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आतंकवाद

हमास चीफ़ की हत्या से दुनिया पर मंडराते विश्वयुद्ध के बादल

            डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’

ईरान की राजधानी तेहरान में वहाँ के सर्वश्रेष्ठ सुरक्षा दल, इस्लामी गार्डस की सुरक्षा में होने के बावजूद इज़राइल ने अपने सबसे बड़े शत्रु हमास के चीफ़ इस्माइल हानिया को सटीक हमले में जिस तरह मार गिराया, उससे पूरी दुनिया सकते में आ गई है। इस हमले ने एक बार फिर इजरायल की क्षमताओं को सिद्ध कर दिया है और ईरान के सुरक्षा तंत्र की पोल भी खोल दी है। इस हमले में बिल्डिंग का एक हिस्सा, जिसमें हानिया था, वह तबाह हो गया, जिसमें एक सुरक्षा गार्ड भी मारा गया। हानिया कतर में, दोहा में बड़े ही शानो-शौकत से रहता था। इस्माइल हानिया दुनिया भर में हमास के लिए राजनीतिक समर्थन और आर्थिक संसाधन जुटाता था। इस घटना से ईरान पूरी तरह बौखला गया है। ऐसी अपुष्ट खबरें भी आ रही हैं कि इस्लामी रिपब्लिक गार्ड और एयर डिफेंस के चीफ को इस हमले के लिए जिम्मेवार मानते हुए ईरान की सरकार ने उसे गोली मार दी है, सरकार का मानना है कि उसने ईरान से गद्दारी करके इज़राइल की मदद की थी।

जिस प्रकार यह हमला हुआ, इसे लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। हमला कहाँ से हुआ, इस पर भी सबकी अलग-अलग राय है। ज्यादातर विश्लेषकों का यह मानना है कि किसी अंदरूनी भेदिए की सूचना के बिना इस प्रकार का सटीक हमला संभव ही नहीं है। हमला कहाँ से हुआ और कैसे हुआ, इस पर भी कई तरह के अनुमान हैं। इज़राइल से इतनी दूर से कोई मिसाइल आकर इस प्रकार किसी बिल्डिंग के किसी खास कमरे पर सटीक हमला करे, यह संभव नहीं लगता। कुछ लोग कहते हैं कि पहले से ही उस कमरे में किसी प्रकार का बम लगाया गया था, जिसे रिमोट से उड़ाया गया। कुछ लोगों को मानना है कि ईरान में ही कहीं निकट से किसी गाइडेड मिसाइल आदि से यह हमला किया गया है। कुछ लोगों का कहना है कि यह हमला आसपास की ही किसी बिल्डिंग से किया गया है। लेकिन अभी तक पक्की जानकारी किसी के पास नहीं है।

