दयानन्द सरस्वती : एक उदात्त व्यक्तित्व • —


– सी. एफ. एण्ड्रूज
[सी.एफ. एण्ड्रूज (C.F. Andrews) : भारत भक्त एण्ड्रूज का जन्म इंग्लैण्ड में 12 फरवरी 1871 को हुआ था। वे एक ईसाई मिशनरी के रूप में भारत आए थे किन्तु धर्म प्रचारक का बाना छोड़कर सर्वात्मना भारत के भक्त हो गये। गोपाल कृष्ण गोखले, महात्मा गांधी, स्वामी श्रद्धानन्द तथा कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर से उनके स्नेह सम्बन्ध जीवन पर्यन्त रहे। स्वामी दयानन्द की जन्म शताब्दी के अवसर पर उन्होंने लीडर के सम्पादक सी. वाय. चिन्तामणि के अनुरोध पर इस पत्र के लिए तीन लेख लिखें जिसमें स्वामी जी के व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया गया था। – डॉ. भवानीलाल भारतीय]
स्वामी दयानन्द ने अपने युवाकाल के बाद के समय में वैदिक संस्कृति के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला कि उसी संस्कृति के बल पर भारत अपनी आध्यात्मिक उन्नति के सर्वोच्च सोपान पर चढ़ा था। उन्होंने स्वयं के जीवन को इसी संस्कृति के अनुसार व्यतीत किया। अपने अद्वितीय व्यक्तित्व में उन्होंने वैदिक जीवन का पुनः स्मरण करा दिया। स्वामीजी ने इस जीवन पद्धति को स्वयं तो धारण किया ही, अन्यों के लिए भी उसे महत्त्वपूर्ण तथा व्यावहारिक बना कर प्रस्तुत किया। उनके समय में भारत अपने अतीत से हट कर स्वयं को यूरोपीय आदर्शों में समाहित कर रहा था। इस स्थिति में स्वामीजी ने स्वयं के उदाहरण से देशवासियों को बताया कि इस प्रकार पश्चिम की संस्कृति में स्वयं को पूर्णतया विलीन कर देना अपने जीवन के अधिकर का निषेध करना है, अपनी अस्मिता को त्यागना है तथा परकीयता में स्वयं को निमज्जित कर लेना है न कि उससे उबरना।
स्वामीजी का दृढ़ विश्वास था कि हम आज जिस युग में रह रहे हैं उससे वैदिक काल कहीं श्रेष्ठ था। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक ईमानदारी, वीरता पूर्ण चरित्र, सादगी युक्त जीवन तथा उच्च आदर्शों से वैदिक युग को स्वयं में मूर्तिमान किया। उनसे पूर्व यह कार्य किसी अन्य ने इस रूप में नहीं किया था। वैदिक विषयों के ग्रन्थ विद्वानों द्वारा लिखे गये थे, प्रकाशित भी हुए किन्तु उन्हें भुला दिया गया। किन्तु दयानन्द के रूप में एक ऐसा संन्यासी था जिसकी अपूर्व प्रतिभा तथा नैतिक चरित्र के कारण आर्य युग का उज्ज्वल अतीत पुनरुज्जीवित हो गया।
– वैदिक मैगज़ीन, गुरुकुल कांगड़ी (फरवरी 1921) A General Survey of the Life and Teachings of Swami Dayananda. 1925 Lahore.
[स्रोत : स्वामी दयानन्द सरस्वती : पश्चिम की दृष्टि में, पृष्ठ 1, 11, प्रस्तुति : भावेश मेरजा]

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