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आज का चिंतन

परमात्मा के सर्वोच्च लक्षण क्या हैं?

परमात्मा के सर्वोच्च लक्षण क्या हैं?
मनुष्यों की सर्वमान्य कामनाएँ क्या हैं?
मनुष्यों की सर्वमान्य कामनाओं को कौन पूर्ण कर सकता है?
कौन वास्तविक मनुष्य है?

प्र मन्महे शवसानाय शूषमाङ्गूषं गिर्वणसे अङ्गिरस्वत्।सुवृक्तिभिः स्तुवत ऋग्मियायाऽर्चामार्कं नरे विश्रुताय।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.62.1 (कुल मन्त्र 711)

(प्र मन्महे) पूर्ण रूप से मनन करते हैं और प्रार्थना करते हैं (शवसानाय) ज्ञान की शक्ति से सभी कार्यों को करने वाले (शूषम्) शत्रुओं का नाश करने के लिए (आङ्गूषम्) स्तुति के योग्य (निर्वणसे) प्रशंसित वैदिक वाणियों से (अङ्गिरस्वत्) हमारे शरीर और समूची सृष्टि के प्रत्येक भाग में शक्ति और आनन्द के रूप में विद्यमान (सुवृक्तिभिः) दुर्गुणों को हटाकर उत्तम कार्यों की प्रेरणा देने वाला (स्तुवते) महिमागान के योग्य (ऋग्मियाय) ऋचाओं (मंत्रों) के द्वारा (अर्चाम्) पूजा के लिए उच्चारण (अर्कम्) पूजा के योग्य (नरे) मानवों में (विश्रुताय) सुनाई देने वाले।

व्याख्या:-
परमात्मा के सर्वोच्च लक्षण क्या हैं?

हम परमात्मा पर मनन करते हैं और केवल उसके निम्न लक्षणों की प्रार्थना करते हैं:-
1. वह सर्वज्ञाता है। वह अपने सभी कार्य अपने ज्ञान की शक्ति से ही करता है।
2. वह सर्वशक्तिमान है। वह सभी शत्रुओं को नष्ट करने में सक्षम है।
3. वह अङ्गिरस्वत् है अर्थात् हमारे शरीर और समूची सृष्टि के प्रत्येक भाग में शक्ति और आनन्द के रूप में विद्यमान है।
4. वह सभी दुर्गुणों को दूर करता है और उत्तम कार्यों के लिए प्रेरित करता है।
5. वह वैदिक वाणियों के साथ स्तुति के योग्य है।
6. वह नरे विश्रुताय है अर्थात् सभी मनुष्यों में सुना जाता है, पशुओं में नहीं।

जीवन में सार्थकता: –
मनुष्यों की सर्वमान्य कामनाएँ क्या हैं?मनुष्यों की सर्वमान्य कामनाओं को कौन पूर्ण कर सकता है?
कौन वास्तविक मनुष्य है?

प्रत्येक व्यक्ति ज्ञान के लिए कामना करता है। प्रत्येक व्यक्ति शक्ति के लिए कामना करता है। प्रत्येक व्यक्ति स्थाई संगति की कामना करता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन से दुर्गुणों को दूर करके उत्तम कार्य करना चाहता है।इन सभी लक्षणों के लिए हमें उस सर्वमान्य शक्ति, परमात्मा, पर अवश्य ही मनन करना चाहिए जो केवल मनुष्यों में ही चर्चा का विषय है, पशुओं में नहीं। वह सर्वोच्च शक्तिमान ही हमें शक्ति दे सकता है। सर्वोच्च ज्ञानवान् ही हमें सच्चा ज्ञान दे सकता है।
अतः जो लोग परमात्मा के बारे में चर्चा नहीं करते, अपितु पशुओं की भांति केवल खाने-पीने और सुविधाओं के साथ रहने का ही ध्यान करते हैं, ऐसे लोग सच्चे मनुष्य के लक्षणों से रहित होते हैं।

सूक्ति:-(नरे विश्रुताय) वह केवल मनुष्यों में सुना जाता है, पशुओं में नहीं।


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