बताया जाता है कि इज़राइल की खुफिया एजेंसी मोसाद की एक गुप्त इकाई है, जिसका नाम है ‘किडोन’, इसके बारे में इज़राइली सरकार कुछ खुलकर नहीं बताती। इस इकाई में सुरक्षा बलों से लिए गए मोसाद के चुनिंदा अधिकारी हैं। इस इकाई का मुख्य कार्य है इज़राइल के दुश्मनों को ढूंढ – ढूंढ कर खत्म करना। वे दुनिया के किसी भी कोने में, कहीं भी और किसी भी तरह छिप कर या वेष बदल कर रह रहे हों, उन तक पहुंचना और मौका मिलते ही उन्हें खत्म कर देना है। म्यूनिख ओलंपिक में फिलिस्तीनी आतंकियों ने इजरायल के ग्यारह खिलाड़ियों को मार डाला था। हमला करने वाले और हमले की योजना बनाने वालों को ढूंढने में इज़राइल की इस खुफिया इकाई को बहुत लंबा समय लगा। ये छिपकर, वेष बदलकर और अपनी पहचान बदलकर दुनिया के कोने-कोने में रह रहे थे। अनेक वर्ष बीत गए, इन्हें लगा कि वे बच गए हैं, लेकिन इस यूनिट ने एक-एक को ढूंढ कर, सबको मौत के घाट उतार दिया था। हिटलर की फौज की एक विशेष इकाई जिसे ऐस-ऐस कहा जाता था, उसका एक खास सदस्य था ऐरिक एडमिन, जिसने बड़ी संख्या में यहूदियों की हत्या करवाई थी। युद्ध समाप्त होने पर वह अर्जेंटीना में जाकर छिप गया। 20 वर्ष बाद इज़राइलियों को जब उसके बारे में पता लगा तो वे उसे वहाँ से उठाकर इज़राइल लाए और उसे सार्वजनिक रूप से सजा दी गई। लगता है यहाँ भी इसी यूनिट ने इस हमले को अंजाम दिया है। यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि हानिया की हत्या में व्हाट्सैप की भूमिका है जिसका चीफ एक यहूदी है। जैसे ही हानिया ने कोई व्हाट्सैप संदेश पढ़ा, उसे हानिया की लोकेशन मिल गई और उसने वह इज़राइल तक पहुंचा दी। क्योंकि ईरान में व्हाट्सएप प्रतिबंधित है तो हो सकता है कि उसके ईरान जाने के पहले ही व्हाट्सएप के माध्यम से उसके मोबाइल में कोई जासूसी ऐप डाल दिया गया हो।

याद कीजिए कि जब 7 अक्टूबर 2023 को हमास के आतंकियों ने एक षड्यंत्र के तहत इज़रायल पर हमला करके वहां उत्सव मना रहे 1200 निर्दोष नागरिकों की हत्या कर दी थी और करीब ढाई सौ नागरिकों को बंधक बना लिया था। तब इस्माइल हानिया ने इज़राइल को धमकी दी थी यदि उसकी सेना गाज़ा में घुसी तो गाज़ा उसके सैनिकों की कब्रगाह बन जाएगा। तब ज्यादातर इस्लामी देशों में जश्न मनाया गया था। जिन लोगों ने उस समय जश्न मनाया था, अब उनके यहाँ मातम पसरा है। दुनिया में कहीं भी किसी इस्लामिक देश में या किसी बड़े आतंकी को कुछ हो तो सबसे पहले छाती-पीट अभियान भारत में शुरू हो जाता है। इज़राइल ने अपने शत्रु और हमास नामक आतंकी संगठन के मुखिया, जिसे विश्व का शीर्ष आतंकी घोषित किया गया है, उसे मारा तो भारत का इससे क्या लेना देना? लेकिन हाय-तौबा यहाँ भी मची है। हमास प्रेमी गैंग का प्रलाप जारी है। फिलिस्तीन का पोस्टर चिपका कर दुनिया के सबसे बड़े आतंकी के लिए दुआएं मांगी जा रही हैं। इस पर भड़काऊ भाषण करनेवालों में मौलाना सलमान नदवी से लेकर मौलाना सज्जाद नोमानी तक का नाम है। मौलाना सज्जाद नोमानी का कहना है, ‘अगर हानिया इस्माइल आतंकी था तो महात्मा गांधी भी दहशतगर्द थे, भगत सिंह भी दहशतगर्द थे, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस, मौलाना आजाद और सरदार पटेल, ये सभी दहशतगर्द थे। हजारों निर्दोषों की हत्या के लिए जिम्मेवार आतंकी की महात्मा गांधी और भारत के स्वतंत्रता सेनानियों से तुलना करना भारत का अपमान और एक आतंकी का सम्मान है। ऐसी तुलना निंदनीय है।

