भारतीय इतिहास का प्रथम जौहर !

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सिंध के शासक राजा दाहर और मुहम्मद बिन कासिम के बीच पांच दिन का निर्णायक युध्द 16 जून 722 ईस्वी से शुरु हुआ । सिंध इतिहास के प्रसिध्द ग्रंथ चचनामा में इसका विस्तार से वर्णन है । युध्द के पांचवें दिन 20 जून 722 को दाहर अपने दो पुत्रों जैसिया , धरसिया और एक लाख घुडसवारों के साथ रणस्थल पर आया। भयंकर युध्द हुआ और दोपहर बाद ऐसा साफ लगा कि हिंदू सेना की ही जीत होने वाली है और अरब सेना रणस्थल से पलायित होने लगी । परन्तु अकस्मात ही सायंकाल युध्द के अन्तिम समय में नफथा के चोट से दाहर का हाथी घायल होकर बगल के तालाब में घूस गये जहाँ पहुंचकर अरबों ने दाहर का अन्त कर दिया । हिंदू सेना अरबों से पराजित हो चुकी थी ।
जैसिया , दाहर की पत्नी और बचे हुये सैनिकों ने रावर के दुर्ग में शरण ले ली । जैसिया को अपने पराक्रम पर अभी भी विश्वास था कि वह अरब सेना को पराजित कर सकता है। इसके लिये उसने युध्द की तैयारियां भी शुरु कर दीं। लेकिन उसके मंत्री सियाकर ने सलाह दी कि कुछ दिनों पीछे हटकर नयी कुमुक और शक्ति हासिल करने के बाद ही पुन: युध्द करना उचित होगा। सामरिक नजरिये से इस सलाह को उचित मानते हुये जैसिया रावर दुर्ग छोडकर ब्राह्मणाबाद के मजबूत दुर्ग में चला गया ताकि नये सिरे से युध्द की तैयारियां की जा सकें । रावर दुर्ग की रक्षा का भार उसने अपनी पत्नी ‘ बाई ‘ को सौंप दिया जिसने सम्भवत: जाने से इनकार कर दिया था। दुर्ग में मौजूद 15 हजार सैनिकों के साथ बाई ने अरबों का मुकाबला करने का निश्चय किया।
मुहम्मद बिन कासिम ने रावर दुर्ग के पास पहुंच कर उसका घेरा डाल दिया। अपनी सेना को दो भागों में बांटकर दुर्ग पर आक्रमण शुरु किया। बाई की अगुवाई में सैनिकों ने मुसलमानों पर बडे बडे यंत्रों से पत्थर फेंककर अविस्मरणीय मुकाबला किया। जब अरबों की विशाल सेना के कारण दुर्ग का पतन निकट आ गया तो बाई ने दुर्ग में मौजूद समस्त हिन्दू औरतों को बुलाकर कहा- हमें इन चांडाल और गोमांस भक्षियों के हाथों से बचने के लिये चाहिये कि हम सब अग्नि में जल मरें । दुर्ग में महान जौहर सम्पन्न हुआ । भारतीय इतिहास में मुसलमानों के विरुध्द यह प्रथम जौहर था जिसकी भविष्य में हिन्दू स्त्रियों के लिये अपनी-कुल मर्यादा की रक्षा के लिये अंतिम अस्त्र के रुप में अपनाये जाने की एक परम्परा सी बन गयी ।
जौहर सम्पन्न होने के पश्चात अरबों ने भयंकर मारकाट के बाद दुर्ग पर अधिकार कर लिया। उन्हें अल्लाह के पवित्र कलाम कि युध्द में पकडी गयीं काफिरों की औरतें तुम पर हलाल हैं, तुम्हारी दासियां हैं की जगह राख का अम्बार ही हाथ लगा ।
इस युध्द से यह साबित होता है कि हिंदू स्त्रियां वीरता में पुरुषों से कभी कम नहीं रहीं और अपने देश और धर्म के लिये सदैव आत्म बलिदान भी दिया। याद रखिये जब ये रेगिस्तानी लुटेरे हमारी हजारों हिन्दू मां , बहन और बेटियों के आत्मदाह के अपराधी हैं तो फिर कैसी गंगा-जमनी तहज़ीब ? साथ ही यदि टुकड़े-टुकड़े गैंग के सरगना सीताराम येचुरी को यह इतिहास पता होता तो हिंदू हिंसक होते हैं ना कहता।
– ‘ सल्तनत काल में हिदू प्रतिरोध ‘
लेखक : अशोक कुमार सिंह
– अरुण लवानिया

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