मेरे एक मित्र कह रहे थे कि राजनीतिज्ञ वही होता है जो बड़ी भारी भीड़ को अपने पीछे खींचकर दूर जंगल में ले जाए और फिर वहां एक ऊंचे पेड़ पर चढ़कर चारों ओर देखकर अपने साथ आई भीड़ को अचानक यह निर्देश दे कि हम गलत दिशा में चले आए, चलो उल्टे चलते हैं। अर्थात जो देश के नागरिकों को दिल्ली से दौलताबाद और दौलताबाद से दिल्ली की परेड कराता रहे और मरवाता रहे, उसे राजनीतिज्ञ कहते हैं। ये लोग जनता को मूर्ख बनाए रखना चाहते हैं, क्योंकि मूर्ख का ही मूर्ख बनाया जा सकता है।
राजनीतिज्ञों के लिए ना कोई ‘ मिशन ‘ होता है ना कोई ‘ विजन ‘ होता है। इनके लिए एक ही ‘ प्रोविजन ‘ होता है कि जैसे भी हो जनता का मूर्ख बनाया जाता रहे। ‘ मिशन ‘ और ‘ विजन ‘ से आगे बढ़कर इस ‘ प्रोविजन ‘ को पकड़कर ये लोग आगे बढ़ते हैं। इसलिए ‘ मिशन ‘ और ‘ विजन ‘ के सबसे महत्वपूर्ण प्रेरक तत्त्व संविधान को भी एक ओर रखकर जनता के साथ नजरबंदी का खेल खेलते हुए ये संविधान के नाम पर ही संविधान विरोधी आचरण करते रहते हैं। उदाहरण के रूप में कांग्रेस संविधान की सौगंध उठाकर शासन चलाती रही, परन्तु साथ ही संविधान की हत्या करते हुए संविधान में संविधान की मूल भावना के विरुद्ध धारा 370 और 35 ( ए ) को जोड़ने में भी सफल हो गई। इसके पश्चात तुष्टिकरण की नीति पर आगे बढ़ते हुए अल्पसंख्यकों के शिक्षा केन्द्रों के माध्यम से उनकी मजहबी मान्यताओं का प्रचार प्रसार करने की खुली छूट देकर संविधान का उसने घोर उल्लंघन किया। उसका अपमान किया। अनादर किया। समान नागरिक संहिता को पूर्णतया उपेक्षित कर दिया। देश के चुनाव आयुक्त को अपनी मुट्ठी में भींचकर रखा। देश के राष्ट्रपति भवन में ऐसे लोगों को भेजने का बार-बार प्रयास किया जो रीढविहीन हों। अनेक प्रकार के घोटाले किए। देश की सेना के लिए समय पर आधुनिकतम हथियार उपलब्ध करने में विलंब किया आदि आदि।
कांग्रेस की देखादेखी अनेक सत्ता स्वार्थी राजनीतिक दल देश में कुकुरमुत्तों की भांति पनपे । इन सबने मुस्लिम तुष्टिकरण पर कांग्रेस से भी आगे बढ़कर काम करना आरंभ किया। देश विरोधी गतिविधियों में लगे हुए लोगों को इन्होंने हीरो बनाकर पेश किया। अनेक गुंडा तत्वों को देश के विधानमंडलों में भेजने का भी काम किया । यदि किसी कारण किसी समय विशेष पर सत्ता प्राप्त करने में सफल हुए तो कांग्रेस की छाया प्रति के रूप में काम करते रहे । देश के बहुसंख्यक समाज को जातियों में तोड़ने का काम आरक्षण आदि के आधार पर करते रहे। संविधान एक ओर पड़ा रहा और इनका राजनीतिक धंधा बड़े जोर शोर से चलता रहा। जनता इनके पीछे इस आशा के साथ भागती रही कि सुबह होगी और नए सूरज के दर्शन के साथ हमारे दुखों का अंत हो जाएगा । परन्तु जब-जब ये राजनीतिक दल सत्ता शीर्ष पर पहुंचे तो इन्होंने पेड़ पर चढ़कर ऊपर से यह घोषणा कर दी कि हम गलत दिशा में आ गए, चलो उल्टे चलते हैं।
