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इतिहास के पन्नों से

क्या अब्दुल हमीद के बलिदान की कहानी झूठी है ?

एक एतिहासिक झूँठ-
अब्दुल हमीद भी फर्जी निकला
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कोंग्रेस की घटिया करतूत का एक और हसीन पल –

आंखेंखोलदेने_वाला #सच
1965 के युद्ध का झूठा इतिहास
ध्यान से और लगन से पढ़ें. .

हमें इतिहास में पढ़ाया गया कि
अब्दुल हमीद ने पैटन टैंक उड़ाए थे,
जबकि ये सरासर झूठ है
और कांग्रेस का भारतीयों से एक और विश्वासघात है…!

हरियाणा निवासी भारतीय फौज के बहादुर सिपाही #चंद्रभानसाहू ने पैटन टैंक को उड़ाया था,
ना कि किसी अब्दुल हमीद ने…!
परमवीर चक्र भी उसी #सैनिक
चंद्रभानसाहू ने जीता था, ना कि किसी #अब्दुलहमीद ने…!

बात सन् 1965 के भारत-पाक युद्ध की है…
जब अमेरिका द्वारा प्राप्त अत्याधुनिक पैटन टैंकों के बूते पाकिस्तान अपनी जीत को पक्का मान रहा था,
और भारतीय सेना इन टैंकों से
निपटने के लिये चिंतित थी…
भारतीय सेना के सामने,
भारतीय सेना ने ही एक मुसीबत खड़ी कर दी।
युद्ध के वक़्त भारतीय सेना की मुस्लिम बटालियन के अधिकांश मुस्लिम सैनिकों द्वारा पाकिस्तान के खेमे में चले जाने व बाकी मुस्लिम सैनिकों द्वारा
उसके समर्थन में हथियार डाले जाने से
भारतीय खेमे में आत्मविश्वास की बेहद कमी
व घोर निराशा थी…
.
उस घोर निराशा व बेहद चिंताजनक स्थिति के वक़्त आशा की किरण व पूरे युध्द का महानायक
बनकर आया था,
भारतीय सेना का एक बीस वर्षीय नौजवान,
सैनिक चंद्रभान साहू…
(पूरा पता– चंद्रभान साहू सुपुत्र श्री मौजीराम साहू, गांव रानीला, जिला भिवानी, वर्तमान जिला चरखी दादरी, हरियाणा).
..
रानीला गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि
सैनिक चंद्रभान साहू का शव
बेहद क्षत-विक्षत व टुकड़ों में था।

शव के साथ आये सैनिक व अधिकारी अश्रुपूर्ण आंखों से उसकी अमर शौर्यगाथा सुना रहे थे कि
किस तरह एक के बाद एक उसने अकेले पांच पैटन टैंक नष्ट कर दिये थे।
इसमें बुरी तरह घायल हो चुके थे,
और उन्हें जबरन एक तरफ लिटा दिया गया था कि
आप पहले ही बहुत बड़ा कार्य कर चुके हैं,
अब आपको ट्रक आते ही अन्य घायलों के साथ अस्पताल भेजा जायेगा।
लेकिन सैनिक चंद्रभान साहू ये कहते हुए
उठ खड़े हुए कि मैं एक तरफ लेटकर युद्ध का तमाशा नहीं देख सकता,
घर पर माता-पिता की बुढ़ापे में सेवा के लिये और भाई हैं, मैं अन्तिम सांस तक लडूंगा,

और दुश्मन को अधिकतम हानि पहुँचाऊँगा…
कोई हथियार न दिये जाने पर
साक्षात महाकाल का रूप धारण कर सबके मना करते करते भी अभूतपूर्व वीरता व साहस दिखाते हुए
एंटी टैंक माइन लेकर पास से गुजरते टैंक के नीचे
लेटकर छठा टैंक ध्वस्त कर युद्ध में प्राणों का सर्वोच्च बलिदान कर दिया…
उनके इस सर्वोच्च व अदभुत बलिदान ने
भारतीय सेना में अपूर्व जोश व आक्रोश भर दिया था
व उसके बाद हर जगह पैटन टैंकों की कब्र खोद दी गई। ग्रामीणों ने नई पीढ़ी को प्रेरणा देने के लिये
दशकों तक उसका फोटो व शौर्यगाथा रानीला गांव के बड़े स्कूल में टांग कर रखी
और आज भी स्कूल में उनका नाम
लिखा हुआ बताते हैं…

बार्डर फिल्म में जो घायल अवस्था में
सुनील शेट्टी वाला एंटी-टैंक माइन लेकर
टैंक के नीचे लेटकर टैंक उड़ाने का दृश्य है,
वो सैनिक चंद्रभान साहू ने वास्तव में किया था।
ऐसे रोम रोम से राष्ट्रभक्त महायोद्धा
सिर्फ भारतभूमि पर जन्म ले सकते हैं…
मुस्लिम रेजिमेंट द्वारा पाकिस्तान का समर्थन करने से मुस्लिमों की हो रही भयानक किरकिरी को रोकने व मुस्लिमों की छवि ठीक रखने के लिये
इंदिरा गाँधी की कांग्रेस सरकार ने
परमवीर चंद्रभान साहू की अनुपम वीरगाथा को
पूरे युद्ध के एकमात्र मुस्लिम मृतक
अब्दुल हमीद के नाम से अखबारों में छपवा दिया
व रेडियो पर चलवा दिया,

और अब्दुल हमीद को परमवीर चक्र दे दिया !
इसका असली अधिकारी सैनिक चंद्रभान साहू
गुमनामी के अंधेरे में खो गया…!

साभारः
(ओमप्रकाश शर्मा)

(प्रस्तुत लेख की हम पुष्टि नहीं करते। केवल पाठकों की जानकारी के लिए यहां डाला है।) संपादक

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