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इसलाम और शाकाहार

इस्लाम के योद्धा—-

इस्लाम के योद्धा—-

पाकिस्तानी पत्रकार जावेद चौधरी का यह लेख उर्दू अखबार ‘डेली एक्प्रेस’ कराची में लगभग 6 साल पहले प्रकाशित हुआ ।

आप एक हजार साल पीछे जाइए, आपको महमूद गजनवी हिंदुस्तान पर हमला करते मिलेगा। आपको स्पेन में मुसलमानों के हाथों मुसलमानों का गला कटते नजर आएंगे। तुर्की में लोग तलवारे तान के घूमते नजर आएंगे, आपको अरबस्तान में लाशें बिखरी मिलेंगी, शिया-सुन्नी एक दुसरे का सर काटते नजर आएंगे.

आपको मुसलमान एक दुसरे के आपको जानकर हैरानी होगी की इस्लाम ने आज के इस्लामी दुनिया का बड़ा हिस्सा इस्लाम की शुरूआत के पहले 100 सालों में ही जीत लिया था, इसके बाद के 1350 साल मुसलमान इसी इलाके पर कब्जे के लिए एक दूसरे के साथ लड़ते रहे.
हमारा ज्ञान, धर्म और शास्त्रों का निर्माण का इतिहास पहले सिर्फ 350 सालों में सिमट गया है.
नेलकटर से लेकर कंघी तक सब कुछ उन लोगों का बनाया हुआ इस्तेमाल कर रहे है जिन्हें हम दिन में पांच बार गालियां देते रहते हैं। हम मस्जिदों में यहूदियों के बनाए हुए पंखे और ए.सी. लगाकर, ईसाईयों के बनाए हुए पाइपों से आने वाले पानी से वजू (नमाज के पहले हाथ-पैर धोना) कर के, काफिरों के बनाए हुए साउंड सिस्टम पर अजान देकर और इन्ही की बनाई हुई नमाज की चटाई पर बैठ कर इन्ही सब के बरबादी की दुआ करते है.
हम दवाइयां भी यहूदियों की खाते है, बारूद भी काफिरों का इस्तेमाल करते है और पूरी दुनिया पर इस्लाम के नियंत्रण और सत्ता का सपना भी देखते है.
हम खुद को दुनिया की बेहतरीन कौम मानते है, लेकिन हमने पिछले 500 सालों में काफिरों के खिलाफ कोई बड़ी जंग नहीं जीती. हम 5 शतकों से सिर्फ मार और मार ही खा रहे है।
पहले विश्व युद्ध के समय तक पूरा अरबस्तान एक देश था लेकिन यूरोप ने 1918 में अरबस्तान को 12 देशों में बाँट दिया और खुद को दुनिया की सबसे बहादुर कौम मानने वाली मुस्लिम कौम देखते ही रह गयी.

ब्रिटन ने अरबों की जमीन छीन कर इजराइल बना दिया और हम रोने धोने और यौम अल क़ुद्स (इजराइल के निर्माण के विरोध का दिन, रमजान महीने का आखरी शुक्रवार) मानाने के सिवा कुछ नहीं कर रहे.

हम अगर अच्छे लड़ाके थे और हमें 1400 साल का लड़ने का जबरदस्त अनुभव था तो हम कम से कम लड़ाई में तो माहिर हो जाते. दुनिया के हर हथियार पर “मेड बाय मुस्लिम” का सिक्का लग जाता. कम से कम आज इराक, लीबिया, इराक, अफ़गानिस्तान, सीरिया, यमन दुनिया के स्वर्ग बने हुए दिखते.
आज इस्लामी दुनिया की बदकिस्मती यह है की हम यूरोप की बंदूके, टैंकों, तोपों, गोलों, गोलियों और लड़ाकू विमानों के सिवा हमारे पवित्र काबा की रक्षा तक नहीं कर सकते है.
हमारी शिक्षा क्षेत्र का यह बुरा हाल है कि दुनिया की 100 बेहतरीन यूनिवर्सिटीज में एक भी इस्लामी दुनिया की यूनिवर्सिटी नहीं है।
पूरे इस्लामी दुनिया में जितने रिसर्च पेपर्स निकलते है उससे ज्यादा रिसर्च पेपर्स अकेले बोस्टन शहर में निकलते है।

पूरी इस्लामी दुनिया के सत्ताधीश अपना इलाज करवाने के लिए यूरोप या अमरीकी अस्पतालों में जाते है या अपने जिंदगी का आखरी हिस्सा इन पश्चिमी देशों में गुजारना चाहते है.

हमने पिछले 500 सालों में दुनिया को कोई नया दवा, नया हथियार, नया तत्वज्ञान, कोई नयी अच्छी किताब, कोई नया खेल, नया कानून नहीं दिया. हमने अगर इन 500 सालों में कोई नया अच्छा जूता भी बनाया होता तो भी बड़ी बात होती.
हम हजार सालों में साफ सुधरा शौचालय भी नहीं बना पाए.
हम बेहतरीन मोज़े और स्लीपर, या गर्मियों में ठन्डे और सर्दियों में गर्म रखने वाले कपडे भी नहीं बना पाए.
अगर कुरान शरीफ को छापने के लिए हमने कागज, स्याही और प्रिंटिंग मशीन बना ली होती तो भी थोड़ी इज्जत बच जाती ।हम तो काबा पर ओढ़ने के लिए कपड़ा भी इटली से बना कर मंगवाते है. हम साउंड सिस्टम भी यहूदी कंपनी से खरीद के अपने धार्मिक ठिकानों पर लगा देते है. हमारी तस्वीरे और मालाएं भी चीन से बन कर आती है. हमारे कफ़न जर्मन मशीनों पर तैयार होते है।
आप माने या ना माने हम दुनिया के 150 करोड़ मुसलमान सिर्फ एक कंज्यूमर है. यूरोप नई चीजे बनता है और हमारे मुस्लिम दुनिया तक पहुंचाता है और हम उसे इस्तेमाल करते है. और इसके
बाद बनाने वालों को हम सिर्फ आंखे दिखाते है.
आप विश्वास कीजिये, जिस साल ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड सऊदी अरब को भेड़े देना बंद कर देगा, हम हज में क़ुरबानी भी नहीं दे सकेंगे. जिस दिन यूरोप और अमरीका हमें गाड़िया, जहाज और कंप्यूटर देना बंद कर देगा उस दिन हम अपने घरों में कैद हो जायेंगे.
आप अपने मौलवी का लम्बा भाषण सुन लीजिये जो खुद के माइक का टूटा हुआ तार भी ठीक नहीं कर सकता.

हम पाकिस्तानी मुसलमान 70 साल से यही खेल खेल रहे है. हम एक ऐसे मुल्क में रह रहे है जहां हमने आज तक देश को तोड़ने वालों का कोई हिसाब नहीं किया. हमने कारगिल के जिम्मेदारों का कोई हिसाब नहीं किया.

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