रामचंद्र जी ने आज युद्ध का मोर्चा स्वयं संभाला हुआ था। वह नहीं चाहते थे कि आज भी लक्ष्मण इधर-उधर से आकर युद्ध में अपनी अहम भूमिका का निर्वाह करते हुए रावण वध के लिए अपने आप को झोंक दे। वे छोटे भाई को एक शक्ति के रूप में बचा कर रखना चाहते थे। उन्हें अपने आप पर विश्वास था और इसी आत्मविश्वास के चलते वह आज रावण जैसे राक्षस का अंत कर देना चाहते थे।
कुछ ही क्षणों में छिड़ गया, फिर भीषण संग्राम।
रावण पर भारी पड़े , निश्चय ही श्री राम।।
रावण क्रोधावेश में , छोड़ रहा था बाण ।
चाह उसकी बस एक थी , हरूं राम के प्राण ।।
खड़े रोंगटे हो गए , ऐसा हुआ संग्राम।
अनुपम है इतिहास में , यह महा- संग्राम ।।
सत्य अहिंसा के लिए , देना पड़ता खून।
यही सनातन सत्य है , नहीं है संशय शूल।।
अंत में श्री राम ने , छोड़ा घातक बाण ।
शीश कटा लंकेश का , सर्पाकार वह बाण।।
धर्म के रक्षक राम ने, किया रावण संहार।
सनातन रक्षक राम के , गुण गाता संसार।।
अहिंसा को जब घेर लें, दानव कंटक शूल।
हिंसा ही तब धर्म है, अहिंसा का यही रूप।।
अहिंसा के सही रूप का, राम हैं सही मिसाल।
अंत पापी का करो , करके सोच विचार।।
शीश कटा लंकेश का , फिर भी रह गया शीश।
समझ पड़ा नहीं राम को, कितने उसके शीश?
मायावी लंकेश था , सब माया के खेल।
समझ गए श्री राम जी , उसका सारा खेल ।।
(रावण के दस सिर होने की बात भ्रामक है। उसका अपना एक ही सिर था। यहां पर उसे मायावी रावण कहा गया है। इसका अभिप्राय है कि उसने अपने कई हमशक्ल अर्थात छायावी रावण बना रखे थे । उनमें से एक रावण मर गया। इसका अभिप्राय है कि वास्तविक रावण अभी जीवित था। जब हम दशहरा पर रावण का दहन करते हैं तो उस समय हमारे पांच ज्ञानेंद्रियां और पांच कर्मेंद्रियां अर्थात इन 10 इंद्रियों और उनसे पैदा होने वाले काम, क्रोध आदि विकारों का दहन करना इसका अभिप्राय होता है। 10 इंद्रियों को रावण के 10 सिर दिखाया व माना जाता है। 10 विकार ही रावण का 10 सिरों वाला होना है।)
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )