बांह पसारे राम ने, किया लखन सत्कार।
गले लगाया प्यार से , सिर सूंघा कई बार।।
लक्ष्मण जी की चोट को , सह न पाए राम ।
नि:श्वास लेने लगे , कहा – करो आराम ।।
( आज रामचंद्र जी के लिए बहुत ही कष्ट का समय था। उन्हें ऐसा लग रहा था कि उनके साथ हर संकट में खड़ा रहने वाला उनका छोटा भाई लक्ष्मण आज उनका साथ छोड़ जाएगा। छोटे भाई के बारे में ऐसे विचार बार-बार उनके हृदय को बेध जाते थे। जिससे वह मारे कष्ट के कराह पड़ते थे । उन्हें असीम वेदना ने आ घेरा था। उनके लिए सारा संसार सूना हो गया था। उनकी इस वेदना का उपचार संभवत: उस समय किसी के पास नहीं था। तब सुषेण जी को बुलाया गया। सुषेण जी सुग्रीव के ससुर थे और उसकी सेना के सेनापति के साथ साथ उत्तम कोटि के चिकित्सक भी थे। उन्होंने ही लक्ष्मण का उपचार किया था। )
राम ने लक्ष्मण के उपचार के लिए सुषेण वैद्य को बुलाया और उन्हें सब हाल बताया। तब :-
सुषेण बोले – राम जी ! औषधि है मेरे पास ।
लेते ही कट जाएंगे , लक्ष्मण के सब पाश।।
नस्य दिया था वैद्य ने , लक्ष्मण हुए निरोग।
लक्ष्मण की पीड़ा कटी , कट गए सारे शोक।।
पुत्र वध से हो गया , पागल था लंकेश ।
चाहा सीता वध करूं, मिट जाएं सकल क्लेश।।
कष्ट भोगता आदमी , पाप कर्म है मूल।
अज्ञान अविद्या में फंसा , सच को जाता भूल।।
गति जिसकी हो रावणी , कुल का होता नाश।
अपयश का भागी बने और कोसेगा इतिहास।।
सुपार्श्व रावण का मंत्री था। वह बहुत ही नीतिवान था। जब उसने यह सुना कि रावण सीता का वध कर देना चाहता है तो उसने नीति से काम लेते हुए रावण को इस पाप को करने से रोक लिया। उसने रावण से कहा कि जो राजा स्वयं पाप में डूब जाता है, एक दिन उसके इस पाप कर्म की बाढ़ में सारा देश डूब जाता है। कहने का अभिप्राय था कि अभी तो आप पहले पाप से ही नहीं उबर पाए हो , जिसके कारण सारा देश बहुत बड़ी विपदा झेल रहा है। कम से कम अब नया पाप तो मत करो।
सीता की हत्या करूं , विचार मग्न लंकेश।
जब राजा डूबे पाप में , डूबे एक दिन देश।।
नीति , बुद्धि में निपुण , मंत्री खड़े थे पास।
सुपार्श्व बोले – भूल से भी मत करना यह पाप।।
वेद के विद्वान को, नहीं शोभती बात।
नारी का वह वध करे , या देता आघात।।
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )