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पर्व – त्यौहार

*रक्षाबंधन एवं श्रावणी- उपाकर्म पर्व*

साभार: भारतीय पर्व एवं परंपरा
Dr D K Garg

पर्व का इतिहास और कारण:

रक्षा बंधन के त्यौहार की परम्परा कब शुरू हुई, इसे मनाने की कोई भी प्रमाणिक जानकारी हमारे शास्त्रों, धर्म ग्रंथों जैसे वेद श्रीमद्भगवतगीता, पुराण, आयुर्वेद इत्यादि में नही मिलती है। वैसे उपलब्ध इतिहास से मालुम होता हैं कि ये पर्व सैकड़ों साल पुराना है , मुगल काल में इस पर्व को मनाने का उल्लेख मिलता है।
यदि हम अपनी प्राचीन परम्परा पर ध्यान दे और इस पर्व के साथ जुड़े अन्य नाम जिसे ऋषि तर्पण कहा गया है इस पर ध्यान दे तो इस पर्व को मनाने का कारण स्पष्ट हो जाता है।
प्राचीन काल में ऋषि गण और शिष्य आश्रम में रहकर विद्या अध्ययन किया करते थे और इस की समाप्ति श्रावण मास पूर्णिमा को की जाती थी। इस के बाद ऋषि और आश्रम के विद्यार्थी मिलकर श्रावण मास की पूर्णिमा को यज्ञ किया करते थे। यज्ञ के उपरांत यजमान और शिष्य एक दूसरे को रक्षा सूत्र बांधते थे।
इसी तरह इस दिन विद्यार्थी गुरुकुल से शिक्षा सत्र पूरा करके जब अपने घर जाते थे तो परिवार के साथ श्रावण के सुहावने मौसम में उत्सव मनाते थे। चँूकि बहन की रक्षा और उस के भविष्य की देख भाल की जिम्मेदारी भाई की भी होती है इसलिए इस पर्व पर बहन भाई के हाथ में रक्षा सूत्र बांधती थी। जिसको आगे चलकर रक्षाबंधन का नाम दिया गया।
किसी अन्य प्रमाण के अभाव में रक्षाबंधन पर्व को मनाने के पीछे यही कारण ज्यादा उपयुक्त लगता है। हैरानी की बात तो यह है कि इस दिन जिन बहनों के भाई नहीं होते वह रोती है तथा भाई न होने का पश्चाताप करती है। मेरे विचार से रोने के बजाय हम एक परमात्मा का ध्यान करें जो परमात्मा हमारा सखा भाई, मित्र, बहन और माता-पिता भी है, जिसकी उपासना से रक्षा सम्भव है। एक श्लोक बहुत प्रसिद्ध है:

