18 वीं लोकसभा के चुनावों के समय विपक्ष और विशेष रूप से राहुल गांधी ने जिस प्रकार की घटिया राजनीति का प्रदर्शन किया, उस पर अब तक बहुत कुछ लिखा जा चुका है। जनता में भ्रम फैलाकर जिस प्रकार उन्हें सरकार के विरुद्ध भड़काने का काम राहुल गांधी ने किया , उसके परिणाम अभी हमें आगे चलकर दिखाई देंगे। वर्तमान में इतना देखा जा सकता है कि लोग कई प्रकार की भ्रांतियों का शिकार होकर आंदोलन के माध्यम से सड़कों पर उतरे हुए दिखाई दे रहे हैं। 99 सांसदों की ताकत से कुछ अधिक ही खुराक ले गये राहुल गांधी से अब यह अपेक्षा की जानी अज्ञानता मानी जाएगी कि वह सड़कों पर उतरे हुए लोगों को रोकने का प्रयास करें या इसे अपनी नीतियों की विफलता कहें। देश के अधिकांश बुद्धिमान लोग इस बात को भली प्रकार समझ रहे हैं कि राहुल गांधी एंड कंपनी जिस दिशा में बढ़ चली है, उसका परिणाम क्या होगा ? यद्यपि इन बुद्धिमानों में से कई ऐसे भी हैं जो उन्हीं के समर्थक हैं, परंतु जनता अभी राहुल गांधी के खेल को नहीं समझ रही है।
जिस समय 1921 ई0 में देश में मोपला कांड हुआ था और 25000 हिंदुओं को मुसलमानों की सांप्रदायिकता का शिकार बनना पड़ गया था, उससे पहले स्वामी श्रद्धानंद जी महाराज ने महात्मा गांधी से जाकर कहा था कि मौलवी लोग सीधे हिंसा फैलाने की धमकियां दे रहे हैं और आप मुसलमानों के धर्मगुरु खलीफा के पद को बचाने के लिए खिलाफत आंदोलन को देश की स्वाधीनता से जोड़ने की बेतुकी बातों को करने में लगे हो ? इतिहासकार लिखता है कि गांधी जी स्वामी श्रद्धानंद जी महाराज के इस कथन को सुनकर मुस्कुरा दिए थे। उन्होंने कहा था कि मुल्ले मौलवी जो कुछ भी कह रहे हैं , उसका अर्थ यह लगाना कि वह हिंदुओं को अपना निशाना बनाने की बात कह रहे हैं , गलत है । उनका संकेत अंग्रेजों की ओर है। इसके कुछ समय पश्चात ही केरल के मालाबार में मुस्लिम सांप्रदायिकता ने ऐसा कड़ा प्रहार किया कि हिंदुओं को बचने का अवसर ही नहीं मिला और 25000 लोग कुछ समय में ही दंगों की आग में धकेल दिए गए। एक लाख से अधिक लोगों को अपने घरबार को छोड़कर इधर-उधर भागना पड़ा।
आजकल राहुल गांधी भी केरल के वायनाड से ही सांसद चुने जा रहे हैं। केरल के लोगों के संपर्क में आकर खिलाफत कमेटी के द्वारा जब 1919 की 24 नवंबर को इस संगठन का पहला अधिवेशन दिल्ली में हुआ तो गांधी जी ने उसकी अध्यक्षता करना स्वीकार कर लिया था । कुल मिलाकर केरल के खिलाफत कमेटी के मुसलमानों के प्रेम में गांधी इतने अंधे हो गए कि उन्हें राष्ट्रहित और हिंदूहित दिखाए जाने से भी नहीं दिख रहे थे। यही स्थिति हम आज के राहुल गांधी की देख रहे हैं। इन्हें दीवार पर लिखा हुआ भी दिखाई नहीं दे रहा है।
