रिपोर्ट रविंद्र आर्य
ढाका: बांग्लादेश की आरएबी फोर्स रक्षक और भक्षक बन गई है, वहीं संयुक्त राष्ट्र में शांति सेना बैठी हुई है। संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के तहत तैनात संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों पर कई बार मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगे हैं, जिनमें बलात्कार, यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं। बांग्लादेश शांति सेना द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन पर जर्मन अंतरराष्ट्रीय समाचार चैनल डीडब्ल्यू की डेकोमोंटेरी फिल्म में दिखाया गया है कि आरएबी इकाई एक सहयोगी बल है जो अवैध हत्याओं और यातनाओं में शामिल है। बांग्लादेश की रैपिड एक्शन फोर्स एक कुख्यात इकाई है, जिसे आरएबी कहा जाता है। दुनिया भर में 20 लाख सैनिकों वाले संयुक्त राष्ट्र में बांग्लादेश की आरएबी की भर्ती दुर्भाग्यपूर्ण है। आपको बता दें कि बांग्लादेश की शांति सेना, खासकर रैपिड एक्शन बटालियन (आरएबी), संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में अपनी भागीदारी के लिए जानी जाती है। हालांकि, इस बल पर कई बार गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगे हैं। जर्मन समाचार चैनल डीडब्ल्यू द्वारा प्रसारित एक वृत्तचित्र में दिखाया गया कि आरएबी, एक कुलीन बल, अवैध हत्याओं और यातनाओं में शामिल रहा है। डॉक्यूमेंट्री में खुलासा किया गया है कि आरएबी ने कई मानवाधिकार उल्लंघन किए हैं, जिससे यूनिट की छवि खराब हुई है। आरएबी के खिलाफ फर्जी मुठभेड़, बलात्कार और न्यायेतर हत्याओं के आरोप हैं। इसके बावजूद, आरएबी के सैनिकों को संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में भर्ती किया गया है, जिसे कई लोग दुर्भाग्यपूर्ण मानते हैं।
दुनिया भर में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में करीब 20 लाख सैनिक सेवारत हैं और ऐसे आरोप संयुक्त राष्ट्र मिशनों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाते हैं। इस संदर्भ में, बांग्लादेश की आरएबी इकाई की भूमिका और संयुक्त राष्ट्र में उसके सैनिकों की भर्ती पर गहरी चिंता जताई जा रही है। इन मुद्दों ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय और मानवाधिकार संगठनों का भी ध्यान खींचा है और सुधार की आवश्यकता पर बल दिया है।
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ
यह चिन्ता व्यक्त करने वाले मानवाधिकार विशेषज्ञों में, शान्तिपूर्ण सभा की स्वतंत्रता, न्यायाधीशों और वकीलों की स्वतंत्रता, मानवाधिकार रक्षकों और मत व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर विशेष रैपोर्टेयर शामिल हैं। विशेष पैरोकार और स्वतंत्र विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त किए जाते हैं और इसकी विशेष प्रक्रियाओं का हिस्सा बनते हैं।
उन्हें विशिष्ट विषयगत मुद्दों या देश की स्थितियों पर निगरानी और रिपोर्ट करने व स्वैच्छिक आधार पर काम करने का शासनादेश होता है. ये मानवाधिकार विशेषज्ञ अपनी व्यक्तिगत क्षमता में सेवा करते हैं; वो संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके इस काम के लिए, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है।