Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम : अध्याय , 37 : कुंभकर्ण रावण संवाद

रामचंद्र जी यद्यपि बहुत ही सौम्य प्रकृति के व्यक्ति थे, पर उनके भीतर आज सात्विक क्रोध अर्थात मन्यु अपने चरम पर था। वीरों का क्रोध भी सात्विक होता है। जिसमें नृशंसता , क्रूरता , निर्दयता और अत्याचार की भावना दूर-दूर तक भी नहीं होती। उन्हें क्रोध भी लोक के उपकार के लिए आता है। उनका क्रोध उन लोगों के विरुद्ध होता है जो संसार का अहित कर रहे होते हैं। बस, रामचंद्र जी के क्रोध और रावण के क्रोध में यही अंतर था। रावण तामसिकता से भरा होकर युद्ध लड़ रहा था। जबकि रामचंद्र जी युद्ध क्षेत्र में भी सात्विकता को अपनाकर युद्ध लड़ रहे थे।

तीखे बाणों से किया, रावण पर प्रहार।
नि:शस्त्र किया लंकेश को , बुरी लगाई मार ।।

लज्जित हुए लंकेश को , भगा दिया निज देश।
मिली आज की हार से , दु:खी बहुत लंकेश।।

विकल्प बचा अब एक ही, कुंभकरण था नाम ।
भेज दिया लंकेश ने , उसको भी पैगाम।।

कुंभकरण को दु:ख लगा, सुने युद्ध के हाल।
चर्चा की लंकेश से , पहुंचा उसके पास।।

( कुंभकरण के बारे में यह धारणा मिथ्या है कि वह 6 महीने सोता था और 6 महीने जागता था। बाल्मीकि रामायण में ऐसा कहीं कोई उल्लेख नहीं है। वास्तव में वह भाई विभीषण की तरह रावण के अनीतिपरक आचरण से असहमत था । इसलिए वह रावण की राज्यसभा और राजनीतिक गतिविधियों से अपने आप को दूर रखता था। वह अपने परिवार और अपनी पत्नी के साथ ही क्रीडासक्त रहता था। उसकी इस प्रकार की राजनीतिक उदासीनता को ही उसका सोना कहा जाता है। आजकल हम व्यापार के क्षेत्र में सांझेदारी में काम कर रहे लोगों को कहते सुनते हैं कि अमुक व्यक्ति मेरा स्लीपिंग पार्टनर है, तो इस स्लीपिंग पार्टनर का अभिप्राय ऐसे सांझेदार से लिया जाता है जो सांझेदारी में सक्रिय भूमिका नहीं निभाता अपितु मौन रहकर अपना हिस्सा पाता रहता है । बस, यही बात सोने वाले कुंभकर्ण के बारे में लेनी चाहिए।)

कुंभकरण कहने लगा , भ्राता जी ! सुनो बात ।
रोना आपका व्यर्थ है , बहुत किए उत्पात।।

नीतिवान राजा वही , जो मित्रों से ले राय ।
धर्म, अर्थ और काम को यथा समय कर जाय।।

नीति धर्म के साथ जो, करता है अन्याय ।
ऐसा शासक डूबता , और नरक को जाय।।

शत्रु के संग जो करे, नीतिगत व्यवहार।
मंत्री से करे मंत्रणा , सत्कार करे संसार।।

ऊंच नीच को जानकर , करता अपने काम ।
मंत्रियों को सम्मान दे, उत्तम शासक जान ।।

विभीषण और मंदोदरी , करते रहे सही बात।
बात को उनकी मार दी, तुमने भ्राता लात ।।

कर्म का फल देखकर , अब क्यों रोते आप ।
पुण्य विदा सब हो गए, सिर पर बैठा पाप ।।

डॉ राकेश कुमार आर्य

( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )

Comment:Cancel reply

Exit mobile version