इज़राइल ने 48 घंटे में हमास को दो बड़े झटके दिए हैं। एक तरफ तो ईरान में हमास के मुखिया हानिया को टपका दिया, उधर दो हवाई हमलों में हमास और हिजबुल्ला के शीर्ष कमांडर मारे गए हैं। हमास के सहयोगी हिज़बुल्लाह के शीर्ष सैन्य कमांडर फोमुद शुकर पर बैरूत में भयानक हवाई हमला हुआ था। हालांकि कुछ लोगों का यह मान रहे थे कि वह इस हमले में बच गया था, लेकिन अब इज़राइल ने उसकी मौत की पुष्टि कर दी है। इसी तरह इसी महीने गाज़ा में हमास के सैन्य अभियान के प्रमुख मोहम्मद दाइफ भी 13 जुलाई को एक हवाई हमले में मारा गया। बताया जाता है कि इज़राइल पर 7 अक्तूबर के हमले की योजना में उसकी मुख्य भूमिका थी। यहाँ यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि हानिया के 13 बेटे थे। इसी वर्ष अप्रैल में इज़राइल की सेना ने हानिया के तीन बेटों को मार गिराया था। 25 जून 2024 को उसकी बहन सहित परिवार के 10 सदस्य रिफ्यूजी कैंप पर हमले में मारे गए थे। अक्टूबर में उसके भाई, भतीजों सहित परिवार के 14 सदस्य मारे गए थे। नवंबर में उसकी एक पोती भी गाज़ा में एक हमले में मारी गई थी। इसी महीने गाज़ा के एक हमले में उसका सबसे बड़ा पोता भी मारा गया। इस तरह पहले हानिया के परिवार के अनेक लोग और अब हानिया इज़रायल के हमले में मारा गया। हानिया की मौत के बाद अब खालिद मिशाल को हानिया की जगह हमास का मुखिया बनाया गया है, जो 1997 में एक हमले में बाल – बाल बच गया था। हानिया के बाद खालिद मिशाल हमास में दो नंबर पर था और राजनीतिक संबंधों में भी मिशाल हानिया के बाद वही इस काम को संभाल सकता है। चौंकाने वाली बात यह है कि इसका भारत के केरल से भी संबंध बताया जा रहा है।

ईरान की राजधानी तेहरान में ईरान की सर्वोत्तम सुरक्षा एजेंसी, इस्लामिक रिपब्लिकन गार्ड की सुरक्षा में आतंकी संगठन हमास के मुखिया की सटीक हमले में हत्या से पूरे विश्व की राजनीति मैं खलबली मच गई है और पूरे इस्लामी जगत में हड़कंप मच गया है। इसके कारण पूरी दुनिया पर विश्व युद्ध का खतरा भी मंडराने लगा है। इस्माइल हानिया ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन के शपथग्रहण में राजकीय अतिथि के रूप में वहाँ पहुंचा था और उसे किसी राष्ट्राध्यक्ष की तरह उच्च स्तरीय सुरक्षा प्रदान की गई थी। उल्लेखनीय है कि ईरान के पूर्व राष्ट्रपति की विमान दुर्घटना हुई थी, जिसे इज़रायल का षड्यंत्र बताया गया था। अब उसकी राजधानी में, उसके खास मेहमान और दुनिया के सबसे बड़े आतंकी का इज़राइल द्वारा सफाया, ईरान के लिए बहुत ही शर्मनाक है। न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार ईरान की सिक्योरिटी काउंसिल की बैठक में ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई ने बयान दिया है कि वह ईरान की जमीन पर इस्माइल हानिया की मौत का बदला जरूर लेगा। उसने इज़रायल पर हमले का हुक्म भी दे दिया है।

हमास के मुखिया हानिया की हत्या के बाद रूस और चीन सहित अनेक इस्लामिक देशों ने इस हमले की कड़ी निंदा की है। ईरान, लेबनान, ट्यूनीशिया सहित अनेक देशों में बड़े प्रदर्शन हो रहे हैं। हानिया कि तेहरान में हत्या के बाद विश्व स्तर पर राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं। जहाँ एक ओर अमेरिका ने इज़रायल की मदद का भरोसा दिया है, वहीं रूस और चीन जैसी महाशक्तियां ईरान के साथ खड़ी दिखाई दे रही हैं। इज़राइल के सभी पड़ोसी मुस्लिम देश व हूती तथा हिज्बुल्लाह सहित अनेक आतंकी संगठन भी इस हत्या को लेकर इज़रायल पर पलटवार की बात कर रहे हैं। हानिया के बेटे का कहना है कि वे फिलीस्तीन की आजादी तक लड़ते रहेंगे। ईरान का कहना है कि हानिया की मौत के लिए अमेरिका भी जिम्मेदार है, उसीने इज़रायल को हानिया की लोकेशन दी। लेकिन अमेरिका कह रहा है कि उसे इस बारे में कोई जानकारी ही नहीं है। हानिया की मौत के बाद ईरान ने अपने यहां तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है। इराक के अनुसार इस तरह का ऑपरेशन अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है। रूस ने कहा है कि यह राजनीतिक हत्या है इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा। सऊदी अरब भी कह रहा है गाजा की स्थिति को देखकर हम बहुत दुखी हैं, इज़राइल को फिलिस्तीन की जमीन छोड़नी होगी। लीबिया और बहरीन भी इज़राइल के खिलाफ खड़े हो गए हैं। लीबिया का कहना है कि यदि सीमाएं खुल जाएँ तो वह हथियार भी देगा और उसके लड़ाके वहां लड़ने के लिए भी पहुंचेंगे। तुर्की का कहना है कि यह एक जघन्य अपराध है। हमास और इजरायल के बीच बातचीत की मध्यस्थ कर रहे कतर का कहना है कि अब युद्ध विराम मुश्किल है। पाकिस्तान ने इसे आतंकी हमला कहा है। तुर्की में प्रदर्शनकारियों ने इज़रायल के दूतावास में घुसने की कोशिश की। इससे मध्य एशिया में टकराव बढ़ने की आशंका है।

अब बड़ा प्रश्न यह है क्या ईरान फिर से इज़राइल पर हमला करेगा? क्या दूसरे खाड़ी के देश भी उसमें शामिल होंगे ? लोगों को अब यह आशंका होने लगी है कि कहीं हानिया की हत्या अब विश्वयुद्ध का रूप न ले ले। रूस और यूक्रेन युद्ध तथा इज़राइल और हमास युद्ध के कारण पहले ही विश्व दो खेमों में बंट रहा था। लेकिन अब अब ईरान की राजधानी तेहरान में हमास के मुखिया को मार गिराने से यह ध्रुवीकरण और तेज होगा। एक तरफ है इज़राइल तथा उसके साथ अमेरिका और नाटो देश। दूसरी ओर ईरान के साथ रूस और चीन सहित लगभग सभी मुस्लिम देश हैं। जहाँ तक भारत का प्रश्न है, उसके संबंध ईरान और इज़रायल दोनों से ही अच्छे हैं। उधर उसके संबंध रूस और अमेरिका से भी अच्छे हैं। इसलिए इस बात की कोई संभावना नहीं कि भारत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दोनों में से किसी के साथ खड़ा होता दिखाई दे।

अब सारा मामला इस बात पर आकर टिकता है कि क्या ईरान सही मायने में इज़राइल पर हमला करेगा या केवल धमकी देकर रह जाएगा ? या फिर अपनी जनता को और अन्य देशों को संदेश देने के लिए पहले की तरह नाम के लिए कुछ हवाई हमले करे? और यदि ईरान पूरी शक्ति के साथ इज़राइल पर हमला करता है तो क्या खाड़ी के अन्य देश भी उसके साथ आएंगे? ईरान के सुर में सुर मिला रहे चीन और रूस भी क्या इस युद्ध में शामिल होंगे? क्या हानिया की हत्या का बदला लेने के लिए मध्य एशिया के सभी इस्लामिक देश एकजुट होकर इज़राइल पर हमला करेंगे ?

ज्यादातर सैन्य विशेषज्ञों का यह मानना है कि ईरान भले ही कितना भी आक्रामकता दिखा रहा हो, लेकिन वह अच्छी तरह जानता है कि इस युद्ध में कूदना उसके हित में नहीं है। भले ही ईरान की सेना बड़ी हो, भले ही उसका भौगोलिक क्षेत्र बड़ा हो लेकिन इस सब के बावजूद इज़राइल की शक्ति ईरान से बहुत अधिक है, उसका रक्षा बजट भी बहुत अधिक है। यह भी देखने की बात है कि ईरान पर लंबे समय से लगे प्रतिबंधों के चलते, कल-पुर्जों के अभाव में उसके कितने युद्धक विमान युद्ध के लायक हैं ? हालांकि इज़राइल ने कभी इस बात की पुष्टि नहीं की लेकिन माना जाता है कि इज़राइल के पास परमाणु बम भी मौजूद हैं। विशेषज्ञों के अनुसार भले ही रूस और चीन उसके पक्ष में बयानबाजी कर रहे हों लेकिन इसकी संभावना बहुत कम है कि वे ईरान के समर्थन में प्रत्यक्ष रूप से युद्ध में उतरेंगे। यहां ईरान को यह भी देखना होगा कि इज़राइल के समर्थन में अमेरिका ने ईरान के निकट बारह युद्धपोत और चार हजार सैनिक तैनात कर दिए हैं। अमेरिका ने खुलकर यह बात कही है कि यदि ईरान या अन्य देश इज़राइल पर हमला करेंगे तो अमेरिका इजराइल का साथ देगा। ऐसी स्थिति में यदि ईरान और इज़राइल के बीच युद्ध होता है तो प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष रूप से अनेक देश भी उसमें कूद सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो विश्व युद्ध शुरू हो जाएगा। तनाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत ने लेबनान में रह रहे 9000 भारतीयों को लेबनान छोड़ने की सलाह दी है।

अगर ईरान इज़राइल पर हमला करना भी चाहे तो उसमें कई अड़चनें हैं। एक तो यह कि दोनों की सीमाएँ आपस में नहीं लगती इसलिए टैंक और सेनाओं द्वारा हमला संभव नहीं। फिर उसके पास ऐसे युद्धक विमान नहीं कि इतना लंबा रास्ता तय करके वे बिना रुके हमला करके लौट आएँ, ऐसे में कौनसा देश बीच में उसे तेल भरने की सुविधा देगा। फिर इनका शिया-सुन्नी का मामला भी है। बीच में पड़ने वाले सुन्नी देशों से उसके रिश्ते भी अच्छे नहीं। हालांकि उसके पास ऐसी कुछ मिसाइलें हैं जो इज़राइल तक पहुंच सकती हैं, लेकिन इज़राइल की मिसाइलरोधी प्रणाली को भेदना भी उतना आसान नहीं है। फिर भी वह कुछ नुकसान तो पहुंचा ही सकता है।

ऐसी स्थिति में ईरान के पास एक ही विकल्प है कि वह पहले की तरह अपने पाले हुए आतंकी संगठनों, इज़राइल के उत्तर में लेबनान में हिजबुल्लाह और नीचे की तरफ यमन में हूती कथा सीरियल आदि में मौजूद ऐसी संगठनों की मदद से इज़राइल पर और अधिक भीषण प्रहार करे। यह भूलना न होगा कि इज़राइल पहले भी इन दोनों से लड़ रहा है। यमन के तटीय इलाकों पर उसने हूती को भारी नुकसान पहुंचाया था और उसके पोर्ट तथा तेल के कुओं को बर्बाद कर दिया था। हिज़बुल्लाह पर भी उसने बड़े हमले किए हैं।

लेकिन इन तमाम बातों के बावजूद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस्माइल हानिया की मौत से एक बार फिर दुनिया पर विश्वयुद्ध के बादल मंडरा रहे हैं। यह भी लगभग तय है कि दोनों ओर से कुछ न कुछ तो होगा। अब देखना यह है कि वह कितने बड़े पैमाने पर होगा और विश्व स्तर पर वह कितना विकराल होगा।

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