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संपादकीय

मोदी ने शेख हसीना को नहीं देश को बचाया है

बांग्लादेश में जो कुछ भी हुआ है, वह भारत के लिए बहुत खतरनाक संकेत दे रहा है । घटनाक्रम के बाद कई चीजें स्पष्ट हो गई हैं। जो कुछ अभी स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा है, वह भी स्पष्ट हो जाएगा। कई लोगों को अब यह बात समझ में आ गई है कि तख्तापलट के पश्चात शेख हसीना भारत के लिए ही क्यों आईं? उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि अमेरिका उनसे एक द्वीप लेना चाहता था, जिसे देने से उन्होंने मना कर दिया था। इस द्वीप को लेकर अमेरिका उसे एक ईसाई देश के रूप में बदलने की योजना रखता था । निश्चित रूप से इस द्वीप पर अमेरिका अपना सैनिक अड्डा बनाता । इस ईसाई देश के माध्यम से एक वृहत्तर ईसाई देश भारत के पूर्वोत्तर भाग को लेकर बनाने की तैयारी की जाती। जहां पहले ही पूरे क्षेत्र का ईसाईकरण हो चुका है। प्रधानमंत्री मोदी शेख हसीना के माध्यम से इस सारी योजना से परिचित थे। उन्होंने शेख हसीना को पूरा समर्थन देना आरंभ कर दिया था। दोनों नेताओं की निकटता अमेरिका सहित देश के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को भी रास नहीं आ रही थी।
अब ऐसे आरोप भी लगाए गए हैं कि बांग्लादेश में तख्तापलट की योजना में राहुल गांधी का भी हाथ रहा है। जो कि ब्रिटेन में बांग्लादेश की विपक्ष की नेता खालिदा जिया के बेटे से मिले थे।
राहुल गांधी के आचरण और इतिहास को देखकर उनसे यह उम्मीद की जा सकती है कि उन्होंने खालिदा जिया के बेटे से मिलकर इस प्रकार की योजना पर विचार कर लिया होगा। क्योंकि यह उन्हीं नेहरू की बेटी के पोते हैं, जिन्होंने 1947 में देश के बंटवारे की कीमत पर कुर्सी प्राप्त की थी। लॉर्ड माउंटबेटन और अंग्रेजों को भारत से सुरक्षित रूप से निकालने की जिम्मेदारी लेकर नेहरू ने लाखों हिंदुओं को मरवाकर भी ऐसी व्यवस्था बनाई थी कि उस समय एक भी ईसाई अंग्रेज नहीं मारा गया था। “विभाजनकालीन भारत के साक्षी” नामक पुस्तक से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि जब लॉर्ड माउंटबेटन ने पंडित जवाहरलाल नेहरू से यह कह दिया था कि अंग्रेजों ने भारत की सत्ता मुसलमानों से प्राप्त की थी ,इसलिए किसी मुसलमान को ही वह भारत का पहला प्रधानमंत्री बनाना चाहेंगे ? तब नेहरू जी ने लॉर्ड माउंटबेटन से कहा था कि मुसलमान तो मैं स्वयं भी हूं। इसके पश्चात ही लॉर्ड माउंटबेटन अपनी शर्तों पर उन्हें देश का पहला प्रधानमंत्री बनाने पर सहमत हुए थे। इतना ही नहीं, उन्हें देश की सत्ता सौंपने से पहले कई ऐसी शर्तों पर एक संविदा के रूप में उनसे हस्ताक्षर करवाए थे, जो देश के लिए किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं थीं। स्वाधीनता की प्रभात में यदि नेहरू देश की सत्ता पाने के लिए देशघाती शर्तों या संविदा पर हस्ताक्षर कर सकते थे तो आज राहुल गांधी ऐसा क्यों नहीं कर सकते ?
इन्हीं की पार्टी ने देश के पूर्वोत्तर भाग का ईसाईकरण होने दिया। जब हिंदूवादी दल या संगठन इस पर शोर मचा रहे थे और कह रहे थे कि कांग्रेस की देश विरोधी नीतियों के कारण मदर टेरेसा पूर्वोत्तर भारत का ईसाईकरण कर बहुत बड़ा अपराध कर रही है तो उस समय उन हिंदूवादी संगठनों की बातों को अनदेखा किया गया। इतना ही नहीं, सोनिया की कृपा से देश को तोड़ने की योजना बनाने वाली मदर टेरेसा को भारत रत्न भी दे दिया गया । आज उसी ‘ भारत रत्न ‘ के द्वारा बोये गए विषबीज का परिणाम है कि अमेरिका शेख हसीना से एक द्वीप की मांग कर भारत को तोड़ने की एक नई योजना पर काम करने की तैयारी करने लगा। बांग्लादेश के बनाने में जिस प्रकार भारत की विशेष भूमिका रही थी, उसे पाकिस्तान अभी भूला नहीं है। इसलिए भारत को तोड़ने की इस नई योजना में उसका पूरा योगदान और सहयोग है, इसमें कोई शंका नहीं होनी चाहिए। राहुल गांधी अपनी दादी के द्वारा किए गए उस पाप की क्षमा पाकिस्तान से मांग रहे हैं , जो उन्होंने बांग्लादेश को बनाकर किया था। वह धीरे से पाकिस्तान की नजरों में उपमहाद्वीप के बड़े नेता बनने की तैयारी में हैं । इसके लिए उन्हें अपने देश का विभाजन भी स्वीकार है , परंतु उन्हें इस समय पाकिस्तान से एक महान नेता ( कायदे आजम ) का प्रमाण पत्र लेने की शीघ्रता है। ध्यान रहे कि इसी प्रकार का अंतरराष्ट्रीय नेता बनने का भूत पंडित जवाहरलाल नेहरू पर चढ़ा था, जो देशहित की अवहेलना करते हुए अपने आपको देश से बड़ा मानने लगे थे। इसी के परिणामस्वरूप उन्होंने चीन के हाथों मार खाई थी और सवा लाख वर्ग किलोमीटर भारत का भूभाग काटकर उसे दे दिया था। इतिहास का वही भूत जवाहरलाल नेहरू के वारिस के रूप में हमें राहुल गांधी के भीतर दिखाई दे रहा है। 1947 के पश्चात 2047 अब निकट आता जा रहा है। हम किधर जा रहे हैं ? सोच कर मन सिहर उठता है। देश के हिंदू समाज को बहुत गहराई से इस पर सोचने की आवश्यकता है।
राहुल गांधी उसी महात्मा गांधी के उत्तराधिकारी हैं, जिन्होंने मोपला कांड के समय 25000 हिंदुओं की हत्या करवा ली थी। उस समय उन्हें तनिक भी यह नहीं लगा था कि कहीं हिंसा हो रही हैं ? क्योंकि तब हिंदू मर रहे थे। उस समय गांधी ने अफगानिस्तान के शाह को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था और यह घोषणा कर दी थी कि हमें मुगलों की हुकूमत स्वीकार है अर्थात देश के हिंदुओं को मेमने की तरह मुगलों के सामने फेंकना स्वीकार है। अंग्रेजों को हम विदेशी मानते हैं परंतु मुगलों को नहीं। दादरी के पास स्थित बिसाहड़ा गांव में अखलाक की मृत्यु होती है तो सारे सेकुलर वैसे ही रोना आरंभ कर देते हैं जैसे रात को जंगल में गीदड़ रोते हैं और अब बड़ी संख्या में बांग्लादेश में हिंदू मारे गए हैं तो सारे गीदड़ घरों में घुस गए हैं। यह दोगलापन और कांग्रेस के नेता का चरित्र और आचरण देश के 78 वें स्वाधीनता दिवस के अवसर पर हमें बहुत कुछ सोचने के लिए विवश कर रहा है । देश के राष्ट्रवादियों को जागना ही होगा, अन्यथा विनाश निश्चित है। इसी समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी ने इस समय शेख हसीना को नहीं बल्कि देश को बचाया है। इसके उपरांत भी हमारी पूर्ण संवेदना बांग्लादेशी हिंदुओं के प्रति है। सरकार से यह अपेक्षा भी की जाती है कि वह उनकी सुरक्षा के लिए और भी अधिक प्रयास करे।

डॉ राकेश कुमार आर्य

(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है।)

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