16 कलाओं के ज्ञाता सुदर्शन चक्रधारी श्री कृष्ण
ओउम्
पू०गुरुदेव ब्रह्मऋषि कृष्णदत्त जी(त्रेतायुगीय श्रृंगी ऋषि) का अमूल्य ज्ञान भगवान श्री कृष्ण के विषय में।शायद किसी की अन्य किसी पुस्तक में न मिले।ऋषि दयानंद ने भी बहुत सुंदर दृष्टिकोण श्रीकृष्ण के लिए दिया जो इस पाखंड का खंडन करते है जो आज उस समाज में व्याप्त है।
1- श्री कृष्ण सोलह कलाओं के ज्ञाता थे।
- 16 कलाओ के नाम प्राचीदिग, दक्षिणदिग, प्रतिचीदिग, उदीची दिग, समुद्रकाला, सूर्यकला, चंद्रकला, अग्निकला, विद्दयुत कला, मन कला, चक्षुषकला,,श्रोत्र कला, घ्राण कला, विद्दयुत, अग्नि,अंतरिक्ष।
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भगवान कृष्ण , मद्धयूनपान ऋषि की आत्मा थी।
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महाराज कृष्ण 16 हजार वेद कि ऋचायें जानते थे,जिनको अलंकारिक रूप से 16 हजार गोपिकाएं कहा जाता है।
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पुत्र प्रद्युम्म्न की प्राप्ति के बाद श्रीकृष्ण आजीवन ब्रह्मचारी रहे।12 वर्ष तक अपने जीवन का अनुसंधान किया।
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भगवान कृष्ण प्रातःव सायंकाल यज्ञ करते थे।जिसमे उनोहने हृदय और विचारों की तरंगों के ऊपर अन्वेषण किया।इन तरंगों की गणना भी की जा सकती है।
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गौ नाम हमारी इन्द्रियों का है।उस पशु का है जो दूध देती है।गौ नाम सूर्य की किरणों का है।चंद्रमा की कांति का नाम भी गौ है।गौ नाम पृथ्वी का भी है।ये प्रश्न रुक्मिणी ने महाराज कृष्ण से पूछा कि ये गौ कोन है?
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भगवान कृष्ण ने एक समय कहा था,की ” जहां समाज में गउओं की रक्षा होती है,गौ नाम के पशु की रक्षा,गौ नाम इन्द्रियों की रक्षा करनी है, वहां राष्ट्रीय विचारधारा और मानव पद्धति विलक्षण बन जाती है
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गीता का उपदेश जो श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिया था उसकी अवधि केवल ढाई घड़ी( एक घंटा) थी जिसने अर्जुन के हृदय को विदीर्ण कर दिया था।
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भगवान कृष्ण सूर्य और इक्ष्वाकु को दिया हुए ज्ञान को जानते थे।जो उनके विगत जन्मो की स्मृतिया थी।
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जब अर्जुन को अज्ञान छा गया तो भगवान कृष्ण ने अपना विराट रूप उसको दृष्टिपात कराया।- ” आत्मा को जा शक है, आत्मा को जो प्रकाश है उससे दूसरो को प्रकाशित होने का नाम विराट स्वरूप है”
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महाराज कृष्ण महान परमयोगी थे जिनोहन प्रभू की महत्ता को जाना था।
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महाभारत के समय यदि कृष्ण न होते तो ये संसार न होता।क्योंकि उस समय ऐसे यंत्र बन चुके थे जिसके प्रहार से यह सारा संसार समाप्त हो जाता।
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कृष्ण ने उस वैज्ञानिक रेखा को जान था जिससे उन परमाणुओ का प्रभाव बाहर न जा सके।
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कृष इतने बड़े योगेश्वर ओर वेदों के प्रकांड पंडित थे।उनका आत्मा इतना प्रबल था कि दूसरों का आत्मा उनके आत्मा से प्रभावित होकर उनके आदेशो पर चलने लगता था।
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अवतार यह नही होता कि परमात्मा मनुष्य रूप धारण करके आ जाये।अवतार इसे कहते है जो परमात्मा के निकट जाने वाली आत्मा हो।लोक कल्याण के लिए जन्म लेती है।
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अंत में महाभारत काल में एक ऐसा यन्त्र था जो 9 अक्षोहउँनी सनी समाप्त करके वापस आ जाता।जहां भौतिक विज्ञान के ऐसे ऐसे विनाशकारी यंत्र हो, वहां महाराजा कृष्ण ही ऐसे योगी थे जिनोहन महाभारत जैसे युद्ध को रोकने का प्रयत्न किया।
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इस युद्ध में सभी बुद्धिमान व वैज्ञानिक समाप्त हो गए थे।
तो ये भगवान कृष्ण की विलक्षण प्रतिभा।जरा विचार कीजिये।उस आत्मा का आज क्या प्रारूप बना दिये।कितने बड़े योगी थे वो।उनके जीवन को जितम स्मरण किया जाए उतना कम।
ओउम्
योगिराज कृष्ण की जय।