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(वीरवार के दिन पीरों-मजारों वालों के लिए विशेष रूप से प्रकाशित)

एक फकीर किसी बंजारे की सेवा से बहुत प्रसन्‍न हो गया। और उस बंजारे को उसने एक गधा भेंट किया। बंजारा बड़ा प्रसन्‍न था गधे के साथ। अब उसे पेदल यात्रा न करनी पड़ती थी। सामान भी अपने कंधे पर न ढोना पड़ता था। और गधा बड़ा स्‍वामीभक्‍त था।

लेकिन एक यात्रा पर गधा अचानक बीमार पडा और मर गया। दुःख में उसने उसकी कब्र बनायी, और कब्र के पास बैठकर रो रहा था कि एक राहगीर गुजरा। उस राहगीर ने सोचा कि जरूर किसी महान आत्‍मा की मृत्‍यु हो गयी है। तो वह भी झुका कब्र के पास। इसके पहले कि बंजारा कुछ कहे, उसने कुछ रूपये कब्र पर चढ़ाये। बंजारे को हंसी भी आई आयी। लेकिन तब तक भले आदमी की श्रद्धा को तोड़ना भी ठीक मालुम न पडा। और उसे यह भी समझ में आ गया कि यह बड़ा उपयोगी व्‍यवसाय है।

फिर उसी कब्र के पास बैठकर रोता, यही उसका धंधा हो गया। लोग आते, गांव-गांव खबर फैल गयी कि किसी महान आत्‍मा की मृत्‍यु हो गयी। और गधे की कब्र किसी पहुंच हुए फकीर की समाधि बन गयी। ऐसे वर्ष बीते, वह बंजारा बहुत धनी हो गया।

फिर एक दिन जिस सूफी साधु ने उसे यह गधा भेंट किया था। वह भी यात्रा पर था और उस गांव के करीब से गुजरा। उसे भी लोगों ने कहा, “एक महान आत्‍मा की कब्र है यहां, दर्शन किये बिना मत चले जाना।”

वह गया देखा उसने इस बंजारे को बैठा, तो उसने कहा, “किसकी कब्र है यहा, और तू यहां बैठा क्‍यों रो रहा है ?”

उस बंजारे ने कहां, “अब आप से क्‍या छिपाना, जो गधा आप ने दिया था। उसी की कब्र है। जीते जी भी उसने बड़ा साथ दिया और मर कर और ज्‍यादा साथ दे रहा है।”
सुनते ही फकीर खिल खिलाकर हंसाने लगा। उस बंजारे ने पूछा – “आप हंसे क्‍यों ?”
फकीर ने कहां – “तुम्‍हें पता है। जिस गांव में मैं रहता हूं वहां भी एक पहूंचे हएं महात्‍मा की कब्र है। उसी से तो मेरा काम चलता है।”

बंजारे ने पूछा – “वह किस महात्‍मा की कब्र है ?”

फकीर ने जवाब दिया- “वह इसी गधे की मां की।

शिक्षा-
यजुर्वेद में एक मंत्र है –

वेदाहमेतं पुरुषं महान्तं. आदित्यवर्णं तमसो परस्तात् । तमेव विदित्वा मृत्युमत्येति. नान्य: पन्था विद्यतेऽयनाय ॥ यजु० ३१।१८

नान्य: पन्था का अर्थ है इसके भिन्न अन्य कोई मार्ग नहीं है। ईश्वर भक्ति का एक ही मार्ग है। जो वेदों ने बताया और प्राचीन ऋषि मुनियों ने अपनाया था। उससे छोड़कर कोई भिन्न मार्ग नहीं है। जो लोग यह कहते हैं कि केवल आस्था से ही ईश्वर की भक्ति संभव है उन्हें यह नहीं मालूम की बिना ज्ञान के आस्था अन्धविश्वास कहलाती हैं।

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