राजनीति में शाम दाम दंड व भेद यह चार सुत्र महत्वपूर्ण होते हैं। जिसका जाने अनजाने में लौकतंत्र में विभिन्न तरिको से इस्तेमाल होता आ रहा है जो शायद राजनीति में जरुरी हो गया है। राज करने की नीति में चाहे अपनी सीमा अथवा क्षमता बढाने का अवसर हो चुनाव के समय प्रतिद्वंद्वी को मात देने का फार्मूला।
केंद्र में भाजपा भारी बहुमत से दोबारा आने तथा कांग्रेस व क्षेत्रीय दलों का अत्याधिक कमजोर होने के कारण सभी राजनीतिक दलों के नेता अपनी राजनीतिक सुरक्षा के बेताब हो रहे हैं। चाहे वो राज्यसभा के सांसद हो अथवा पीटे हुए मोहरे। सब अपने तथा अपने परिवार की भलाई के लिए भाजपा का दामन थाम रहे हैं जो कहने के लिए तो अचानक होता है लेकिन पूर्व तैयारी तथा अपनी शर्त मान लेने के बाद ही नाटकीय ढंग से दशकों पूरानी पार्टी छोड़ कर उगते हुए सुरज की रोशनी में आनंद लेने आते हैं।
भाजपा पार्टी के लिए अदभुत समय तब आया जब 370 धारा खत्म करने का दौर मात्र दो दिन में ही आया लेकिन कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिपेन्द्र हुड्डा, मिलिंद देवङा सहित अन्य युवा कांग्रेसी नेता खुलकर समर्थन किया। हद तो तब हो गयी जब कश्मीर के अंतिम राजा हरिसिंह के वयोवृद्ध राजनेता पुत्र कर्ण सिंह ने भी समर्थन कर दिया तो अंतर्युद्ध से जुझती कांग्रेस के लिए एक विकट परिस्थितियों से जुझने का संकटकालीन समय आया। ऐसे में श्रीमती सोनिया गांधी परिपक्वता का उदाहरण पेश करते हुए यदि किसी गैर गांधी परिवार के युवा को अध्यक्ष बना देती तो कम से कम कांग्रेसियों का पलायन तो थम जाता लेकिन पार्टी से अधिक परिवार हित को तव्वजो दी गई। जिससे अतिवृद्ध व सांसद जिनका कार्यकाल अभी बचा है फिर भी पद छोड़ कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं।
यही हाल चंद्रबाबू नायडू, अखिलेश यादव, नीतीश कुमार की पार्टी का भी होगा,ममताबनर्जी की पार्टी खोखली हो चूकी है। ऐसे में लगातार पलायन से भाजपा ताकतवर होती जायेगी। एक तरफ भाजपा का संगठन लगातार अपनी शक्ति बढा रहा है वो इसलिए कि उनका राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह तथा भावी अध्यक्ष जगत प्रशाद नड्डा निरंतर जहाँ सदस्यता अभियान चला रहे हैं वहीं कद्दावर नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर रहे हैं लेकिन कांग्रेस पार्टी अपनी पार्टी को बचाने की बजाय बचे नेताओं में निराशा व हताशा पैदा करने में लगी है जिसकी विपक्षी पार्टियां धज्जियां उड़ाते हैं तो वरिष्ठ नेता जो कहीं भी जा नहीं सकते वो सही रास्ता दिखाने के बजाय अपनी पांच साल की सीट बना कर रखना चाहते हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस मुक्त का नारा 2014 में लोकसभा चुनाव के समय दिया था, उसमें सफल होने के बाद लगातार कोशिश में है कि संभावित नेता जो सिद्भाधांतिक तोर पर भाजपा में आना चाहे उन्हें शामिल किया जाना चाहिए। शेष कांग्रेस भी जनता दल की तरह छोटे छोटे टूकङों में परिवर्तित होने जा रही है। जिसकी शुरुआत हो चूकी है। ऐसे में भाजपा को शुरूआती दौर में ही संयमित होकर अन्य दलों से आये नेताओं को अपने सिंद्धांत व मर्यादा के अनुरूप बनाना होगा।
मदन सिंघल पत्रकार एवं साहित्यकार
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