Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम अध्याय – 47 : लंकेश हुआ भयभीत

रामचंद्र जी आज युद्ध का अंत कर देना चाहते थे । यही कारण था कि वह आज लंका के राजा रावण पर भीषण प्रहार कर रहे थे। आज उन्हें अपना परम शत्रु रावण ही दिखाई दे रहा था, जिसके कारण उस समय भयंकर विनाश हो चुका था। जितने भर भी लोग उस युद्ध में मारे गए थे उनकी मृत्यु का रावण को चाहे कोई शोक हो या ना हो, पर रामचंद्र जी के हृदय में प्रत्येक योद्धा के लिए सहज सहानुभूति और संवेदना थी। उनके लिए यह महत्वपूर्ण नहीं था कि जाने वाला उनके पक्ष का था या रावण के पक्ष का था ? उनके लिए तो इतना ही पर्याप्त था कि जो भी गया था वह एक मनुष्य ही गया था। जिसे यहां जीने का पूरा अधिकार था, पर रावण की मूर्खता के कारण उसे असमय ही संसार से जाना पड़ गया। बस, यही कारण था कि रामचंद्र जी आज अनेक लोगों की हत्या के दोषी रावण को छोड़ना नहीं चाहते थे।

युद्ध फिर से चल गया, लंकेश खड़ा रण बीच।
झपटा वह श्री राम पर, छोड़ दिए कई तीर।।

राम घायल हो गए , किया रावण का यही हाल ।
तभी मातली आ गए , रावण का लिए काल।।

युद्ध भयंकर चल गया, हुई बाणों की बरसात ।
दिन में ही लगने लगा , अब हो गई है रात ।।

यह सच है कि हमारा काल हमारे पास नहीं आता बल्कि हम ही अपने कर्मों की गति के चलते स्वयं काल के पास पहुंच जाते हैं। रावण भी अपने काल के निकट आ चुका था। उसके पाप कर्म स्वयं ही उसे उस मोड़ पर ले आए थे, जहां उसका काल आज उल्टी गिनती गिन रहा था। समय बड़ी तेजी से गुजर रहा था और समय ही उस समय की प्रतीक्षा कर रहा था जिस समय स्वयं समय थमकर समय को ही देखेगा। आज समय समय को समझेगा और समय ही समय से संवाद करेगा। उससे पूछेगा कि तू क्रूर होता है या कर्म क्रूर होता है या फिर फल का देने वाला क्रूर होता है ? आज समझो कि समय समय की ही ग्रीवा पकड़ लेगा और उससे झकझोर कर पूछेगा कि तू कर्म है या कर्म का फल है, नियति है या नियंता का निश्चित विधान है ?

अपने हाथों – मौत अपनी , ले आया लंकेश ।
अधर्मी और नीच उसको , कहते राम नरेश।।

आज ही तुझको भेज दूंगा, सीधे मैं यमलोक ।
तेरे जैसे नीच का , भला कौन करेगा शोक ?

पापी जन संसार में, मरते हैं सौ बार।
धर्म प्रेमी ना मरे , जब तक है संसार।।

जीवन का सार

जीवन यश में हो ढला, यही जीवन का सार।
जीवन के इस सार बिन , संसार लगे निस्सार।।

प्रेम रस के सार को , मान जगत का मूल।
द्वेष भाव इस मूल को , डंसता बनकर शूल।।

बाण वर्षा देखकर , लंकेश हुआ भयभीत।
पत्थर वर्षा कर रहे , वानर दल के वीर।।

सारथी लंकेश को , ले गया रण से दूर।
लंकेश लगा उसे कोसने, गाली दी भरपूर।।

डॉ राकेश कुमार आर्य

( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )

Comment:Cancel reply

Exit mobile version