त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या च द्रविणं त्वमेव,

श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाये जाने के कारण इस पर्व को श्रावणी कहते हैं और उपाकर्म का अर्थ होता है आरंभ करना। इसलिए इस पर्व के दोनों बिंदुओं पर विचार करना उचित होगा।
श्रावणी उपाकर्म – मुख्यपर्व श्रावणी उपाकर्म है। इसका अर्थ है वेदों के विशेष स्वाध्याय अध्ययन का पर्व। श्रावणी शब्द श्रु श्रवणे धातु से ल्युट् प्रत्यय पूर्वक छन्दसि (वेदार्थ) में स्त्री लिंग में श्रावणी शब्द सिद्ध होता है। जिसका अर्थ होता है सुनाये जाने वाली अर्थात् जिसमें वेदों की वाणी को सुना जाये वह श्रावणी कहती है। अर्थात् जिसमें निरन्तर वेदों का श्रवण-श्रावण और स्वाध्याय और प्रवचन होता रहे, वह श्रावणी है।
उपाकर्म उप़$आ़कर्म = उपाकर्म। उप= सामीप्यात्, आ=समन्ताद, कर्म =यज्ञीय कर्माणि। जिसमें ईश्वर और वेद के समीप ले जाने वाले यज्ञ कर्मादि श्रेष्ठ कार्य किये जायें वह उपाकर्म कहलाता है। अध्ययनस्य उपाकर्म उपाकरणं वा (पारस्कर गृह्य सूत्र २,१०,१-२) अर्थात् यह समय स्वाध्याय का उपकरण था। उप=समीप़ आकरण ले आना अर्थात् जनता को ऋषि-मुनियों समाज के विद्वानों के समीप ले आना।
प्राचीन काल में आज के दिन यह वेद प्रचार अध्ययन स्वाध्याय का पर्व आरंभ होता था इसलिए इसे श्रावणी उपाकर्म कहते हैं और आज से आरंभ होकर 4 महीने तक चलता था।
बाद में यह परंपरा धीरे-धीरे लुप्त हो गई और लोग कहीं एक सप्ताह तक वेद प्रचार करने लगे और फिर समय की कमी के कारण यह तीन दिन तक सीमित रह गया और बहुत जगह तो आज कल एक ही दिन में वेद प्रवचन कर के इस पर्व को समाप्त कर देते हैं।
प्राचीन पर्व पद्धति:
इस पर्व पर लोग पुराना यज्ञोपवीत बदलकर नया धारण करते थे। इस अवसर पर बड़ा उत्साह का वातावरण होता था। जैसे आज भी शादी विवाह के अवसर पर लोग नए कपड़े पहनते हैं इसी तरह से इस पर्व पर यज्ञोपवीत और नए वस्त्र पहने जाते थे। यज्ञोपवीत बदलने की परंपरा आज भी बची हुई है।
ऋषि तर्पण – जिस कर्म के द्वारा ऋषि मुनियों का और आचार्य जो विशेषकर वेदों के विद्वान है उनका तर्पण किया जाता है . तर्पण का अर्थ है उन्हें दान देना अर्थात् उनके वचनों को सुनकर उनका सम्मान करना ही ऋषि-तर्पण कहलाता है।

रक्षा बंधन पर्व के नाम पर दो मुख्य झूट का प्रचलन:

1.भ्रमित करने वाला इतिहास;

इस पर्व की एक इतिहास में रक्षाबंधन को लेकर जो कहानी पढ़ाई जाती है वो पूरी तरह झूठी है।
अक्सर रक्षाबंधन पर सुनाई जाती है कि रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूँ के किस्से के साथ। जब रानी को पता चला कि बहादुर शाह उस पर हमला करने वाला है तो उसने हुमायूँ को पत्र लिखा ,रखी भेजी ,इसके कारण हुमायु ने हिंदू बहिन की मदद की ।

वास्तविकता ये है की हुमायूँ को पत्र लिखे जाने का बहादुर खान को पता चल गया। बहादुर खान ने हुमायूँ को पत्र लिखकर इस्लाम की दुहाई दी और एक काफिर की सहायता करने से रोका। मिरात-ए-सिकंदरी में गुजरात विषय से पृष्ठ संख्या 382 पर लिखा मिलता है।
हुमायूँ को विचार आया अगर मैंने चितौड़ की मदद की तो मैं एक प्रकार से एक काफिर की मदद करूँगा। इस्लाम के अनुसार काफिर की मदद करना हराम है। इसलिए देरी करना सबसे सही रहेगा। यह विचार कर हुमायूँ ग्वालियर में ही रुक गया और आगे नहीं जा सका।
इधर बहादुर शाह ने जब चितौड़ को घेर लिया तो रानी ने पूरी वीरता से उसका सामना किया। लेकिन वहाँ हुमायूँ का कोई नामोनिशान नहीं था। अंत में जौहर करने का फैसला हुआ। किले के दरवाजे खोल दिए गए। केसरिया बाना पहनकर पुरुष युद्ध के लिए उतर गए। पीछे से राजपूत औरतें जौहर की आग में कूद गई। रानी कर्णावती 13000 स्त्रियों के साथ जौहर में कूद गई। 3000 छोटे बच्चों को कुँए और खाई में फेंक दिया गया, ताकि वे मुसलमानों के हाथ न लगें। कुल मिलाकर 32000 निर्दोष लोगों को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा।

सभी को यह समझ लेना चाहिए की जिस मजहब में बहन से निकाह करने का और काफिर औरतों को लौंडी बनाने का प्रावधान हो तो वह क्यों हिंदू बेटी के साथ भाई का रिश्ता निभाएगा? उनके लिए ये छल करने का उपाय है।
झूट 2.

