- दिव्य अग्रवाल (लेखक व विचारक)
इस्लामिक पुस्तकों की शिक्षा के अनुषार गैर इस्लामिक समाज जन्म से ही महरूम होता है उन्हें सत्ता अर्थात राज करने का अधिकार नहीं होता। इस्लाम का न मानना कुफ्र है और जो ऐसा कुफ्र करते हैं उनको हलाल अर्थात हत्या करने का अधिकार प्रत्येक मुस्लिम को है जो की वाजिब ऐ कत्ल है। समूचे विश्व में एकमात्र खिलाफत की सत्ता होनी चाहिए अर्थात इस्लाम की सत्ता होनी चाहिए जिसमे सबसे बड़ी बाधा भारत है क्यूंकि पुरे विश्व में भारत ही एक ऐसा स्थान बचा है जहां सबसे ज्यादा बुत परस्त / मूर्ति पूजक हैं। भारत के हिन्दुओ को बुतपरस्ती की अंतिम नस्ल मानने वाला इस्लामिक समाज भारत में गजवा ऐ हिन्द करना चाहता है और यह भी मानता है की गजवा ऐ हिन्द की लड़ाई अत्यंत भयानक, रक्त रंजीत होगी और वह जब तक चलेगी जब तक समूचे भारत पर इस्लामिक कब्ज़ा नहीं हो जाता। इस्लामिक पुस्तकों की शिक्षा में यह माना जाता है की भारत में किसी भी मंदिर का होना या मूर्ति पूजा होना कुफ्र है जो दंडनीय है और नेश्तोनाबूद अर्थात टूटने योग्य है, महमूद गजनबी से लेकर प्रत्येक मुस्लिम आक्रांता ने सर्वपथम हिन्दू मंदिरो को निशाना बनाया है । इतनी कटटरपंथी और मजहबी सोच रखने वाले लोग, भारत और गैर इस्लामिक समाज के प्रति क्या विचार रखते होंगे इसमें कोई संदेह शेष नहीं है । अतः भारत में यदि मानवता को बचाना है तो इस प्रकार की मजहबी शिक्षा को अविलम्ब प्रतिबंधित करना होगा। जिसकी संभावनाए तब जन्मी थी जब भाजपा सरकार में आयी थी परन्तु अभी तक ऐसा न होने के कारण ऐसी संभावनाए भी दम तोड़ चुकी है। यह बात सम्पूर्ण सत्य है की यदि भारत में चरमपंथ अपने मंसूबो अर्थात योजनाओं में सफल हुआ तो पुरे विश्व में धार्मिक आजादी समाप्त हो जायेगी जिसके लिए मजहबी समाज बहुत ही तीव्रता से प्रयासरत है ।