देश के इसी संविधान के रहते नेशनल कांफ्रेंस के साथ-साथ ओवैसी की पार्टी ने भी अपने सांप्रदायिक एजेंडा के आधार पर काम करते रहने का कीर्तिमान स्थापित किया। जिस मुस्लिम लीग को लोगों ने 1947 में ही दफन कर दिया था, उसी के नए संस्करण के रूप में भारत में नेशनल कांफ्रेंस, ओवैसी बंधु और इन्हीं जैसे अन्य कई विचारधारा के राजनीतिक दल या लोग काम करते रहे। भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर उनके देश विरोधी बयानों को भी माफ करने की परंपरा देश में चली। सब अपनी-अपनी वोटों को देखते रहे। किसी ने नहीं कहा कि मुस्लिम लीग के पदचिह्नों पर चलने वाले इन राजनीतिक दलों के या नेताओं के देश विरोधी सुरों के कारण इन्हें दंड दिया जाना चाहिए। यही कारण रहा कि देश में संविधान और संवैधानिक मशीनरी के रहते हुए भी संविधान और संवैधानिक मशीनरी असफल होती रही। देश के एक पूर्व राष्ट्रपति के0 आर0 नारायणन को यह कहना पड़ा कि आज इस बात की समीक्षा करने की आवश्यकता है कि संविधान फेल हो गया है या संविधान को चलने वाले लोग फेल हो रहे हैं ? इससे भी कठोर टिप्पणी कभी बाबा साहेब अंबेडकर ने 1953 में की थी। जब उन्होंने कहा था कि ” हमने जिस राष्ट्र मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया था, हमने उसमें एक राक्षस को बैठा दिया है।” वास्तव में यह राक्षस राजनीतिज्ञ नाम का प्राणी था । जिसने अपनी भेड़ियावृत्ति का परिचय देते हुए केवल वोटों पर ध्यान दिया , अपने हृदय की पवित्रता पर नहीं।
भेड़िया राजनीतिज्ञों के कारण आज वह बंगाल जल रहा है, जो कभी बौद्धिक संपदा का केंद्र हुआ करता था। बिहार जातिवाद की दलदल में फंस चुका है ,जो कभी भारत को ही नहीं सारे संसार को ज्ञान संपदा का खजाना लुटाया करता था। भारत के साथ-साथ संपूर्ण संसार का राजनीतिक और बौद्धिक नेतृत्व करने वाला उत्तर प्रदेश आज सांप्रदायिक समीकरणों के चलते भविष्य के भयानक संकेत दे रहा है। भारत के अनेक ऋषियों की तपस्थली रहे जम्मू कश्मीर में शांति पूरी तरह लौटी नहीं है।
मुगलों के काल में भी सनातन को बचाए रखने में सफल रहा दक्षिण भाषा के नाम पर लड़ रहा है । उत्तर दक्षिण के बीच की गहराई को निरंतर बढ़ाया जा रहा है। सदा स्वाधीनता पर इठलाता रहे पूर्वोत्तर में ईसाई बहुतायत में होकर अपनी वास्तविकता का परिचय देने की तैयारी में हैं ।कौन से क्षेत्र ,कौन से आंचल और कौन से प्रदेश के लिए यह कहा जा सकता है कि यहां पर शांति है ?
