श्रावणी उपाकर्म स्वाध्याय का पावन पर्व है। विद्वानों द्वारा पवित्र यज्ञोपवीत का महत्व इसी दिन को समझाया तथा बताया है। आज भी यज्ञोपवीत धारण करना बहुत आवश्यक है ।प्राचीन काल में हमारे पूर्वज यज्ञोपवीत धारण करते थे। यज्ञोपवीत की परंपरा वीर शिवाजी ने आयु पर्यंत निभाई थी। शिवाजी की भांति अनेक क्षत्रियों ने यज्ञोपवीत धारण किया।
यज्ञोपवीत मन को शांत रखने का साधन है ।आज की जो युवा पीढ़ी दिग्भ्रमित व भटकी हुई है ,इसका कारण अशिक्षा अपसंस्कार हैं । यज्ञोपवीत धारण करने वाला आर्य होता है। अर्थात वह समाज का श्रेष्ठ व्यक्ति होता है। ऐसे व्यक्ति समाज के लिए आदर्श होते हैं ।वर्तमान में युवा पीढ़ी को सुधारना चाहते हो तो यज्ञोपवीत धारण करना सीखना होगा। किसी गुरुकुल अथवा आर्य समाज में जाकर यज्ञोपवीत पहनना सीखें यज्ञोपवीत के नियमों को जीवन में संकल्प के रूप में लेना चाहिए। इसी से मानव जीवन सुखमय, शांतिमय, उन्नतिमय होता है ।नया यज्ञोपवीत धारण करने का पर्व है। श्रावणी पर्व यज्ञोपवीत धारण करने के अतिरिक्त श्रावणी पर्व उपाकर्म (स्वाध्याय )का पर्व भी कहा जाता है। अर्थात इसको वेदारंभ संस्कार का पर्व कहा जा सकता है। प्राचीन काल में श्रावण मास में वेदों का प्रचार प्रसार किया जाता था। वैदिक विषय पर व्याख्यान होते थे। लोग श्रवण करते थे। इसलिए श्रावणी पर्व कहते थे।पर्व का अर्थ है’ पोरी’ जैसे गन्ने की एक पोरी दूसरी पोरी को जोड़ती है ऐसे ही समाज के एक वर्ग से दूसरा वर्ग जुड़ता है। हमें इन पर्वों को वैदिक रीति से मनाना चाहिए ।यह भाई बहन का पावन रक्षा सूत्र बंधन का पर्व भी है। यज्ञोपवीत एक साधक को अपनी इंद्रियों को प्रभु के ज्ञान के अनुसार चलने की प्रेरणा देता है। ऐसा यज्ञोपवीत धारक प्रभु को अपने अंतःकरण में प्रकट कर लेता है। जिससे प्रभु भी खुश हो जाते हैं ,और कल्याण का मार्ग खुल जाता है। रक्षा सूत्र एक धागा नहीं है बल्कि शुभ भावनाओं व शुभ संकल्पों को समाहित करता है ।भद्रा नक्षत्र भद्र करने वाले अर्थात अच्छा करने वाले को कहते हैं ।इसका अविद्वानों ने अनर्थ किया है। इसको वास्तविक अर्थों में समझना चाहिए।
भाई बहन के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं
देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
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लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।