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कल गूगल पर ढूंढ कर पढ़ा कोलकाता वाले रेप केस के बारे में। मेरे घर टीवी नहीं चलता पिछले साल डेढ़ साल से, यूँ ही बन्द करवा दिया है। सच कहूँ तो कांप उठा था पढ़ कर। आप भी पढ़ेंगे तो वही दशा होगी। इससे अधिक क्रूरता क्या ही होगी? गला काटने से होने वाली पीड़ा से हजार गुनी अधिक पीड़ा दी गयी उस लड़की को… आप सोच लें तो रोआं सिहर उठेगा।
उसकी फैमिली के बारे में सोच रहा हूँ। वे जीवन भर तड़पते रहेंगे, हर क्षण मरेंगे। जब उन्हें अपनी डॉक्टर बेटी याद आएगी, वे मृत्यु की पीड़ा से तड़पेंगे। अपनी बच्ची को मिली उस नरकीय यातना को याद कर कर के तड़पते रहेंगे वे… उन अपराधियों ने केवल एक लड़की को नहीं, उसके पूरे परिवार बल्कि पूरे समाज को मारा है।
मुझे अनेक मित्रों ने टिप्पणियों से लेकर इनबॉक्स तक कहा, इस विषय पर लिखिये। मैं सोच सोच कर रह जा रहा हूँ, क्या होगा हमारे लिखने से? क्या उखाड़ लेंगे हम लिख कर? एक परिवार फूलों की तरह सम्भाल कर पालता है अपनी बेटी को, उसे पढा लिखा कर काबिल बनाता है, और एक दिन कोई फुहड़ बर्बर अपराधी आता है और… यह देश बनाया है हमने?
मैंने पढ़ा, अपराधी के मोबाइल में अश्लील फिल्मों की क्लिप भरी हुई है। उसे नशा था यह सब देखने का। एक अपराधी अपने घर में बैठे दारू पीता है, अश्लील फिल्में देखता है, अपने आप को पशु बना लेता है, और एक दिन मौका मिलते ही किसी की सुंदर फुलवारी को उजाड़ फेंकता है। आप करते रहिए बौद्धिकता की बातें, कोई सुअर आएगा और अपने फुहड़ थुथुन से आपका आंगन कोड़ देगा।
सोशल मीडिया में एक दो नहीं, हजारों लोग हैं जो उस लड़की के लिए गन्दी गन्दी गालियां लिख रहे हैं। जानते हैं क्यों? क्योंकि उनकी पसंदीदा सरकार की आलोचना हो रही है, तो वे उस लड़की को ही गन्दी गन्दी गालियां दे कर बात बराबर कर रहे हैं। सोचिये! उस लड़की ने इनका क्या बिगाड़ा है? वह तो इन्हें जानती तक नहीं थी। वह पोस्ट उस डॉक्टर बेटी के परिवार तक पहुँचे तो उन्हें कैसा लगेगा? ये लोग उस अपराधी से जरा भी कम गुनाहगार नहीं।
आपको याद होगा, निर्भया वाली घटना के बाद पूरा देश आंदोलित था। हजारों लाखों लोग सड़कों पर उतरे थे। फिर भी कुछ नहीं बदला। कभी सोचा है क्यों? क्योंकि इस देश का बौद्धिक वर्ग कभी इस विषय पर चर्चा नहीं कर सका कि इस बीमारी के बढ़ने का मूल कारण क्या है और इसे कैसे रोका जाएगा। जब चर्चा होती है तो सरकार को गाली वाली दी जाती है और खानापूर्ति हो जाती है। इस पार्टी के शासन में कांड हो तो उस पार्टी वाले आंदोलन करते हैं, उस पार्टी के शासन में हो तो इस पार्टी वाले हुड़दंग करते हैं। इससे अधिक कभी बात नहीं हुई।
इस अपराध के बढ़ने के दर्जनों कारण होंगे, हम आज तक उसकी पहचान नहीं कर सके। हम कारणों पर बात ही नहीं करना चाहते। हम सॉल्यूशन पर भी बात करना नहीं चाहते। हम बस हल्ला कर के चुप हो जाते हैं।
इसी केस में देखिये। पकड़ा गया अपराधी अश्लील फ़िल्म देखने का आदी है। वह अकेला इस नशे का आदी नहीं है, इस देश में ऐसे करोड़ों युवक हैं जिनकी मोबाइल में केवल यही भरा है। वह देखने के बाद वे हर लड़की को नोच लेने वाली दृष्टि से ही देखते हैं। उन्हें जब मौका मिल जाय, वे नोच लेंगे। पर उन्हें पूरी छूट है। वे जो मन करे वह देखें और उसके बाद पशु बन कर नोंचते फिरें।
अभी कोई आएगा और पोर्न देखने को अपना अधिकार बता देगा। मुझे पिछड़ा बताते हुए घोषित कर देगा कि इसका उससे कोई सम्बंध नहीं। उसे केवल अपने अधिकार की चिन्ता है, उसे इस भयावह महामारी की कोई चिन्ता नहीं।
2014 में सरकार सभी अश्लील साइट्स को बंद करने का प्रावधान लाई थी। एकाएक देश के बुद्धिजीवी टूट पड़े। अश्लील फ़िल्म देखने को अपना अधिकार बताने वालों में स्त्रियां भी थीं। लेखिकाएं, कवयित्रियां, अभिनेत्रियां… सरकार हट गई पीछे।
कुछ बदलता नहीं दिख रहा। कुछ सुधरता नहीं दिख रहा। जंगली सूअर आपकी सुन्दर फुलवारी उजाड़ते रहेंगे। इस देश की बौद्धिकता नङ्गी है, वह कभी कारण और समाधान पर बात नहीं करेगी।
धिक्कार है।
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