जिस देश की राजनीति के केंद्र अर्थात राजधानी दिल्ली में ही सब कुछ अस्त-व्यस्त हो और लोग मुफ्त की रेवड़ी के नाम पर देश के कट्टर बेईमान को सत्ता सौंपने का काम कर सकते हों, वहां के नागरिकों का राजनीतिक चिंतन भी कैसा बन चुका है ? – यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
राजनीतिज्ञों के बीच में राजनीतिक शत्रुता इतनी अधिक बढ़ चुकी है कि देश की संसद को ही न चलने देने की कुछ लोगों ने सौगंध उठा ली है। विधायी कार्य में रोड़ा अटकाना आज की राजनीति का प्रमुख हथियार बन चुका है।
अब आते हैं भाजपा की ओर। आरएसएस और भाजपा दोनों एक ही परिवार के सदस्य हैं । जब ये सत्ता में होते हैं तो इन्हें फील गुड की बीमारी बड़ी जल्दी लगती है । फील गुड का इन्हें बुखार नहीं नशा हो जाता है । जिसके चलते ये गफलत में आ जाते हैं। इस बार शत्रु रूपी कछुआ इनसे लगभग आगे निकल गया और यह फील गुड की बीमारी के चलते सोते रह गए ।आंख खुली तो पता चला कि सत्ता में तो लौट आए हैं , परंतु जैसे तैसे ही सम्मान बचा है। देश के लोगों ने इनसे अपेक्षा की थी कि समान नागरिक संहिता लाने में ये देर नहीं करेंगे, जनसंख्या नियंत्रण को पूरे देश में लागू करेंगे , हिंदू को सांप्रदायिक दंगों की भेंट चढ़ाने का काम करने वाले देश के गद्दारों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करेंगे। जहां-जहां पर हिंदू का दलन हो रहा है, वहां वहां उसके लिए एक सुरक्षा कवच बनाकर अपने आप को प्रस्तुत करेंगे, परंतु ऐसा नहीं हुआ। बंगाल में ममता बनर्जी की पुलिस के साथ-साथ उनकी पार्टी के गुंडे हिंदुओं पर दिन की दोपहरी में अत्याचार करते रहे और भाजपा मौन साधे खड़ी देखती रही। जिन लोगों ने बड़ी उम्मीद के साथ कभी कांग्रेस और सेकुलर दलों का साथ दिया था, वे उनके साथ रहकर ठगे गए थे। जिन लोगों ने पहले से भी अधिक बड़ी उम्मीदों के साथ भाजपा का साथ दिया था वे आज भी देख रहे हैं कि दूर जंगल में ले जाकर भाजपा ने अनेक हिंदुओं को भी बेसहारा कर उन्हीं की हालत पर छोड़ दिया है। … फिर भी लोगों को मोदी जी से अभी अनेक प्रकार की अपेक्षाएं और उम्मीदें हैं।
राजनीति के दलदल में नीचे को जाना तो संभव हो रहा है , परन्तु ऊपर को आना बड़ा कठिन होता जा रहा है। राजनीतिक बिसातों के बीच में देशहित फंसकर रह गया है। लोगों ने अपनी दुष्टता का जाल इतनी गहराई और होशियारी से बिछा दिया है कि कदम कदम पर इसमें उलटी कीलें ठोक दी गई हैं । जिससे देश हित में आगे बढ़ना किसी खतरे से खाली नहीं है। जाति के आधार पर जनगणना की मांग करना समझो देश की छाती में विष से बुझी हुई कीलों को ठोकने के समान है। आज जाति के आधार पर हिंदू समाज को बांटा जा रहा है। इसी का लाभ लेते हुए एक समय वह भी आएगा, जब सांप्रदायिक आधार पर इसी प्रकार की कीलों को ठोकने का काम किया जाएगा। आज देश की स्थिति कुछ इस प्रकार हो गई है :-
राजपथ पर बेरहमी से कीलें ठोकी जाती हैं,
धर्मपथ पर बढ़ते मानव की राहें रोकी जाती हैं।
भारत को गारत करने की साजिश यहां रची जाती
हमाम में नेता नीति नंगे, कालिमा पोती जाती है।।
जिन हाथों में देश सुरक्षित सोचा था हो जाएगा,
सभी चलेंगे एक दिशा में, देश गुरु हो जाएगा।
दिशा अलग – सोच अलग राह अलग दिख रही
कैसे कहूं इन हाथों में, देश सुरक्षित हो जाएगा।।
डॉ राकेश कुमार आर्य
(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं )