Dr D K Garg
पौराणिक कथा के अनुसार अगस्त्य ऋषि में युवा लोपामुद्रा से गांधर्व विवाह किया।इस विषय को कथाकार खूब बढ़ा चढ़ाकर इस तरह से सुनाते हैं जैसे पूरी घटना उनके सामने घटित हुई हो।और श्रोता सुनते रहते हैं ,वास्तविक संदेश ना तो कथाकार को मालूम है और ना हो श्रोता को उसकी जरूरत है ।दोनो अंधे बने हुए हैं।
विश्लेषण;
ऋग्वेद के 1/179 में लोप मुद्रा और अगस्त्य के नाम पढ़े गए हैं।इस आधार पर वेदों में इतिहास मानने वालो में कालांतर में हुए ऋषि अगस्त्य और उनकी साध्वी पत्नी लोप मुद्रा की कल्पना कर ली। सच ये है की ये एक अलंकारिक वर्णन है ,एतिहासिक नही ।
यह उन दंपत्तियों के बीच का संवाद हैं जिन्होंने युवावस्था में संतानोत्पति में अरुचि दिखाई परंतु वृद्धावस्था में स्वयं को नितांत अशक्त ,निस्साहय देखते हैं।एक संदेश हैं कि शास्त्रोक्त आश्रम मर्यादा का पालन करते हुए दंपत्ति स्वस्थ्य एवम चरित्रवान संतान प्राप्त करे ,यही इस सूक्त का अभिप्राय है।
कुछ विद्वानों ने संवाद के द्वारा और भी स्पष्ट किया है जिसमे पति के सन्यासी हो जाने पर कामार्त पत्नी का विलाप बताया है। एक अन्य विद्वान के अनुसार अगस्त्य भी मोहक आकृति वाली लोपामुद्रा को देखकर कामासक्त हो गया और अपने को वश में न रख सका।
इस अलंकरिक वर्णन से यह सिद्ध होता है की बड़े से बड़े संयमी स्त्री और पुरुष भी कामवासना से विचलित हो जाते हैं
मनु ने लिखा है=
बलवान इंद्रिय-ग्राम विद्वासम अपि कर्षति।
अर्थात इंद्रिया इतनी प्रबल है, कि बुद्धिमान व्यक्ति को भी विचलित कर देती है।तीसरी ऋचा में कहा है कि महाबली अगस्त्य भी विचलित हो गया और कामासक्ति से परिभूत होकर संयोग करने में प्रवृत्त हो गया।
ऋचा 5,6 में कहा गया है कि मनुष्य बहुत कामना वाला होता है।वह धन,संतान,और यश तीन प्रकार की कामनाओं वाला होता है। इस सूक्त में एक और बात कही है को काम वासना केवल पौष्टिक आहार वाले को ही नहीं सताती अपितु कंद मूल खाने वाले वनवासी भी आकर्षक स्त्री को देखकर कामातुर हो जाता है।
इसमें आगे अगस्त्य और लोपामुद्रा के गंधर्व विवाह की जो बात कही है उसका तात्पर्य है कि गांधर्व विवाह पाप नही है,अपितु शास्त्र सम्मत है। मनुस्मृति 3.32 में गांधर्व विवाह इस प्रकार हैं=
कन्या और वर की इच्छा से परस्पर संयोग को गांधर्व (विवाह)कहते है।वह दो व्यक्तियों (पुरुष और स्त्री)में काम वासना से उत्पन्न होता है।