अज्ञानियो की अफवाहें और भ्रम

कुछ वर्षों से पंडित ज्योतिषी एक अफवाह द्वारा भ्रम फैला रहे है की अमुक समय तो अमुक समय तक भद्रा नक्षत्र सुरु होगा इसलिए रक्षाबंधन का पर्व उस समय मनाने से अनिष्ट होगा ।
यानि की भद्रा में रक्षा बंधन करना अशुभ है।इस लिए ३१ अगस्त को रक्षा बंधन मनाना अशुभ है।

अंधविश्वासी लोगो से प्रश्न:- यह भद्रा कौन सी कोरोना बीमारी है ? जिसका लक्ष्य काम बिगाड़ डालना और ख़ुशी के अवसर पर रंग में भंग डालना है?हर साल पाखंडियों की भद्रा राखी के दिन ही क्यों आती है ?
यह भद्रा ख़ुशी के अवसरों पर ही काम बिगाड़ने क्यों आती है और यह कहाँ किस प्रमाणिक शास्त्र में लिखा है ?
सत्य ये है की इन मुर्ख और धूर्त लोगो के कारण ही हिंदू समाज सदियों से गुलाम रहा और इनका हमेशा प्रयास रहता है की शुभ मुहूर्त के चक्कर में पड़कर हिंदू अंधविश्वासी ,निकम्मा हो जाए।सोमनाथ के मंदिर का टूटना इन्ही लोगो की धृष्टता का कारण है।

समझ के कि उचित काम के लिए हर अवसर शुभ है।यह भद्रा का भ्रम फैला कर समाज को भयभीत करने की साज़िश है।

भद्रा भ्रम निवारण:-

भद्रा का अर्थ क्या है ,ये समझते है ?
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वेद में भद्रा पद कई बार आया है लेकिन यहाँ मात्र दो प्रसिद्ध मन्त्र ही प्रस्तुत कर रहे हैं |
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आ नो॑ भ॒द्राः क्रत॑वो (ऋग्वेद 1/89/1), (यजुर्वेद 25/14)
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दे॒वानां॑ भ॒द्रा सु॑म॒तिरृ॑जूय॒तां (ऋग्वेद 1/89/2), (यजुर्वेद 25/15)
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किसी भी शब्द कोश में ढूँढ लें भद्रा का स्पष्ट अर्थ है कल्याणकारी, हितकारी, सुखकारी |
भद्रा स्वयं पुकार पुकार कर कह रहा है कि ये समय शुभ है लेकिन बहरे कान ज्योतिषी कह रहे हैं अमंगल है |
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सारी बहनों से आग्रह है कि कृपया अथर्ववेद के मन्त्र में दिये आदेश का पालन करें
“अभयं मित्रादभयममित्रादभयं”

उपरोक्त मन्त्र में दिये उपदेश की बात मानें और डरवाने/डराने वाले ज्योतिषियों से दूर रहें |

सच्चा मुहूर्त कहते ही उसे हैं जब सारी अनुकूलतायें हों और मन में प्रसन्नता हो, शान्ति हो, निर्भय हो |
इन चालबाज ज्योतिषियों से दूर रहे, हमारा चंद्रयान अब चंद्रमा तक पहुंच गया है।

पर्व विधि:
कृपया राखी के साथ जनेऊ भी धारण करें, अपने परिवार की बेटी-पत्नी-माँ सबको जनेऊ पहनायें।

  1. अवश्य रुप से अपने घरों में यज्ञ करें। श्रावणी उपाकर्म के विशेष मंत्रों से आहुति प्रदान करें।

  2. घर के बालक जो दस बारह वर्ष से अधिक आयु के हो गए हैं या समझदार हैं। उनका यज्ञोपवीत संस्कार अवश्य रुप से करायें। यज्ञोपवीत का महत्व बताएं।

  3. वेद पढ़ने-पढ़ाने का संकल्प लें, स्वाध्याय करने का संकल्प ले,ं प्रतिदिन यज्ञ करने का संकल्प लें, अपने बहनों एवं मातृ शक्ति के रक्षा करने का संकल्प लें बस यही संदेश है श्रावणी पूर्णिमा।

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