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लेखक आर्य सागर खारी
सर्वेषां एव दानानां ब्रह्मदानं विशिष्यते अर्थात सब दानों में विद्या का दान सर्वश्रेष्ठ है। हमारी वैदिक संस्कृति में विद्या के दान को सर्वोपरि माना गया है अन्य सब दान छात्रवृत्ति भोजन आवास आदि विद्या के दान में ही सहयोगी बनते हैं।
उत्तर भारत में माध्यमिक शिक्षा के पश्चात कॉलेज एजुकेशन का अवस्थापना माडल सामाजिक सहकारिता से पोषित संचालित है ।जाति को जहां हम सामाजिक व्यवस्था में एक नकारात्मक विभाजनकारी प्रतीक के रूप में देखते हैं है भी लेकिन वही यह उत्तर भारत के इस शिक्षा मॉडल में एक आदर्श उत्प्रेरक रहा है भले ही अपवाद स्वरूप।
उत्तर भारत में विशेष तौर पर हम पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां जितने भी प्राइवेट स्वपोषित स्नातक व परास्नातक डिग्री कॉलेज हैं यह जाट गुर्जर त्यागी सैनी राजपूत आदि बिरादरीयों द्वारा निर्मित एजुकेशनल ट्रस्ट सोसाइटियों के माध्यम से संचालित है ।दूसरे वर्ग में पूंजीपतियों की संस्थाएं आती है। प्रथम वर्ग के इन कॉलेज का स्थापना इतिहास यदि हम देखते हैं तो इनकी स्थापना इन बिरादरियों के दर्जनों सैकड़ो गांवों ने मिलकर की है । गुर्जरों ने गुर्जरों से, जाटों ने जाटों से राजपूतो ने राजपूतों से आदि आदि चंदा लेकर इन संस्थाओं को खड़ा किया है इन कॉलेजों को अनौपचारिक तौर पर बिरादरी के कॉलेज की संज्ञा मिली हुई है और आज भी इस भावना से बिरादरी के लोगों का ही बिरादरी के इन कॉलेजों को दान के रूप में सहयोग मिलता है। बहरहाल वस्तुस्थिति कुछ भी हो लेकिन इन कॉलेजों के संस्थापको शिल्पियों का उद्देश्य पवित्र रहा है। सर्व समाज सभी बिरादरियों के बच्चे निकटतम उपलब्धता के आधार पर इन कॉलेजों में शिक्षा अर्जित करते हैं बिना भेदभाव के।
उपरोक्त वर्णित अवस्थापनागत शिक्षा मॉडल पर आधारित ऐसा ही एक अनूठा पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज है जिसकी अधिकारिक तौर पर स्थापना महज कुछ दशक पहले ही 1995 में बागपत में हुई थी जिसका नाम है सम्राट पृथ्वीराज चौहान पीजी कॉलेज। कुछ दिन पहले मैंने व वरिष्ठ इतिहास का डॉक्टर राकेश कुमार आर्य जी मुकेश वकील जी दुजाना वानप्रस्थी देव मुनि आदरणीय रामेश्वर सरपंच जी महावीर आर्य जी आचार्य राजकुमार शास्त्री आदि ने आर्य मित्र मंडल पश्चिमी उत्तर प्रदेश व आर्य प्रतिनिधि सभा बागपत के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कॉलेज में आर्य समाज के संगठन के विस्तार को लेकर आयोजित गोष्ठी में हिस्सा लिया था। वहां हमारा कॉलेज की प्रबंधन समिति जिसका आज तक निर्विरोध चुनाव होता है उसके कुछ सदस्यों से बहुत ही महत्वपूर्ण वार्तालाप हुआ।
कॉलेज की प्रबंध समिति के पदाधिकारियों के अनुसार व सामाजिक कार्यकर्ता जो चौहान समाज से आते हैंराकेश आर्य बागपत प्रतिनिधि संवाददाता उगता भारत अखबार के अनुसार -अपनी स्थापना के दो दशकों के दौरान ही यह कॉलेज चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय द्वारा संबंधित टॉप फाइव कॉलेज में से एक हो गया था आज भी है कायम है।मैनेजमेंट,कंप्यूटर साइंस ,विज्ञान ,कला ,वाणिज्य ,शिक्षा,विधि सहित विभिन्न संकायों में इस कॉलेज को यूजी से पीजी की मान्यता प्राप्त है एक दर्जन से अधिक कोर्स इस कॉलेज में आज संचालित है। प्रत्येक वर्ष इस कॉलेज से यूनिवर्सिटी टॉपर निकलते हैं। सम्राट पृथ्वीराज पीजी कॉलेज की फैकल्टी ने चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय द्वारा संचालित बहुत से कोर्स की पुस्तक के भी लिखी है।
