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मेरे मानस के राम : अध्याय – 36 , रावण चरित् और रामायण

अभी तक वानर दल का कोई भी सेनापति या योद्धा लंकाधिपति रावण के बल की थाह नहीं कर पाया था। जिस रावण की उपस्थिति में हनुमान जी ने लंका में आग लगा दी थी , आज उसी रावण को उनका वानर दल टस से मस नहीं कर पा रहा था। इससे हनुमान जी स्वयं भी आश्चर्यचकित थे। वह स्वयं को भी धिक्कार रहे थे कि मेरे रहते हुए रावण अभी तक जीवित है।

हनुमान कहने लगे , मुझको है धिक्कार।
तू अब तक जीवित खड़ा, खा मेरा प्रहार।।

हनुमान की बात से , और चिढ़ा लंकेश।
हनुमान को जड़ दिया , घूंसा अब की विशेष।।

मूर्छित कर महावीर को, आगे बढ़ा लंकेश।
लक्ष्मण पर हमला किया, बोले शब्द विशेष।।

लक्ष्मण जी देने लगे , रावण को फटकार।
खड़ा हूं तेरे सामने , चुनौती कर स्वीकार।।

लक्ष्मण और रावण का युद्ध अपनी पूर्ण पराकाष्ठा को प्राप्त हो चुका था। लक्ष्मण जी की वीरता को देखकर रावण भी दंग रह गया था । आज उसे आर्य पुत्र और आर्य शक्ति दोनों का भली प्रकार ज्ञान हो गया था।

आर्य – पुत्र कहते किसे, देख रहा लंकेश।
देख लखन की वीरता , हो गया उनसे द्वेष।।

दोनों में होने लगी , तभी भयंकर जंग।
शौर्य लखन का कर गया, शत्रु को भी दंग।।

लक्ष्मण के आघात से , भयंकर था परिवेश।
बुद्धि चक्कर खा गई, बुरा फंसा लंकेश ।।

शक्ति के आघात से , लक्ष्मण हुए बेहोश।
उठा रहा रावण उन्हें , लगाके पूरा जोश।।

शक्ति के आघात से जब लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए तो उन्हें इस अवस्था में देखकर हनुमान जी उस ओर लपके। हनुमान जी लक्ष्मण जी के लिए सुरक्षा कवच बन जाना चाहते थे। अपने इसी मनोभाव को प्रकट करते हुए उन्होंने रावण को चुनौती दी और उसे जोरदार घूसा जड़ दिया।

आ पहुंचे हनुमान जी , चेहरा हो गया लाल।
घूसा रावण को जड़ा, दीख गया उसे काल।।

उठा लखन को ले गए , हनुमान उस ओर।
युद्ध भयंकर कर रहे , श्री राम जिस ओर।।

ललकारा श्री राम ने , सुन पातक लंकेश।
आज तुझे बचना नहीं , नाम रहेगा शेष।।

जितने भर तेरे पाप हैं , भोगेगा फल आज।
तेरे सिर पर घूम रहा , काल बना हुआ बाज।।

डॉ राकेश कुमार आर्य

( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )

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