अब देश की राजनीति को लैटरल एंट्री ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है। इस बात को कांग्रेस के रणनीतिकार भी जानते हैं कि लैटरल एंट्री स्कीम को सबसे पहले कांग्रेस ने ही अपनाया था। यहां तक कि नेहरू के शासनकाल से ही लैटरल एंट्री स्कीम आरंभ हो गई थी। लैटरल एंट्री का अभिप्राय है कि सरकारी नौकरियों में बड़े पदों पर बाहर के लोगों को भी सीधे भर्ती कर लिया जाए। जो लोग विभिन्न क्षेत्रों में विशेष अनुभव प्राप्त कर अपनी सेवाएं देते रहे हैं, उनके अनुभव का लाभ सरकार ले। जिससे राष्ट्र को विकास की तेज रफ्तार दी जा सके। इस प्रकार किसी बाहरी व्यक्ति के अनुभव और ज्ञान का अधिकतम लाभ लेने के दृष्टिकोण से मोदी सरकार इस स्कीम पर काम कर रही थी। जिसे अब सरकार ने वापस ले लिया है। राहुल गांधी इस बात को भली प्रकार जानते हैं कि मनमोहन सरकार के दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरप्पा मोइली को मनमोहन सिंह इसी प्रकार लेकर आए थे। उनके ज्ञान और अनुभवों का मनमोहन सिंह ने लाभ उठाया। इसी प्रकार कांग्रेस के शासनकाल में तकनीकी विशेषज्ञ सैम पित्रोदा, अर्थशास्त्री बिमल जालान, कौशिक बसु, अरविंद विरमानी, मोंटेक सिंह अहलूवालिया, नंदन नीलेकणि को लेटरल एंट्री के द्वारा ही प्रशासन में बड़े पद दिए गए थे। जब कांग्रेस स्वयं इस प्रकार से लैटरल एंट्री स्कीम पर काम कर रही थी तो राहुल गांधी को कोई आपत्ति नहीं थी। पर अब जब मोदी सरकार ऐसा कर रही है तो उन्होंने और उनकी पार्टी ने हल्ला काटना आरंभ कर दिया है। इसकी देखादेखी उनके अन्य सहयोगी दलों ने भी शोर मचाना आरंभ कर दिया है। भ्रम का शिकार बने कुछ लोग भी सड़कों पर आ गए हैं। इनका मानना है कि राहुल गांधी जो कुछ कर रहे हैं, वह ठीक है।
कांग्रेस को पाखंड का पर्यायवाची बनाने में राहुल गांधी जिस प्रकार की भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं, वह निश्चय ही इस सर्वाधिक पुराने राजनीतिक संगठन के लिए दुर्भाग्य का विषय है। परंतु सारी पार्टी एक ही परिवार के हाथों में होने के कारण कोई भी इसका सही प्रतिरोध नहीं कर पा रहा है। खड़गे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अवश्य हैं, परंतु उनकी स्थिति क्या है ? इसे उनके साथ-साथ सारा देश भली प्रकार जानता है। सत्ता कल भी नेहरू गांधी परिवार के पास थी और आज भी है। केवल एक चेहरा बदल गया है, चरित्र और चाल वही पुरानी वाली है।
कांग्रेस पार्टी के इस प्रकार के पाखंडी आचरण को देखकर भारतीय जनता पार्टी के नेता और देश के रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने राहुल गांधी और उनकी पार्टी को कड़ी फटकार लगाई है। उन्होंने कहा है कि ‘लेटरल एंट्री मामले पर कांग्रेस का पाखंड सर्वविदित है। इसके बारे में यह जान लेना आवश्यक है कि इसे यूपीए सरकार ही लेकर आई थी। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ( ए0आर0सी0 ) 2005 में यू0पी0ए0 सरकार के अंतर्गत इसे स्थापित किया गया था। इसकी अध्यक्षता वीरप्पा मोइली ने की थी। यू0पी0ए0 काल में बने प्रशासनिक सुधार आयोग ने उन पदों को भरने के लिए विशेषज्ञों की भर्ती की संस्तुति की, जिनके लिए विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार ने इस संस्तुति को लागू करने के लिए एक पारदर्शी उपाय बनाया है। यूपीएससी के माध्यम से पारदर्शी और निष्पक्ष ढंग से भर्तियां की जाएंगी।’
