शर संधान हेतु अर्जुन बनो!
( 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस पर विशेष )
वंदना कर भारती की सबसे बड़ा यह धर्म है ,
जग में न कोई इससे बड़ा और पवित्र कर्म है ।
मानवता और धर्म को जो साथ साथ तोलती ,
सुन वेदना माँ की तनिक और जान ले क्या मर्म है ?
यह देश ही हमारा देव है और आस्था का केंद्र है ,
युग – युगों से इसकी पूजा , करते रहे देवेंद्र हैं ।
संस्कृति इसकी मिटाना चाहता रहा शत्रु सदा ,
शरसंधान हेतु अर्जुन बनो ,मां का यही आदेश है ।।
कर भारतीयता को सुरक्षित हित इसी में देश का ,
बंधु ! तभी मिटेगा विश्व से संताप हर क्लेश का ।
ऋषियों की पवित्र वेदवाणी गूंजती रहे अविरत सदा , यही सार हमारे वेद का , यही सार ऋषि उपदेश का ।।
अहंकारमय संकल्प ही मानव को पतित करते यहां , अहंकारशून्य हृदय रखो सनातन वेद कहते हैं यहां ।
सदा देशभक्ति और देवभक्ति हृदय में मचलती रहे ,
द्वंद्वातीत बने मानव ही , ‘ राकेश ‘ अमर रहते यहां ।।
राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत