथा मीमांसा दर्शन को जैमिनी मुनि ने लिखा है।
इतिहास के ग्रंथ रामायण, मनुस्मृति , याज्ञवल्क्य स्मृति, भृगु संहिता, महाभारत आदि है।
शाखा किसे कहते हैं?
शाखा का तात्पर्य विभाग से है।
वेदों के विभाग होने को शाखा कहते हैं।
वेदों की कुल कितनी शाखाएं हैं।
वेदों की कुल 1127 शाखा ऋषि दयानंद स्वामी जी महाराज के अनुसार और ऋषि पतंजलि के अनुसार 1131 ग्रंथ हैं।
1131 अथवा 1127 में से किसको उचित माने?
दोनों ही उचित है जो कि वेदों की शाखाएं 1127 हैं ,जिनको महर्षि दयानंद ने बताया है ।लेकिन स्वामी दयानंद जी महाराज ने इन शाखाओं में मूल वेदों को नहीं जोड़ा ।अगर इस 1127 की संख्या में चार मूल वेदों को जोड़ते हैं तो महर्षि पतंजलि की संख्या 1131 पूर्ण हो जाती है। इसलिए इसमें कोई भी संदेह नहीं होना चाहिए।
ऋग्वेद की शाखाएं कितनी है?
21 कुल है।
यजुर्वेद की शाखाएं कितनी है?
101 कुल है।
सामवेद की शाखाएं कितनी है?
1000 शाखाएं कुल हैं।
अथर्ववेद की शाखाएं कितनी है?
कुल नौ शाखाएं अथर्ववेद की है।
इस प्रकार 1131 हो जाती है।
उपनिषद का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उप शब्द का अर्थ होता है समीप होना, नि शब्द का अर्थ होता है निरंतर और षद का अर्थ बैठना होता है।
अर्थात निरंतर निकट बैठना का अर्थ उपनिषद है। जिसमें व्याकरण के अनुसार उप और नि दोनों उपसर्ग है, तथा षद धातु है। जो प्रत्यय आदि का प्रयोग करके उपनिषद शब्द बना दिया गया है।
उपनिषदों की उत्पत्ति कैसे हुई?
उपरोक्त में जो 1127 शाखाएं बताई गई हैं उनमें से ही अलग-अलग अध्याय बनाकर उपनिषद नाम दे दिया गया है।
उपनिषद कुल कितने प्रकार के होते हैं?
उपनिषद 11 हैं।
11 उपनिषदों के नाम बताएं?
एक ईश, दो केन, तीन कठ, चार प्रश्न ,पांच मुंडक 6 मांडुक्य सात ऐतरेय , आठ तैतिरीय 9 श्वेताश्वतर 10 छांदोग्य 11 ब्रहदारण्यक।
क्या आज भी 1127 शाखाएं वेदों की उपलब्ध हैं?
इसका उत्तर नहीं है।
ऐसा क्यों हुआ?
भारतवर्ष में महाभारत काल तक विद्वानों की कमी नहीं रही। वेदव्यास जी और जैमिनी मुनि महाभारत काल में हुए हैं जो गुरु शिष्य रहे। महाभारत के पश्चात विद्वानों की कमी हुई और इतिहास की हानि हो गई। आर्ष साहित्य अथवा वैदिक वांग्मय की भी बहुत बड़ी क्षति पहुंची है।
आज केवल थोड़ी सी शाखाएं की जानकारी ही उपलब्ध है। सब की जानकारी नहीं रही । क्योंकि वे सब नष्ट हो गई है।
देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
अध्यक्ष उगता भारत समाचार पत्र
ग्रेटर नोएडा
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