इस फटकार का राहुल गांधी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है । उन्हें तो देश के लोगों को भड़काना है, इसलिए वह अपने भड़काने के कार्यक्रम को निसंकोच चलाते रहेंगे। उन्हें इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि इस प्रकार की भड़काऊ कार्यवाही का अंतिम परिणाम क्या होगा ? यदि देश टूटता है तो कह देंगे की भगवा ब्रिगेड की नीतियों के कारण देश टूटा है और यदि देश बचा रहता है तो कहेंगे कि भगवा ब्रिगेड को बड़े संघर्ष के बाद सत्ता से हटाने में वह सफल हुए हैं, जिससे देश को टूटने से बचाया जा सका है। वह भली प्रकार जानते हैं कि जय भीम और जय मीम गठबंधन देश में क्या गुल खिला सकता है ? इसको लेकर भी उनकी नीति साफ है कि देश टूटता हो तो टूट जाए, परन्तु वह इस गठबंधन को हवा देते रहेंगे । यही सोच उन्होंने अब पंजाब के खालिस्तानी आंदोलन को लेकर बना ली है। इसी प्रकार की सोच को लेकर वह मुस्लिम आतंकवाद पर भी काम करते हुए दिखाई दे रहे हैं। वह यह भी भली प्रकार जानते हैं कि हिंदुओं की अपेक्षा और मुसलमानों को गोद में लेने की दोरंगी नीति देश के लिए 1947 में जिस प्रकार घातक रही थी , उसी प्रकार आज भी घातक हो सकती है। वह यह भी भली प्रकार जानते हैं कि जातिवाद को बढ़ावा देकर हिंदू समाज कमजोर होगा। जिसका अंतिम परिणाम देश की कमजोरी के रूप में देखा जाएगा। वह यह भी भली प्रकार जानते हैं कि राजनीति में और राष्ट्रनीति में क्या अंतर है ? परंतु इस सब के उपरांत भी वह अपनी ढीठता का परिचय देते हुए वही करते जाएंगे, जिससे जनता को मूर्ख बनाकर वह सत्ता के केंद्र में पहुंचने में सफल हो जाएं ?
सुब्रहमण्यम स्वामी उनके पीछे विमानभेदी मिसाइल की तरह लग चुके हैं। उनकी ब्रिटेन की नागरिकता को लेकर अब जिस प्रकार न्यायालय ने सुनवाई आरंभ कर दी है, वह उनके लिए भविष्य में क्या गुल खिलाएगी ? यह तो भविष्य ही बताएगा। परन्तु अब यह भी स्पष्ट हो गया है कि उनका ईसाई धर्म में अटूट विश्वास है। निश्चित रूप से इसमें उनकी माता सोनिया गांधी का विशेष योगदान है जिसने उन्हें हिंदू या सनातनी बनने से रोका है। इसी कारण उन्होंने एक ईसाई महिला से विवाह किया है। जिससे उन्हें दो बच्चे भी हैं। यदि यह सब सच है तो उनकी हिंदुत्व के प्रति निष्ठा का खोखलापन अपने आप ही स्पष्ट हो जाता है। ऐसे में यह तो बनता है कि उनकी जाति पूछी जाए ? जिन लोगों को वह जाति के जाल में लपेटकर मारने की तैयारी कर रहे हैं, राहुल गांधी नहीं जानते कि उन लोगों की ‘ जाति ‘ क्या है ? भविष्य के गर्भ में अभी अनेक प्रश्न उपजते हुए दिखाई देंगे। जिनके उत्तर राहुल गांधी को देने ही पड़ेंगे। माना कि वह देश के लिए एक समस्या हैं, परन्तु उनके लिए भी अनेक प्रकार की समस्याएं हैं। अभी तक उन्हें पप्पू मानकर बालकों की तरह खेलने दिया गया था, पर अब उनके नए स्वरूप को देखकर उनके लिए भी जाल बिछाया जाएगा। जिससे वह बच नहीं पाएंगे, क्योंकि वह पैरों से बहुत कमजोर हैं।
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं )
मुख्य संपादक, उगता भारत