सम्राट पृथ्वीराज चौहान पीजी कॉलेज में हमने देखा 30 लाख से अधिक धनराशि खर्च करके मुक्केबाजी का मंच ट्रैक तैयार किया गया ।साथ ही कॉलेज प्रांगण में पृथ्वी भवन के सभागार में शूटिंग अकादमी भी चल रही है ओलंपिक की प्रतिस्पर्धा में शामिल मुक्केबाजी निशानेबाजी को देखते हुए यहां छात्राओं को खेलों से भी जोड़ा जाता है। कॉलेज परिसर में घुसते ही सम्राट पृथ्वीराज चौहान की घोड़े पर सवार तीरंदाजी की मुद्रा में लगी हुई काले ग्रेनाइट की आदमकद पत्थर की प्रतिमा देखते ही मन को मोह लेती है। प्रतिमा के पास स्थापित शिलालेख सम्राट पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर प्रकाश डालता हैं। सचमुच हमें अपने महापुरुषों को समर्पित ऐसे ही शिक्षा संस्थान स्थापित करके उनको उच्च मानदंडों से संचालित करके श्रद्धांजलि देनी चाहिए।
यह कॉलेज को -एजुकेशन पर आधारित है ।ड्रेस कोड का पूरी कड़ाई से पालन होता है कोई भी छात्र-छात्रा मोबाइल फोन लेकर कॉलेज में प्रवेश नहीं कर सकता विशेष कठोरता बरती जाती है। यह एक उत्तम नियम है मैं समझता हूं ब्रांडेड कपड़े और मोबाइल फोन विद्यार्थी जीवन या कॉलेज लाइफ में सबसे बड़े अवरोधक विक्षेपक हैं यह कहीं ना कहीं असमानता की भावना को बढ़ावा देते हैं छात्र-छात्राओं की ऊर्जा केंद्रित नहीं हो पाती आज हम देखते हैं मेडिकल इंजीनियरिंग कॉलेजों में भी इंस्टाग्राम रील छात्र-छात्राएं बना रहे हैं जिसमें उनका उत्पादक समय नष्ट होता है । लाइक और व्यू के चक्कर में शिक्षा के मानदंड भी प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे कॉलेजो को इस कॉलेज से प्रेरणा लेनी चाहिए। रील बनाने वाले या वाली इन आधुनिक नटराजो, आधुनिक उर्वशी, रम्भाओ , का कॉलेज में क्या काम? इन्हें तो कहीं ओर ही रमण करना चाहिए।
मुख्य विषय पर लौटते हैं।जरा इस कॉलेज की स्थापना के प्रेरणादायक विचार इतिहास पर दृष्टिपात करते हैं। यू तो बागपत में आज 55 के लगभग डिग्री कॉलेज हैं लेकिन इस कॉलेज की स्थापना का इतिहास बहुत ही अनूठा है। बागपत में चौहानों के चार गांव हैं पाली, पुराना बागपत कस्बा,सीसाना, गौरीपुर जवाहर नगर इन चार गांव के कुछ बुजुर्गों जिनमे छोटन पटवारी, मुख्तार सिंह ,बेघराज सिंह आर्य जो हमारे मित्र आर्य राकेश चौहान कॉलेज की प्रबंधन समिति के सदस्य प्रवेश आर्य जी के पिता है मई 2024 में ही 107 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ है इन परोपकारी बुजुर्गों ने एक शिक्षा को समर्पित संस्थान का सपना देखा और इस सपने को अपने परिश्रम मिशनरी भाव से पूर्ण किया चौहान समाज के लोगों ने संस्था के लिए भूमि का दान किया कुछ भूमि खरीदी गई और उस भूमि पर 90 के दशक में सम्राट पृथ्वीराज चौहान पीजी कॉलेज का आधुनिक भवन खड़ा हो गया। यमुना पार हरियाणा सोनीपत आदि के आसपास व नोएडा मे भी चौहानों के गांव है उन सभी गांवों के चौहानों ने इस संस्था को दान के रूप में अपना सराहनीय सहयोग प्रदान किया है ।
खेती किसानी से जुड़ी हुई कोई भी बिरादरी हो चाहे गुर्जर जाट अहीर सैनी त्यागी आदि सभी ने स्वाधीनता के पश्चात शिक्षा की अहमियत को तेजी से पहचाना।
चौहान समाज ने शिक्षा की अहमियत को पहचाना है चौहान समाज प्रगतिशील रहा है अपनी स्त्रियों को खेतों में काम करने व शिक्षा अर्जित करने का इन्होंने अधिकार दिया इन्हीं रूढ़ियों के कारण शुरुआत में कुछ रूढ़िवादी अन्य क्षत्रिय, चौहानों से नाराज हो गये लेकिन आज वह समाज भी शिक्षा की महत्ता को पहचान रहे हैं आज वहां बेटियों को पर्दे में नहीं रखा जाता निरक्षर नहीं रखा जाता यह सब आर्य समाज के शिक्षा आंदोलन की ही देन है।
बागपत में बिरादरी मॉडल पर आधारित ऐसा ही दुसरा आदर्श संस्थान है,वैदिक जनता डिग्री कॉलेज बड़ौत ।इस संस्था का भी बड़ा ही प्रेरणादायक इतिहास है आज भी जाट समाज के लोग अपने खेत में एक क्यारी फसल इस कॉलेज के नाम पर बोते हैं उसकी उपज से जो भी लाभांश मिलता है उसका दान कॉलेज के लिए करते हैं इस कॉलेज का एक किलोमीटर से अधिक का फ्रंट व्यू है।
हमें ऐसी सभी संस्थाओं को जरूरत प्राथमिकता के आधार पर यथा सामर्थ्य आर्थिक दान सहयोग जरुर करना चाहिए समाज से लिया समाज को देना भी चाहिए क्योंकि इन गैर सरकारी कॉलेज की आर्थिक स्थिति पूरी तरह समाज पर निर्भर रहती है।
लेखक आर्य सागर खारी