सोनिया गांधी के थके हुए कंधे और अध्यक्ष पद
जब कुछ समय पहले श्रीमती सोनिया गांधी ने अपने थके हुए कंधों से बोझ उतार कर राहुल गांधी के युवा कंधों पर कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी डाली थी तो कांग्रेस ने अपने भीतर बहुत ऊर्जा का प्रवाह होता हुआ अनुभव किया था । सोनिया जी इस समय रुग्ण अवस्था में हैं । यह माना जा सकता है कि वह कांग्रेस को फिर से सत्तासीन होते देखना चाहती हैं , इसी सपने को साकार करने के लिए उन्होंने करोड़ों अरबों रुपया अपने बेटे राहुल को राजनीति में सफलतापूर्वक स्थापित करने के लिए बहाया । यह कुछ वैसे ही था जैसे उनकी सास ने अपने बेटे राजीव गांधी को उसकी अनिच्छा के बावजूद भारतीय राजनीति में स्थापित करने का प्रयास किया था । कोई भी मां अपने बेटे से यह अपेक्षा कर सकती है कि वह सफलता की सीढ़ियां चढ़े और उन्नति के पथ को प्रशस्त करता हुआ लोगों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करें । जब एक मां के रूप में हम सोनिया जी को हम देखते हैं तो इसमें कुछ भी बुराई नजर नहीं आती , परंतु जब उन्हें एक पार्टी की मुखिया के रूप में देखते हैं और इतनी बड़ी और पुरानी कांग्रेस पार्टी के भीतर जब उन्हें केवल अपना बेटा ही नेता दिखाइए देता है तो उनके इस आचरण पर दुख भी होता है और क्षोभ भी उत्पन्न होता है।
कांग्रेस को इस समय परिवार के मोह से बाहर निकलने की आवश्यकता थी । बहुत लोगों को यह अपेक्षा और आशा थी कि इस बार कांग्रेस परिवार के जंजाल से बाहर निकलेगी । कई लोगों के नामों की चर्चा चल रही थी कि शायद इस बार कांग्रेस के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी उन्हें दी जाए , परंतु कांग्रेस ने अंत में वही किया जिसकी उससे अधिक उम्मीद थी । कांग्रेस ने अपने अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी थके हुए कंधों पर डाल दी है । लोकसभा चुनावों के परिणामों के पश्चात से पार्टी थमी हुई नजर आ रही थी। थकी हुई महिला के कंधों पर थमी हुई पार्टी कितनी देर चलेगी ? – इस पर अधिक टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं है । हाँ , इतना निश्चित है कि कांग्रेस ने छोटी सोच के साथ आगे बढ़ने का फैसला लिया है । जो उसे आगे बढ़ने नहीं देगी। क्योंकि ना तो छोटी सोच से कोई खड़ा हो सकता है और ना ही कोई छोटी सोच के साथ आगे बढ़ सकता है । अब ‘ परिवार ‘ कांग्रेस के लिए ‘छोटी सोच ‘ का प्रतीक बन चुका है। इस सत्य को कांग्रेस जितनी जल्दी स्वीकार कर लेगी , उतना ही अच्छा होगा ।
कांग्रेस को अपनी विचारधारा पर भी विचार करना चाहिए और साथ ही ‘ परिवार ‘ के मोह से बाहर निकलकर स्वावलंबी बनने के लिए संघर्ष करना चाहिए। ध्यान रखना चाहिए कि कॉंग्रेस देश की सभी लोकसभा सीटों पर लड़ने के लिए अपनी योजना पर काम करे । यदि इसने भी दो सौ ढाई सौ सीटों तक अपने आप को समेटने का काम किया तो इसे नरेंद्र मोदी या भाजपा नहीं मारेगी अपितु यह अपने आप ही मर जाएगी । इसे दूसरे क्षेत्रीय दलों के साथ समन्वय बनाने की बजाय अपने आप खड़े होने का संकल्प लेना होगा । पार्टी को खड़ा करने का राहुल गांधी के भीतर यह जज्बा नहीं है , अब यह सिद्ध हो चुका है । कांग्रेसी भी उनके बारे में दबी जुबान से स्वीकार करते हैं कि वह जिस प्रकार की राजनीति करते रहे उससे कांग्रेस के प्रति नकारात्मक परिवेश बना । अतः सकारात्मक परिवेश बनाने के लिए सकारात्मक ऊर्जा से भरे हुए किसी अच्छे नेतृत्व को आगे लाने की आवश्यकता थी। लेकिन नकारात्मक सोच की राजनीति करने वाले राहुल गांधी की मां को कांग्रेस ने इस पद के लिए स्वीकार कर मानो अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत